Tuesday, 2 June 2020

कृष्ण बल्लभ सहाय -वाल्मीकि चौधरी महामंत्री, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद विचार संस्थान



कृष्ण बल्लभ सहाय
-वाल्मीकि चौधरी
महामंत्री, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद विचार संस्थान

(कृष्ण बल्लभ सहाय जयंती समारोह, द्वारा 31 दिसंबर 1988 को प्रकाशित स्मारिका से साभार)

कृष्ण बल्लभ बाबू के राष्ट्रीय और सार्वजनिक जीवन का इतिहास बिहार के असहयोग आंदोलन का इतिहास है। वह 1920 में महात्मा गांधी के आह्वान पर कॉलेज से उस समय निकले जब उनको स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था और आगे वो महात्माजी की पुकार पर असहयोग न किए होते तो सुखद जीवन के साथ-साथ सरकार में सर्वोच्च पद प्राप्त किए होते- उस सुख और आराम के ख्याल को त्याग कर वर्षों फकीरी अपनाए रहे। केवल फकीरी ही नहीं अँग्रेजी राज के कोपभाजन बनकर जनता जनार्दन की सेवा में लगे रहे।

छोटानागपुर में काँग्रेस का संगठन जो आप देखते हैं वह उन्हीं की देन है। उनमें अद्भुत संगठन शक्ति थी। वह उस जमाने में बिहार के नेताओं में इने-गिने में से एक प्रमुख नेता थे। यह बात अलग है कि जब बिहार में पहले पहल 1937 में काँग्रेस का मंत्रिमंडल बना तो वह मंत्री न होकर संसदीय सचिव बनाए गए पर जो चार मंत्री हुए उनमें से वो भी थे बल्कि कुछ से तो कई क्षेत्रों में अधिक लोकप्रिय और अग्रणी थे। बिहार के काँग्रेस कार्यकर्ताओं की जान पहचान में सबसे ज्यादा नहीं तो किसी से कम भी नहीं थे। कृष्ण बल्लभ बाबू केवल कार्यकर्ताओं से ही परिचय और अपनत्व नहीं रखते थे, बल्कि जब वे मंत्रिमंडल में रहे तो सचिवालय में आए प्रत्येक संचिका के पन्ने से परिचित रहते थे। इस तरह वो बिहार की सारी समस्याओं से अवगत रहते थे और उनका समाधान भी करते थे।

बिहार राज्य सामंतों और जमींदारों का राज्य माना जाता रहा है- इस सामंतशाही जमींदारी प्रथा के वे कट्टर विरोधी थे और उस विरोध को उन्होने सही समय में सही रास्ते से प्रगट कर बिहार से जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया। बिहार विधान सभा में कृष्ण बल्लभ बाबू के बयान और राष्ट्रीय नेताओं के पास उनके पत्र काँग्रेस मंत्रिमंडल के उज्ज्वल इतिहास के रूप में है।

कृष्ण बल्लभ बाबू संचिका के साथ उसमें जो समस्याएँ रहती थी उसे सुलझाने में जो इंसाफ करते थे वो किसी समय किसी भी मंत्रिमंडल के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं। मंत्रियों में वैसे काम करने वाले बहुत कम हुए। कम क्यों न हों? दिन-प्रतिदिन और कम होते जाएंगें यदि वैसे काम करने वालों से प्रेरणा नहीं लेंगें तो। पुराने लोगों को भुलाते जा रहे हैं यह भी गिरावट का कारण है। संगठन के संबंध में, काम करने की शक्ति के संबंध में, कार्यकर्ताओं के प्रति समर्पित भावना के संबंध में, जिसका साथ दिया उसको कभी नहीं छोड़ा। ऐसे-ऐसे कितने गुण उनमें थे जिसको दो चार पन्नों में नहीं लिखा जा सकता है।

कृष्ण बल्लभ बाबू की जयंती के अवसर पर यह स्मारिका उनके बहुत सारे गुणों को उजागर करेगी और आगे इस संबंध में अधिक से अधिक खोज कर पूर्ण कागजात निकाले जाएँ –सबको इकट्ठा कर पुस्तक तैयार हो इसका प्रयत्न होना चाहिए।
      


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