FROM THE BLOGGER’S LIBRARY: REMEMBERING K.B.SAHAY : 14
लोकपत्र (पटना) के के. बी. सहाय विशेषांक में दिसंबर 1987 को प्रकाशित
भारत के लौह पुरुष वल्लभ बही पटेल के सदृश्य कृष्ण बल्लभ बाबू बिहार के लौह पुरुष थे। प्रजातंत्र शासन प्रणाली में राजनेताओं को स्थिर और दृढ रहने के मार्ग में बाधाएं खड़ी रहती हैं। यह असिधारव्रत हो जाता है। मतदाता मुंडे मुंडे मति: भिन्ना होते हैं। इनमे सामंजस्य स्थापित करना दुष्कर है। कृष्ण बल्लभ बाबू के लौह पुरुषता के दो उदहारण पर्याप्त हैं-
प्रथम जमींदारी उन्मूलन-इसके मार्ग में प्रत्यूह समूह था। स्वयं शासक दलों के नेताओं में मत भिन्नता थी। इसके बावजूद कृष्ण बल्लभ बाबू जमींदारी उन्मूलन करने में सक्षम हुए - दृढ संकल्प एवं पुण्य कार्य व्यर्थ नहीं होता- “न ही कल्याण कृत कश्चिद् दुर्गति तात गच्छति।“
दूसरा बी. एन. कॉलेज में गोली-काण्ड। छात्रों को सुमार्ग पर लाने के लिए उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा। इसके लिए उन्होनें अपने पद को दावं पर लगा दिया। आज छात्र अनुशासनहीनता के माहौल में प्रत्येक सुधि व्यक्ति का ध्यान कृष्ण बल्लभ बाबू की ओर आकृष्ट होता है। आज के शासक तुष्टि नीति से शिक्षक छात्र वर्ग में अनुशासनहीनता एवं अकर्मण्यता को प्रश्रय दे रहे हैं। काश कृष्णबल्लभ बाबू वर्त्तमान में रहते।
कृष्ण बल्लभ बाबू के व्यक्तित्व को भर्तृहरि के निम्नाकित श्लोक में कहा जा सकता है:
“निन्दन्तु नीति निपुणाः: या दिवा स्तुवन्तु
लक्ष्मी सभा विशतु गच्छतु व यथेष्टम्
अध्यवय भरणम् भवतु युगान्तरे व न्याय पठात प्रविचलन्ति
पदम ना धीरा:
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