श्री के बी सहाय एवं कार्यकर्ता
-रामेश्वर प्रसाद सिंह, कदम कुआं, पटना
(कृष्ण
बल्लभ सहाय जयंती समारोह, द्वारा 31 दिसंबर 1988
को प्रकाशित ‘स्मारिका’ से साभार)
श्री
कृष्ण बल्लभ सहाय, पिता का नाम श्री गंगा बाबू
निवास स्थान गंगा के पवित्र पावन स्थान पुनपुन के ठीक सटे शेखपुरा थाना फतुहा, ज़िला पटना के मूल निवासी थे। इनके चाचा का नाम गोपी बाबू था जो पुरंधरपुर
पटना में रहते थे। इनकी शिक्षा शेखपुरा से ही आरंभ हुई। मेरा भी ननिहाल ग्राम
शेखपुरा, थाना फहुहा ज़िला पटना में है। हमारे नाना स्वर्गीय
काशीनाथ उसी गाँव में जाकर रहने लगे। काशीनाथ के बड़े भाई स्वर्गीय हीराबाबू थे।
गंगा बाबू, काशी बाबू और हीरा बाबू में काफी प्रेम था। चूंकि
दोनों एक ही चित्रगुप्त परिवार से आते थे।
मैं
अपनी चचेरी नानी हीराबाबू की धर्मपत्नी के साथ अक्सर कृष्ण बल्लभ बाबू के चाचा
गोपी बाबू के निवास स्थान पुरंधरपुर पटना में आया जाया करता था उस समय मैं छोटा
बालक था। हमारे परिवार के मामा स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद और बालकेशवर प्रसाद, के.बी.सहाय के काफी नजदीक में
रहने का इनलोगों को मौका मिला। चूंकि यह लोग भी उनके अपने सम्वन्धीगण थे।
स्वर्गीय
के. बी.सहाय के छोटे भाई स्वर्गीय डॉक्टर दामोदर प्रसाद का निवास स्थान दरियापुर
गोला पटना में है। दामोदर प्रसाद के निवास स्थान पर बिहार के जाने माने राजनीति के
बड़ी बड़ी हस्तियों का जमघट लगा रहता था। उस वक़्त हम कार्यकर्ता लोग डॉक्टर साहब के
निवास स्थान पर अक्सर आया जाया करते थे और के.बी.सहाय के पुत्र राम बाबू, गुतूल बाबू और भतीजा तारा बाबू से काफी अच्छी ताल्लुकात थे। हम-लोग अक्सर
मिला-जुला करते थे। चूंकि मेरा भी निवास स्थान दरियापुर गोला पटना में ही है और
मैं भी चित्रगुप्त परिवार का एक छोटा सा सिपाही हूँ।
उस
जमाने में काँग्रेस की तूती बोलती थी और जाने-माने कर्मठ योग्य मुख्यमंत्री
श्रीबाबू (श्रीकृष्ण सिन्हा) का जमाना था। श्रीबाबू के आशीर्वाद से श्री के.बी.सहाय जी को बिहार की राजनीति में राजस्व मंत्री
के पद पर नियुक्त किया गया और भारतवर्ष के इतिहास में श्री के.बी.सहाय ने जमींदारी
प्रथा को समाप्त कर बिहार की गरीब जनता को राहत दिलाया। श्री के.बी.सहाय का नाम
बिहार के कोने-कोने में गूंज रहा था। हमलोग अक्सर शाम के समय उनकी प्रतीक्षा में
डॉक्टर दामोदर बाबू के निवास पर बैठे रहते थे। श्रीकृष्ण सिन्हा ने श्री कृष्ण
बल्लभ बाबू जी को ‘नवशक्ति’ साप्ताहिक
और ‘राष्ट्रवाणी’ दैनिक का भार भी उनके
माथे पर दे दिया और के.बी. सहाय ने उनके आदेश का पालन करते हुए सिर-आँखों पर रखकर
कार्य सम्पादन किया। दोनों समाचार पत्रों की गूंज गूँजती रही। श्रीबाबू ने अपने
