FROM THE BLOGGER’S LIBRARY: REMEMBERING K.B.SAHAY:17
यह लेख एक पैम्फलेट के रूप में कांग्रेस कार्यकर्ता श्री दीप चंद जैन द्वारा 31 दिसंबर 1986 को वितरित किया गया था. कृष्ण बलभ बाबू की मृत्यु के बारह वर्ष बाद भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उनके प्रति ऐसा प्रेम और स्नेह था यह निश्चय ही विस्मयकारी और सुखद अनुभूति देने वाला है.
यह लेख एक पैम्फलेट के रूप में कांग्रेस कार्यकर्ता श्री दीप चंद जैन द्वारा 31 दिसंबर 1986 को वितरित किया गया था. कृष्ण बलभ बाबू की मृत्यु के बारह वर्ष बाद भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उनके प्रति ऐसा प्रेम और स्नेह था यह निश्चय ही विस्मयकारी और सुखद अनुभूति देने वाला है.
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आज हम बिहार की उस हस्ती की जन्म दिवस मना रहे हैं जिन्होंने अपने लगभग चार वर्षों के ही मुख्य
मंत्रित्व काल में ही यह साबित कर दिया कि एक राजनैतिक व्यक्ति भी कितना कुशल और प्रखर शासक हो सकता है। यह सुनामधन्य हस्ती और कोई नहीं कृष्ण बल्लभ सहाय थे जो अपनी योग्यता, संगठन-शक्ति, और प्रशासनिक क्षमता के कारण बिहार में ही नहीं, सारे देश में काफी अरसे तक चर्चा के विषय बने रहे।
जन्म तो इनका फटुआ(पटना) में हुआ था लेकिन हजारीबाग की धरती पर पलने-बढ़ने और शिक्षित होने तथा यहीं से अपना राजनैतिक जीवन प्रारम्भ करने के कारण ये हजारीबाग के ही सम्पदा माने जाते रहे। हजारीबाग शहर और हजारीबाग ज़िले के हरे-भरे जंगलों और ग्रामीण अंचलों के प्रति इनका ममत्व आखिरी दम तक कायम रहा। हजारीबाग को चमन बनाने का इनका सपना यह सच है कि पूर्ण रूपेण साकार नहीं हो पाया लेकिन इसके लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस दिशा में जिन बाधाओं और परिस्थितियों का इन्होनें सामना किया और हजारीबाग के राजनैतिक और गैर-राजनैतिक लोगों ने भी जिस प्रकार इनसे असहयोग किया, उन हालातों में कुछ अधिक किया जाना संभव भी नहीं था। जानकार लोग यह मानते हैं कि कृष्ण बल्लभ बाबू अपने सपने को साकार करने के लिए अंतिम सांस तक किस प्रकार बैचैन रहे। उनके मरने के बाद ही यहां के लोगों को महसूस हुआ कि उन्होनें क्या खोया और इस धरती का कितना महान और योग्य सपूत उनसे दूर चला गया है।
कृष्ण बल्लभ बाबू की जयंती आज हजारीबाग में और बिहार प्रान्त के विभिन्न हिस्से में मनाई जा रही है। इस बार हजारीबाग और पटना में उनकी प्रतिमा को स्थापित कर उनकी स्मृति को मूर्त रूप दिया जा रहा है. लेकिन ऐसे मौकों पर उनके सपनों को जिसे वे बिहार को सिरमौर और हजारीबाग को चमन बनाना चाहते थे, साकार करने का संकल्प यदि नहीं लिया जाए तो इन आयोजनों का कोई औचित्य नहीं रह जाता है।
कृष्ण बल्लभ बाबू सही अर्थों में बिहार विभूति थे। वे बड़ी दूर की सोच रखते थे और बड़ी सूक्ष्मता से तथ्यों को देखते थे। बड़ा से बड़ा और घाघ से घाघ प्रशासनिक अधिकारी भी उनकी आँखों में धुल झोकने या उन्हें विवशता की स्थिति में लाने का दुस्साहस नहीं कर सका। इस प्रकार के ढेर सारे दृष्टान्त हैं जहां कृष्ण बल्लभ बाबू ने बड़े-बड़े आई.ए.एस. अफसरों की ठकुरसुहाती की नब्ज पकड़ कर उनके परामर्श को कठोरता से ठुकड़ा दिया। दृढ़ता और दूरदर्शिता पूर्वक स्वतंत्र निर्णय लेने और कारगार आदेश निर्गत करने वाले कितने ऐसे मुख्य-मंत्री बिहार में हुए हैं?
स्वतंत्रता संग्राम में अनेक बार जेल यातना भुगतने के बावजूद ठंडा लोहा बने रहने वाले इस अद्भुत स्वतंत्रता सेनानी ने संसदीय सचिव, राजस्वमंत्री, सहकारिता मंत्री और मुख्य-मंत्री आदि विभिन्न प्रशासनिक पदों पर अपनी कर्मठता और प्रभावशीलता की अमिट छाप छोड़ी. इन्होनें अपने डारे में कांग्रेस संगठन को काफी ठोस, अनुशासित तथा संपन्न बनाया. कांग्रेस के छोटे से छोटे कार्यकर्त्ता के हितों की रक्षा करना इनका कर्तव्य रहा और इनके बीच इनका स्नेह सर्वविदित है।
प्रत्यक्ष कड़वी वाणी बोलने के बाद पीठ पीछे उपकार करने वाले राजनेता कितने होंगें? जिनहोने वृंदा में इन्हें धान के खेत में खेती करते देखा है वे ही जानते हैं कि एक बार करीब चार वर्षों तक बिहार के तख़्त पर किसी ताल्लुकेदार या किसी लक्ष्मीपति का नहीं वरन एक सीधे सादे किसान का कब्ज़ा था।
जयंती उनकी मनाई जाती है जो देश, समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित रहे हैं। जयंती उनकी मनाई जाती है जो अपने त्याग और बलिदान से अंधेरी सुबह को रौशनी प्रदान करते हैं। जयंती उनकी मनाई जाती है जिनका जीवन ही नहीं वरन मौत भी प्रेरणा का सबब बन जाता है। कृष्ण बल्लभ बाबू ऐसे ही यशस्वी पुरुषों की श्रेणी में आते हैं उनकी जयंती और उनकी प्रतिभा से हम सभी नई चेतना, नए निर्माण और राष्ट्रीयता के नए संकल्प की प्रेरणा ग्रहण करें।