FROM THE BLOGGER’S LIBRARY: REMEMBERING K.B.SAHAY:13
लोकपत्र (पटना) के के. बी. सहाय विशेषांक में दिसंबर 1987 को प्रकाशित
यह फोटो
लाल बहादुर शास्त्री को समर्पित हिंदी साहित्यिक पत्रिका "कादम्बिनी" के
जनवरी 2016 अंक से लिया गया है. फोटो में प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री
को अपने सहयोगियों के साथ दिखाया गया है. श्री कृष्ण बल्लभ सहाय को इस चित्र में
स्पष्ट देखा जा सकता है.1963-1967 में कृष्ण बल्लभ बाबू बिहार के मुख्य मंत्री थे
जब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधान मंत्री थे.
स्वतंत्र भारत में बिहार राज्य के
तीसरे मुख्य-मंत्री के रूप में कृष्ण बल्लभ बाबू ने जो ख्याति अर्जित की है वो बिरले
ही मुख्य-मंत्री को नसीब हो पायी है। बाबू कृष्ण बल्लभ सहाय का मुख्य-मंत्रित्व काल अपेक्षाकृत छोटा
रहा है, मगर उस छोटी सी अवधि में अपने नेतृत्व में बिहार को सही दिशा की ओर ले चलने
में आपने जो योगदान दिया है वह उल्लेखनीय रहा है।
राज्य में स्वच्छ प्रशासन राज्य
को सर्वमुखी विकास की ओर ले चलने का उपक्रम भूमि सुधार के मामले में देश के सम्मुख
बिहार का एक अप्रतिम उदहारण पेश करने का ज्वलंत उदहारण और सस्ती लोकप्रियता के लिए
राजनैतिक दवाबों के सम्मुख घुटने नहीं टेकने का दृढ संकल्प आदि कुछ ऐसे कार्य सहायजी
के मुख्य-मंत्रित्व काल में संपन्न हुए हैं जिनके कारण राज्य की स्थिति और उन्नति सम्बन्धी
किसी भी सन्दर्भ में बरबस उनका स्मरण हो आता है। इस धरा धाम से उनके तिरोहित हुए एक दशक से अधिक की अवधि व्यतीत
हो चुके हैं फिर भी कुछ मामलों में उनकी प्रासंगिकता आज भी बरक़रार है।
सन 1898 के 31 दिसंबर को कृष्ण बल्लभ
बाबू के जन्म दिवस पाने का गौरव प्राप्त है। आपका जन्म एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति यद्यपि संतोषजनक नहीं थी, फिर
भी उनके परिवार में पठन-पाठन का अच्छा प्रचलन था। परिवार परिवेश में राजनैतिक चेतना व्याप्त थी। इस कारण प्रभावित था कि कृष्ण बल्लभ बाबू की रूचि अब अध्ययन
की ओर उन्मुख होती। शुरू की पढाई समाप्त कर आपने हज़ारीबाग़ जिला स्कूल में मैट्रिकुलेशन
की परीक्षा पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इन्हें परीक्षाओं में सदैव अच्छे
अंक और स्थान प्राप्त होते थे। संत कोलम्बस कॉलेज हजारीबाग में
आपका दाखिला कराया गया और बी.ए.(प्रतिष्ठा) की परीक्षा आपने यूनिवर्सिटी में सबसे अधिक
अंकों के साथ उत्तीर्ण की। विश्वविद्यालय में अव्वल आने के उपलक्ष में आपको स्वर्ण पदक
से विभूषित किया गया।
उच्च अध्ययन के लिए आप पटना चले
गए और एम.ए. एवं वकालत की पढ़ाई इन्होने एक साथ प्रारम्भ की। दोनों ही कक्षाओं में आप अच्छा कर रहे थे। इस बीच सन 1920 में महात्मा गांधी के आह्वाहन पर देश में असहयोग
आंदोलन छिड़ गया और जैसी राजनैतिक चेतना के साथ कृष्ण बल्लभ बाबू का शैशव आरम्भ हुआ
था, वे इस आंदोलन से अपने को पृथक नहीं रख पाये और अपनी उच्चतम शिक्षा के क्रम को अधूरा
छोड़ देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
सन 1921 में पंडित मोतीलाल नेहरू
और देशबन्धु चित्तरंजन दस ने जिस स्वराज्य पार्टी का गठन किया था उसमे आपको आमंत्रित
किया गया और इस पार्टी के अभिक्रम पर आप बिहार विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए। बिहार विधान परिषद की सदस्यता की अवधि में सारे सदन में प्रखर