जीवनकाल में भविष्यवाणी की थी कि हमारे मरने के बाद अगर बिहार में काँग्रेस का कोई
सच्चा सिपाही होगा तो वो के.बी. सहाय ही होगा। और आगे चलकर
उनके मरणोपरांत के.बी. सहाय बिहार सरकार के मुख्यमंत्री बने तथा श्रीबाबू की बात
सत्य निकली। के. बी. सहाय सच्चे सिपाही के रूप में कार्यकर्ता थे और जनता से भी
बराबर मिलते-जुलते रहते थे। सही मायनों में गरीबों के मसीहा थे। एक दिन अचानक उनकी
गाड़ी (BRM 101) हजारीबाग के चुनावी इलाके में काँग्रेस के
दफ्तर के सामने आकर रुकी और के.बी.सहाय जो अगली सीट पर बैठे थे, उतरे और अपने छोटे भाई डॉक्टर दामोदर प्रसाद से पूछा कि कार्यकर्ता लोग
कहाँ हैं। हम कार्यकर्तागण एक पंक्ति में खड़े थे। हमलोगों ने झट चरण छूकर नतमस्तक
किया। वे पूछने लगे कि खाने-पीने का क्या इंतजाम है। हमलोगों ने कहा कि सूखी
पावरोटी और चाय मिलती है। इतना सुनते ही वे आग बबूला हो गए और डॉक्टर साहब से कहने
लगे कि कौन इंतज़ामकार हैं। उन्हें बुलाएँ। बुलवा कर उन्हें खरी-खोटी सुनाई। जब-जब
चुनाव का समय आता था, हम कार्यकर्तागण के. बी.सहाय के क्षेत्र में जहां से वे, चुनावी दंगल में खड़ा होते थे सब तन-मन-धन से प्रचार में लग जाते थे।
इसी
प्रकार 1962 में जब के बी सहाय पटना पश्चिम (207) विधान सभा क्षेत्र के चुनावी
दंगल में उतरे तो हमलोगों ने खुले दिल से साथ दिया और डॉक्टर साहब के निवास पर
बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों का जमघट लगा ही रहता था। इनमें डॉक्टर कोहली, रविशंकर खन्ना, झमेली साव,
बदरी बाबू, निरंजन बाबू, कामता बाबू
आदि प्रमुख थे। डॉक्टर दामोदर प्रसाद के दामाद फनीभूषण प्रसाद अधिवक्ता, और वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के जज इन लोगों के साथ रहकर हम पटना के
कार्यकर्ता सदैव काँग्रेस के समर्पित सिपाही की तरह कार्य करते रहे। स्वर्गीय
के.बी. सहाय से जो हमलोगों का रिश्ता था, वो पिता-पूज्य के
समान था। वे गरीबों की शादी-व्याह, मरनी-हरणी, नवयुवकों की पढ़ाई लिखाई के बारे में रुचि लेते थे। काँग्रेस पार्टी के
फ़ंड से सबों को उचित सहायता दिलाते थे। उसी समय लोक-सभा और विधान-सभा (1962) का
चुनाव एक ही समय निश्चित हुआ था और पटना संसदीय क्षेत्र से श्रीमती रामदुलारी सिन्हा
प्रत्याशी थीं। के.बी. सहाय की रहनुमाई में उनकी भी जीत हुई।
अनेक
कार्यकर्ता रामेश्वर प्रसाद सिन्हा, कैलाश
पासवान, माणिक लाल, प्रकाश राऊत, रामचंद्रा यादव, सरयू गोप,
शिव प्रसाद, जगदीश प्रसाद, बलदेव
प्रसाद, गनौरी राम, आदि घर-घर घूम कर
काँग्रेस के लिए वोट मांगते थे। जनसंघ प्रत्याशी को बाईस हज़ार वोट से हरा कर
निर्वाचित घोषित हुए। उन्होने जीतने के बाद आम जनता के बीच अपने निवास स्थान छज्जुबाग
