Wednesday, 15 April 2020

कृष्ण बल्लभ बाबू- एक असाधारण व्यक्तित्व -कृष्ण नन्दन सहाय, महापौर, पटना



कृष्ण बल्लभ बाबू- एक असाधारण व्यक्तित्व


-कृष्ण नन्दन सहाय, महापौर, पटना

(कृष्ण बल्लभ सहाय जयंती समारोह, द्वारा 31 दिसंबर 1988 को प्रकाशित स्मारिका से साभार)


यो तो बिहार में अब तक एक दर्जन से अधिक मुख्यमंत्री हो चुके हैं और सबों ने कुछ न कुछ काम ऐसा किया ही है जो प्रशंसनीय कहा जा सकता है। किन्तु बिहार के दो ऐसे मुख्यमंत्री हुए जो न केवल प्रांत की नीव को मजबूत करने में प्रयत्नशील रहेबल्कि उनका प्रशासनिक दृष्टिकोणकार्यकलाप और उनका सम्पादन भी अति श्रेस्ठ श्रेणी का माना जाता रहा है। प्रथम मुख्यमंत्री बिहार गौरव स्वर्गीय डॉक्टर श्रीकृष्ण सिन्हा के बारे में अब तक बहुत कुछ कहा जा चुका है और इस वर्ष तो शताब्दी वर्ष होने के नाते कई समारोह भी मनाया जा रहा हैजिसमें माननीय प्रधानमंत्री तक सम्मिलित हो चुके हैं। दूसरे हैं- स्वर्गीय कृष्ण बल्लभ सहायजिनके बारे में निसंदेह बहुत लोग अब तक खामोश ही हैं। जो भी कारण होपर मैं ऐसा मानता हूँ कि यह बिहार के प्रति भी हमारा गलत कदम है।


समय की शिला पर कुछ लकीरें ऐसी जरूर खींच जाती हैं जो समय के धोने से मिटती नहीं और वर्षों बीत जाने पर भी अपनी कहानी स्वयं कहने की शक्ति प्राप्त कर लेती है। कृष्ण बल्लभ बाबू अति साधारण परिवार में जन्म लेकर भी कर्तव्य,निष्ठा ईमानदारी और साफ़गोई के कारण एक महत्वपूर्ण मुख्यमंत्री कहलाते रहे। आरंभ से ही अत्यंत मेधावी छात्र होने के कारण उनकी समझबूझ भी असाधारण रही।


मैं उन व्यक्तियों में हूँजिनको कृष्ण बल्लभ बाबू को समीप से देखने का काफी मौका मिला। मेरे लिए न तो समय की पाबंदी थी और न कोई रुकावट। वो आराम कर रहे हों या संचिकाओं में उलझे रहे होंमैं निःसंकोच उनके पास जाकर बैठ सकता था। मुझसे पारिवारिक बातें करने में भी उन्हें संकोच करते नहीं देखा। अफसरों के नाम जैसे उन्हें कंठस्थ थे। इतना ही नहींहर अफसर और उसकी क्षमता के बारे में उन्हें पूरा-पूरा ज्ञान रहता था। वे काम भी करते जाते थे और मुझसे बातें भी। एक रोज़ सहसा उन्होने अपने पी.ए. को बुला कर कहा- ‘इस अफसर को टिप्पणी लिखने का सऊर नहीं है। इसे बुलवाइए। मैं इससे बात करूंगा। न मुझे यह हिम्मत हुई कि मैं उस अफसर का नाम उनसे पूछ सकूँ और ना उन्होने स्वयं ही उनका नाम बताया। संचिकाओं को पढ़ने और छिपी बातों को ढूंढ निकालने में वे माहिर थे। मैंने देखा है कि विभागीय सचिव ने अपनी टिप्पणी दी है और उसकी पुष्टि के लिए संचिका में कई पताका लगा कर भेजा है और मिनटों में श्री सहाय पन्नों को उलटकर और देखकर सचिव के मंतव्य से विपरीत अपना मंतव्य लिखा है और कुछ और पन्नों में पताका लगाकर संचिका को लौटा दिया हैयह कहकर कि सचिव इन मुद्दों को भी पढ़े और तब अपना मंतव्य दें।

यह एक छोटा सा उदाहरण है कि वे प्रशासनिक कार्यों को किस गरिमा से ढँक कर काम किया करते थे। सुबह 3-4 बजे उठकर टेबल पर बैठ जाना और 9 बजे तक संचिकाओं के अंबार को समुचित टिप्पणियों और आदेशों के साथ निकाल देनाउनकी आदत बन गयी थी। मुझे लगता है कि वे काम के बिना जी नहीं सकते थे। किस प्रकार बिहार को सजाया संवारा जायेयह उनकी व्यथा भरी इच्छा थी।

कृष्ण बल्लभ बाबू चुनाव खर्च के लिए काँग्रेस नुमाइंदों को पैसे से मदद करते थे और उसमें यह भेद-भाव नहीं रखते थे कि उनके ग्रुप का कौन है और कौन उनके ग्रुप का नहीं है। एक बार उन्होने मुझको उत्तर बिहार के काँग्रेस प्रत्याशियों के लिए बंद लिफाफे में रुपये दिये उनके पास पहुंचाने के लिए। उनमें से कई नाम ऐसे थेजो कृष्ण बल्लभ बाबू के हिमायती नहीं थेबल्कि बराबर उनके खिलाफ रहते थे। मैं अचंभे में पड़ गया और उनसे पूछने लगा कि क्या उनलोगों को भी रुपये देने हैं। उन्होने छूटते कहा कि यह क्यों भूलते हो कि वो काँग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। यह थी उनकी महानता। यह न केवल इलैक्शन में खर्च करने तक सीमित था बल्कि काँग्रेसजनों की बच्चियों की शादीउनके बच्चों की पढ़ाई या उनके ऊपर विपत्ति पड़ा हो इन सब में कृष्ण बल्लभ बाबू उनकी मदद में आगे रहते थे।

आज हम उन्हें याद करते हैं वो सब उनके व्यक्तित्व से छोटा पड़ता है। कर्मठता और स्पष्टवादिता में विश्वास करने वाले कृष्ण बल्लभ बाबू के बारे में आज भी अफसरों का कहना है कि उनके जैसा मुख्यमंत्री कम ही होता है।

भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ कि कृष्ण बल्लभ बाबू जैसा कर्मठ और संतुलित प्रशासक को बिहार को सँवारने का मौका बार-बार मिलना चाहिएताकि जिस प्रांत के पिछड़ेपन को लेकर हम आज रोते हैंवह दूर हो सके और एक ऐसे बिहार का निर्माण होजो देश के नक्शे पर चमकता हुआ प्रांत दिखलाई पड़े।              

 




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