Tuesday 2 June 2020

श्री के. बी. सहाय की याद -आत्मदेव सिंह



श्री के. बी. सहाय की याद
-आत्मदेव सिंह

(कृष्ण बल्लभ सहाय जयंती समारोह, द्वारा 31 दिसंबर 1988 को प्रकाशित स्मारिका से साभार)


जब-जब 31 दिसंबर आता है तो श्री कृष्ण बल्लभ सहाय की याद हो आती है। बिहार में नेता बहुत पैदा हुए लेकिन श्री के.बी.सहाय में जो अलौकिक गुण थे वो गुण किसी बिरले नेता में ही होगा। हर महीने वो सैकड़ों लोगों को महीनवारी देते थे जिन्हें पैसे की खास जरूरत रहती थी। काँग्रेस कार्यकर्ताओं, स्वतन्त्रता सेनानियों के लिए उनका दरवाजा सदा खुला रहता था और यदि कोई भी उनके पास पहुँच जाता वह खाली हाथ नहीं लौटता था। एक बार विधान सभा के एक सदस्य ने कहा कि मुरली हिल्स की लीज में कृष्ण बल्लभ बाबू ने एक लाख रुपये घूस लिए हैं। श्री के.बी.सहाय ने सदन में उठकर कहा कि माननीय सदस्य को मालूम नहीं है, मैंने दो लाख रुपये लिए हैं और उसको लेकर मैंने सदन के नेता बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिन्हा को दे दिये हैं और उन्हीं रुपयों से एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक निकालने की योजना है। उसके बाद ही राष्ट्र-वाणी दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। उसकी जमीन लीज पर ली गयी एवं उसके भवन का निर्माण किया गया जहां आज भारत मेल प्रकाशित हो रहा है।

1937 में पहली बार मिनिस्टरी बनी थी, उस समय भी आप श्रीबाबू के संसदीय सचिव थे। उसके बाद 1946 एवं 1952 आप बिहार मंत्रिमंडल के सदस्य थे। आपके जिम्मे राजस्व, खान, जंगल, भूमि-सुधार और लघु-सिंचाई विभाग थे। आपके लिखे गए नोट्स को देखकर आई.सी.एस. अफसर भी घबड़ाते थे। कई बार आपने वैसे अफसरों की गलतियों को भी शुद्ध किया था। आप बहुत बड़े पार्लियामेंटरियन एवं लिखने-पढ़ने में आपका सानी नहीं था। एक बार श्री के.बी.सहाय के खिलाफ कुछ शिकायतें गांधीजी के पास गयी थी। गांधीजी ने कहा कि के.बी.सहाय को मंत्रिमंडल से हटा दिया जाना चाहिए। श्रीबाबू ने दिल्ली में तुरंत इस्तीफा दे दिया और कहा कि अनुग्रह बाबू जेनेवा जा रहे हैं उन्हें रोक लिया जाये और मुख्यमंत्री का पद उन्हें दे दिया जाये। अंत में सब भौचक्के से रह गए और बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे और श्री कृष्ण बल्लभ सहाय उनके दाहिने हाथ के रूप में कार्य करते रहे।

बिहार में बिहार केसरी डॉक्टर श्रीकृष्ण सिन्हा, बिहार विभूति श्री अनुग्रह नारायण सिंह एवं बाबू कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार कि राजनीति के ऐसे त्रिदेव थे जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। आज हम उन त्रिदेवों के साथ श्री के.बी.सहाय को उनके जन्म-दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होने जमींदारों के शोषण से बिहार को मुक्त किया एवं अनेकों भूमि-सुधार के कार्यों के साथ बिहार के सदाकत आश्रम की टूटी मढ़ैया को एक भवन का रूप दे दिया। बिहार में कोई ऐसा सामाजिक कार्य नहीं था जिसमें के.बी.सहाय का सहयोग नहीं प्राप्त हुआ हो। आप छात्रजीवन में भी बहुत मेधावी रहे और विश्वविद्यालय में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। वे जातिगत राजनीति से बहुत दूर रहे थे। आज बिहार की स्थिति को देखकर कहना पड़ता है कि काश के. बी. सहाय कुछ दिन और रहते तो बिहार का कायाकल्प हो जाता।       

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