वाणी, निर्भीक आचरण, तीखे व्यंग और हर प्रश्न पर प्रतिउत्तर से आपकी एक विशेष छवि बन
गयी। सदन के बाहर भी आपकी सपाट बयानी और निडरता की काफी प्रशंसा होने
लगी।
बिहार विधान परिषद की सदस्यता कृष्ण
बल्लभ बाबू की मंज़िल का एक छोटा सा ठौर था। उसका अंतिम लक्ष्य तो देश को अंग्रेज़ों के शासन और शिकंजे से
मुक्त कराना था। अतएव, स्वतंत्रता संग्राम में आपने खुल कर भाग लिया और अपनी
इस हिस्सेदारी के कारण सन 1930, 1932, 1933, 1940 और 1942 में आपको कठोर कारावास के
सजाएं भुगतनी पड़ी। लगभग दस वर्षों से अधिक की अवधि आपने जेलों की सलाखों के पीछे
रह कर गुजारी। सन 1937 में जब अंग्रेज़ों ने प्रांतों को स्वायत शासन की आंशिक
छूट दी तो आप बिहार विधान सभा के विधवत सदस्य निर्वाचित हुए। डॉक्टर श्री कृष्ण सिन्हा भी उस समय निर्वाचित हुए और वे सदन
के नेता चुने गए। श्री कृष्ण बल्लभ सहाय श्री कृष्ण सिन्हा के मंत्री-मंडल में
संसदीय सचिव बनाये गए। बाद में श्री कृष्ण सिन्हा मंत्रीमंडल भंग हुआ तब आपका भी उससे
सम्बन्ध विच्छेद हो गया। तब से 1946 तक आप राज्य की विभिन्न ढंग से काफी लगन और मेहनत
से सेवा करते रहे। लोगों में राजनैतिक चेतना बनाये रखना, समाज सेवा में अपना सक्रिय
सहयोग देना, संगठन को सुदृढ़ बनाने के प्रति सचेत रहना ये कुछ ऐसे कार्य थे जो सही और
समुचित ढंग से कृष्ण बल्लभ बाबू के द्वारा संपन्न हो पाता था। बाद में 1946 में जब बिहार में लोकप्रिय सरकार का गठन हुआ आप
उसमे राजस्व मंत्री बनाये गए और सन 1957 तक आप उस पद
पर निर्बाध बने रहे।
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का राजस्व
मंत्री के रूप में जो कार्यकाल रहा है, अकेले वही उन्हें सदियों तक अमर रखने के लिए
यथेष्ठ है। कृष्ण बल्लभ सहाय ज़मींदारों के शोषणपूर्ण और आतंकवादी भूमिका
से भली-भांति परिचित थे। अँगरेज़ भारतीयों पर जमींदार के माध्यम से ही अत्याचार करते थे। जमींदार वर्ग अंग्रेज़ों से भी अधिक खतरनाक बने हुए थे। किसानों, मज़दूरों और आम लोगों का कल्याण जमींदारी प्रथा का खात्मा
किये बिना संभव नहीं था। यह स्थिति सारे भारतवर्ष में विद्धमान थी। हर राज्य एक दूसरे का मुँह ताक रहा था की जमींदारी उन्मूलन के
लिए कौन राज्य पहला कदम उठाता है। इस दिशा में ठोस, सार्थक मगर कठिन और जोखिम भरा कदम उठाने का
कोई भी राज्य साहस नहीं बटोर पा रहा था। ऐसी ही स्थिति में भूमि सुधार अधिनियम बिहार में पारित करवा
कर आपने अदम्य साहस, कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस अधिनियम से एक ही झटके में राज्य से जमींदारी प्रथा सदैव
के लिए दफ़न हो गयी जिससे राज्य में सामाजिक और आर्थिक क्रांति का द्वार स्वतः सहजतापूर्वक
खुल गया। समाज का पारम्परिक सामंती ढांचा टूट कर बिखर गया और उसके स्थान
पर लोकतान्त्रिक पद्धत्ति पर आधारित सामाजिक व्यवस्था कायम करने के लिए उपयुक्त आधार
भूमि बन सकी। यहाँ यह उल्लेख कर देना अप्रसांगिक नहीं होगा कि ज़मींदारों के
कारिंदों के रूप में भारी संख्या में कृष्ण बल्लभ बाबू के स्वजातीय लोग नियोजित थे
और जमींदारी प्रथा के अंत होने से सब के सब एकाएक बेरोजगार हो गए। मगर कृष्ण बल्लभ बाबू ने राज्य के हितों में जातीय प्रश्नों