में यह वादा किया कि हमारी पार्टी की सरकार पूरे बिहार प्रांत में जनता के हित के
कार्य करेगी और उन्होने मंत्री के रूप में पूरे पटना में बिजली के पोल पर स्ट्रीट
लाइट की व्यवस्था करवाई। गली-कूचे का पक्कीकरन किया और पानी की व्यवस्था की। जब वे
स्वतः कामराज योजना में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया तो मानो
बिहार की जनता को लगा कि श्रीबाबू के बाद एक सच्चा सिपाही बिहार को मिला है।
श्रीबाबू ने अपने जीवांकाल में ही यह भविष्यवाणी की थी कि हमारे मरने के बाद अगर
बिहार का कोई सच्चा सिपाही है तो वह है के.बी.सहाय। जो शिक्षा में एम.ए. प्रथम
श्रेणी में प्रथम गोल्ड मेडलिस्ट थे। इनके डर से आई.पी.एस. और आई.ए.एस. का कलेजा
काँपता था। उनसे बड़े-बड़े पूंजीपति जमाखोर और गुंडे तत्व घबड़ाते थे। मानो एक शेर के
गर्जन से पूरा जंगल हिलने लगता है। जब-जब बिहार पर विपत्तियाँ आई, के.बी.सहाय ने गरीबों के लिए अपना खज़ाना खोल दिया।
यही
नहीं ब्रजलाल प्रसाद तात्कालिक, एम.एल.ए. के माध्यम से
पार्टी के गरीब विधायकों एवं कार्यकर्ताओं को पार्टी फ़ंड से महीनवारी भी दिलाते
थे। राजनीति के हलक़ों में इन्हें लोग राजनीति का बैंक बैलेन्स समझते थे। गरीबों के
लिए फ़ंड कब कहाँ से आवेगा इसकी सारी जवाबदेही अपने ऊपर लेकर प्रखण्ड स्तर से लेकर
प्रांतीय स्तर तक कार्यकर्ता को संगठित करते थे। यही उनकी अपूर्व इच्छा रहती थी।
अपने मुख्यमंत्री काल में ही बिहार के सरकारी कर्मचारियों के हित के लिए पारिवारिक
पेंशन का भी नियम बनाया। ये दिन थे के.बी.सहाय के। लोगों पर बरस पड़ते थे, लेकिन दिल में इतना प्यार और स्नेह था मानो एक देवता की मूर्ति थे। भारत के इतिहास में गिने-चुने मुख्यमंत्री यथा
बंगाल के बिधान चन्द्र राय, पंजाब के प्रताप सिंह कैरों, राजस्थान के मोहन लाल सुखाडिया और उत्तर प्रदेश के चन्द्रभानु गुप्ता के
समकक्ष के.बी.सहाय की तूती बोलती थी। इनका नाम भारत के इतिहास में अमर रहेगा। जब श्री
कृष्ण बल्लभ बाबू 1967 के चुनावी दंगल में उतरना चाहा तो ऐन मौके पर कुछ गद्दारों
ने खादी-भवन में जो घटना घटाई वो सबों को मालूम है। लेकिन साहस के साथ कमर कसकर
चुनावी दंगल में पटना पश्चिम और हजारीबाग दोनों जगह से प्रत्याशी के रूप में जनता
की अदालत में पेश हुए। हमलोगों ने उनके मरहूम पुत्र सोमा बाबू के साथ रहकर पहाड़ी
इलाकों में काम किया और उनके पुत्रों राम बाबू, गुतूल बाबू, भतीजा तारा बाबू, राधाकान्त बाबू इनलोगों का स्नेह
और प्रेम भी हम कार्यकर्ताओं को मिला। हमलोग घूम-घूम कर उनके लिए जनता के बीच वोट
मांगें। बराबर कार्यकर्ता के खाने-पीने की पूछताछ काँग्रेस के कर्मठ एवं योग्य
सिपाही के.बी. सहाय ने किया। उनके मुख्यमंत्री काल में हत्या, लूट, डकैती का नाम नहीं था। लगता था बिहार की जनता, बच्चे, बूढ़े, माताएँ और बहने
सुख-चैन की नींद सोती थीं। जब के.बी.सहाय को कुछ अपने ही दोस्तों ने विश्वासघात कर
बाबू महामाया प्रसाद सिन्हा के दंगल में उतारकर हराने का पूरा षड्यंत्र रचा और
अपने ही लोगों ने कसमें खाई कि सहायजी को किसी भी कीमत पर हराना है। सिर्फ रामलखन
सिंह यादव ने तन-मन-धन से उनका साथ दिया और उनके कार्यकर्ता जो उनके करीब थे उनके
दुख-दर्द में शरीक हुए। जब के.बी.सहाय दोनों क्षेत्र से चुनाव हार गए तो हम
कार्यकर्ता लोग छज्जुबाग उनके निवास पर बैठकर मायूस हो रहे थे। उनके पुत्र गुतूल
बाबू हमलोगों के साथ बैठकर चुनावी हलचलों पर बातचीत कर रहे थे और हमलोगों की आँखों
में आँसू थे। लगता था हमलोग स्वयं हार गए हैं। अचानक के.बी.सहाय स्वयं बाहर आए और
हमलोगों से हालचाल पूछा। उन्होने कहा कि जो घोडा पर चढ़ता है वही गिरता है। घबड़ाने
की बात नहीं है। उनके इतना ढांधस बंधाने पर हमलोगों की जान में जान आई। हमलोगों का
पीठ थपथपाया। जब बिहार के निर्वाचित मुख्यमंत्री का भार महामाया प्रसाद सिन्हा के
कंधों पर आया, तो चूंकि सतरंगी सरकार थी, आपस में मेल नहीं था तो कुछ समय बाद यह सरकार हिलने लगी। इसी संदर्भ में
बिहार के शेर श्री के.बी.सहाय ने कमर कसकर सतरंगी सरकार को उखाड़ फेंकने का ऐलान कर
दिया। एम.एल.ए. फ्लैट नंबर 18 से मात देने की बिगुल बज गयी। पूरे बिहार में जनता को एकत्रित किया गया।
सरकारी कार्य पंगु हो गए थे। उसी समय के.बी.सहाय ने ‘नव-राष्ट्र’ समाचार पत्र निकाला और उसके माध्यम से सरकार की छवि जनता के सामने
फरमाया। 18 नंबर फ्लैट में रामलखन सिंह यादव, के.के.मण्डल, के.एन.सहाय, राम नारायण बाबू,
लखन सिंह, कैलाश पासवान, केशव दास, राम बाबू आदि लोग शरीक हुए और कार्यकर्तागण महामाया बाबू की सरकार के
खिलाफ जनमत तैयार किया। के.बी.सहाय ने मरहूम बी.पी.मण्डल को बिहार के मुख्यमंत्री
के पद पर (शोषित दल) नाम से किया। आश्चर्य की बात है कि बी.पी.मण्डल लोक-सभा के
सदस्य थे। के.बी.सहाय ने कानूनी रूपरेखा देकर तात्कालिक एम.एल.सी. परमा बाबू (बिहटा शुगर के मालिक) को बिहार
विधान परिषद से त्याग पत्र दिलाकर वह स्थान रिक्त कराकर बी.पी.मण्डल को परिषद का
सदस्य बनाकर मुख्यमंत्री का कार्यभार दिलवाया। वह इतिहास हमारे मरहूम के.बी.सहाय
का था। और दुख की बात है कि कृष्ण बल्लभ बाबू जब पुनः विधान परिषद के चुनाव में
जनता के बीच निर्वाचित हुए तो बिहार के कुछ गद्दारों ने उन्हें 3 जून 1974 को गाड़ी
की दुर्घटना में मरवा दिया।
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