को जरा भी प्रश्रय नहीं दिया जिसके कारण कुछ जाति विशेष में आपकी बड़ी आलोचना भी हुई। कृष्ण बल्लभ बाबू को सारे देश में राजस्व के मामले का विशेषज्ञ
माना जाने लगा और इसके लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू सरीखे कुछ उच्च पदस्थ नेता भी उनकी
भूरि-भूरि प्रशंसा की। देश के भूमि सुधार आंदोलन के कृष्ण बल्लभ बाबू अग्रणी चिंतक
थे। यदि उन्हें आधुनिक भारत में "भूमि सुधार का जनक" कहा
जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
सन 1962 में ये योजना और सहकारिता
मंत्री बनाये गए और इन दोनों ही विभागों के कार्य-कलापों में आप स्वस्थ और अनुकूल परिवर्तन
ला सके।
सन 1963 के 2 अक्टूबर से आप राज्य
के मुख्य-मंत्री बने और मुख्य-मंत्री के रूप में राज्य को प्रदत्त उनकी सेवाएं अनेक
दृष्टि से उल्लेखनीय मानी जातीं हैं। प्रशासन पर इनकी पकड़ बहुत ही ज़बरदस्त थी। सभी विभागों के मंत्रियों, पदाधिकारियों के कार्य-कलापों की
ये बड़ी सूक्ष्म जानकारी रखते थे। किसी विषय पर निर्णय लेने के पूर्व सम्बंधित विषय की पूरी जानकारी
के लिए संचिकाओं में उपस्थापित सभी बिन्दुओं को बड़े गौर से आद्योपांत पढ़ लिया करते
थे। बड़े-बड़े आई.सी.एस. अफसर एवं आई.ए.एस. अफसर भी संचिकाओं में दी
गयी इनकी टिप्पणियों के कायल थे।
कृष्ण बल्लभ बाबू किसी निर्णय लेने
में पक्षपात, पूर्वाग्रह या पैरवी के दखल को बर्दास्त नहीं करते थे।
कहा जाता है कि श्री कृष्ण सिन्हा
और डॉक्टर अनुग्रह नारायण सिन्हा ने स्वतंत्र बिहार के प्रस्तावित विकास का जो सपना
देखा था उस सपने को असली जामा पहनाने की दिशा में कृष्ण बल्लभ बाबू ने जो भूमिका अदा
की है उसका बड़ा ही महत्व है। राजनीति में दावं-पेंच और कूटनीति का जो खेल खेला जाता है उसमें
सबकी महारथ हासिल नहीं रहती। कृष्ण बल्लभ बाबू भी अपनी साफ़-साफ़ और दो टूक बातें कह देने के
कारण अच्छे राजनीतिक खिलाड़ी नहीं हो सके। इस कारण अक्सर चुनावों में इन्हें मुँह की खानी पड़ती जिसके कारण
लम्बी अवधि तक मुख्य-मंत्रित्व की गद्दी संभालने का गौरव इन्हें नसीब नहीं हुआ। फिर भी जितने दिनों तक इन्होनें मुख्य-मंत्रित्व का कार्य भार
धारण किया उतने दिनों तक कार्य करने की अपनी निष्पक्ष और नैतिक पद्धति से दामन में
दाग नहीं लगने दिया।
यदि कृष्ण बल्लभ बाबू को और भी लम्बी
उम्र नसीब होती या निर्विगंन और निर्बाध रूप से इन्हें शासन के सूत्र सञ्चालन का अवसर
मिलता तो राज्य और उसके निवासियों के हक़ में वह सुखद और कल्याणकर होता।
बड़े-बड़े राजनैतिक पुरुषों के साथ
यह दुर्भाग्य रहा है कि उनकी राजनैतिक उपलब्धियों के
सम्मुख उनकी अन्य विशेस्ताओं को अक्सर नज़र अंदाज़ कर दिाया जाता है। श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का व्यक्तित्व भी इस विडंबना का अपवाद
नहीं है। श्री कृष्ण बल्लभ बाबू एक सुलझे हुए पत्रकार, उच्च कोटि के लेखक
और इन दोनों से बढ़ कर ज़िंदादिल, रहमदिल हर दिल अज़ीज़ नेक और पाक-साफ़ इंसान थे। अपनी व्यस्तता की घड़ियों में कुछ न कुछ वक़्त हमेशा अध्ययन के
लिए अवश्य निकाल लेते थे। विभिन्न अवसरों पर दिया हुआ इनका भाषण, इनके प्रेषित सन्देश
उनकी गहन अध्ययनशीलता के परिचायक होते थे।
सन 1930-31 में आप पटना से
"मदर लैंड" नाम के अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन करने लग गए थे। हजारीबाग से हिंदी साप्ताहिक के रूप में छोटानागपुर दर्पण भी
आप की संपादन में 1941-1945 तक प्रकाशित होता रहा था। दोनों अखबार अंग्रेज़ों के खिलाफ अग्नि वर्षा करते थे जिसके कारण
आपको तत्कालीन शासकों का अनेक बार कोपभाजन बनाना पड़ा था। यही नहीं आप विद्यार्थी
जीवन में हजारीबाग से अनेक समाचार पत्रों के पात्र प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करते
रहे थे। कलकत्ता का "अमृत बाजार पत्रिका" उनमें से एक था। कहा जाता है कि उसी अखबार की एक रिपोर्टिंग से सरकार इनसे बड़ी
नाराज़ हुई थी। इन्हें सबक सिखाने के लिए एक इंस्पेक्टर को इनके पीछे लगा दिया
गया था। इंस्पेक्टर बड़ा ही स्वराजी ख्याल का था। अतः कृष्ण बल्लभ बाबू के प्रति उसकी कुदरती हमदर्दी थी। इस वजह से वह उनके प्रति सख्ती नहीं कर सका। ड्यूटी के प्रति लापरवाही बरतने के जुर्म में उस इंस्पेक्टर
को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। फिर कृष्ण बल्लभ बाबू उस इंस्पेक्टर की ता-ज़िन्दगी पारिवारिक
सहायता करते रहे जब कि उनकी अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
उनकी बेमिसाल इंसानियत और हमदर्दी
की इस प्रकार की बहुत
सारी कहानियां हैं। उनकी विनम्रता को उजागर करने वाली वैसे एक से बढ़ कर एक घटनाएं
हैं। बानगी के तौर पर एक दो घटनाएं यहां प्रस्तुत की जा रही है। श्री कृष्ण बल्लभ बाबू जब सर्वप्रथम मंत्री बने तो अपने घर हजारीबाग
की यात्रा की। मंत्री के रूप में अपने घर हजारीबाग की यह उनकी प्रथम यात्रा
थी। हवाई अड्डे पर स्वागत कर्ताओं की अपार भीड़ जमा हो गयी थी। भीड़ में संत कोलम्बस कॉलेज के पादरी संत प्रिंसिपल मार्खम भी
उपस्थित थे। मार्खम साहब पर दृष्टि पड़ते ही कृष्ण बल्लभ बाबू स्वयं दौड़ कर
उनके पास चले गए और आलिंगनबद्ध होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
दूसरी घटना मुख्यमंत्री बनाने के
बाद की है। मुख्य-मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के दूसरे ही दिन सुबह
उन्होनें कार्यक्रम बनाया कि लोग उनके पास आकर उन्हें बधाई दे इससे बेहतर है कि खुद
लोगों के पास पहुँच कर उनकी दुवाएं हासिल करें। पौ फटते ही अपने कारिंदों के साथ कार पर सवार हो पटना स्थित
अपने सभी सुभेक्षुओं के यहां जा दौड़े और स्वयं जा कर दुवाएं हासिल कर सबके दिल जीत
बैठे।
आज जब तक साइंस और तकनीक, नवीन शिक्षा
पद्धत्ति भावात्मक एकता आदि बातें सुनते हैं तो लगता है कि इक्कीसवीं सदी में प्रवेश
पाने से पूर्व हमें इन सारे मुद्दे मसाले को हल कर लेना चाहिए। मगर कृष्ण बल्लभ बाबू कुछ ऐसी भविष्यदृष्टा और दूरदर्शी थे की
आज से दशकों पूर्व विभिन्न अवसरों पर इन प्रसंगों पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं।
आज मनुष्य अपने हित साधन और स्व-कल्याण
की लक्ष्मण रेखाओं में इस कदर कैद हो कर रह गया है कि दूसरों के बारे में सोचने समझने
कि उसे जरूरत ही नहीं महसूस होती जबकि ऐसे दूसरों में कुछ ऐसी ही हस्तियां गुजार चुकी
है जिनके विषय में सोच समझ कर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। कृष्ण बल्लभ बाबू का वजूद निःसंदेह ऐसी ही हस्तियों में था,
जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जन समाज को बहुत कुछ मिल सकता है।
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