Wednesday, 26 February 2025

कृष्ण बल्लभ सहाय का व्यक्तित्व - श्रीमती प्रमोदिनी सिन्हा (26/02/2025)

यह लेख उपरोक्त संग्रह से लिया गया है। 

 कृष्ण बल्लभ सहाय का व्यक्तित्व

श्रीमती प्रमोदिनी सिन्हा

सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करनेवाले बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म 31 दिसंबर 1898 ईस्वी में पटना ज़िले के शेखपुरा गाँव में एक मध्यम वर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था। श्री सहायजी ने बड़ी ही ईमानदारी, लगन और मेहनत से, कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए अपने आप को इस योग्य बनाया कि एक दिन वे बिहार के प्रथम व्यक्ति हो सके।


श्री सहायजी की प्रारम्भिक शिक्षा पी.एन. एंग्लो स्कूल में आरंभ हुई। कुछ कक्षाएँ राम मोहन रॉय सेमीनारी से भी पास की। फिर हजारीबाग ज़िला स्कूल में नाम लिखाया। वहीं पर स्कूल शिक्षा समाप्त कर हजारीबाग के सैंट कोलम्बस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और 1919 में अँग्रेजी स्नातक की परीक्षा प्रतिष्ठा के साथ पास की। विश्वविद्यालय में वे अव्वल आए और उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। इनकी तीव्र इच्छा कानून पढ़ने की थी। अतः इन्होंने पटना कॉलेज में कानून और एम.ए. की पढ़ाई साथ-साथ शुरू की। ये अत्यंत ही मेधावी छात्र थे। इनकी स्मरण शक्ति अत्यंत तीव्र थी एवं प्रत्येक विषय को अपनी कुशाग्र बुद्धि द्वारा समझ कर फिर ग्रहण करने का प्रयास करते थे। जो पुस्तक एक बार पढ़ लेते थे, जल्दी नहीं भूलते थे।


तात्कालिन राजनीतिक परिस्थितियों के प्रभाव में श्री के.बी. सहाय अपने आप को पृथक नहीं रख सके। दिन-प्रतिदिन की घटनाएँ उनके मानस पर एक-एक कर अपना अमिट छाप छोड़ती जा रही थी। यही कारण है कि जब 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया, इन्होंने इस आंदोलन में भाग लेने के निमित्त अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी। वर्ष 1912 में राष्ट्रीय महाविद्यालय की स्थापना हुई थी। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके प्राचार्य नियुक्त हुए और श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने इस महाविद्यालय में अँग्रेजी पढ़ाने का भार अपने कंधे पर लिया।


सन 1923 में देशबंधु चित्तरंजन दास ने स्वराज पार्टी की स्थापना की। श्री के.बी. सहाय को बिहार शाखा का सचिव बनाया गया। इसके साथ ही ये बिहार और उड़ीसा परिषद के लिए चुने गए जिसपर ये छ वर्षों तक रहे। उन दिनों विधान मण्डल में एक सदन हुआ करता था। ये अनेक क्रांतिकारी व्यक्तियों एवं संस्थाओं से सम्बद्ध थे। कहते हैं कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी जब जेल की दीवार फाँद कर भागे थे उस समय उनके लिए बिस्तर पर वे ही हाजरी बोलने के लिए लेटे। इस प्रकार निर्भीकता, अदम्य साहस एवं उत्साह का इन्होंने परिचय दिया।


सन1927 में स्थापित पटना युवक संघ के ये अध्यक्ष चुने गए। इसका मुख्य उद्देश्य था –सशस्त्र विद्रोह कर भारत माता की बेड़ियों को काटकर उसे स्वतंत्र कराना।  देवघर षड्यंत्र केस का जब ट्रायल चल रहा था तो उन्होंने असीम साहस का परिचय देते हुए दुमका जाकर अपनी आखों से ट्रायल देखा और निर्भीकतापूर्वक इन घटनाओं से संबन्धित एक लेख लिखा जो 8 जनवरी 1928 के सर्चलाइट प्रैस में छपा। सन 1930 से 1934 के बीच स्वतंत्र संग्राम में भाग लेने के कारण इन्हें चार बार जेल हुई। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तो वे स्वतन्त्रता सेनानियों के मध्य अग्रणी रहे। सन 1942 में मौलाना मजरूल हक़ के जेल जाने के बाद अँग्रेजी साप्ताहिक द मदरलैंड का इन्होंने सम्पादन किया। इस पत्रिका से ये पहले से ही जुड़े हुए थे।  


सन 1937 से 1946 के मध्य जब बिहार में श्रीकृष्ण सिन्हा का मंत्रिमंडल बना तो इनको संसदीय सचिव चुना गया। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्वतंत्र भारत के बिहार प्रांत में कृष्ण बल्लभ सहाय प्रथम राजस्व मंत्री बनाए गए। बिहार में लॉर्ड कार्नवालिस के समय से ही दमनकारी बंदोबस्ती चला आ रहा था। अतः यहाँ के जमींदारों को उनकी जमींदारी से च्युत करना कोई सरल बात नहीं थी। किन्तु वहाँ भी इन्होंने अपनी साहस और कर्मठता का परिचय देते हुए, सबकी आलोचना-प्रत्यालोचना की परवाह किए बगैर, जमींदारी उन्मूलन को कानूनी जामा पहना ही दिया।


सन 1963 में कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार प्रांत के मुख्यमंत्री हुए। सन 1963 से 1967 तक इन्होंने इस पद की शोभा बढ़ाई। सन 1967 में आम चुनाव की घोषणा हुई और पटना निर्वाचन क्षेत्र से श्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने इन्हें पराजित कर दिया, तथा बिहार में प्रथम सविंद सरकार की स्थापना हुई जिसमें श्री सिन्हा मुख्यमंत्री चुने गए। इसी सविंद सरकार ने इन पर अय्यर आयोग बैठाया था। पुनः 1974 में श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने स्वशासी निकाय निर्वाचन क्षेत्र से भारी मतों से विजय प्राप्त की।


परंतु नियति को यह मंजूर न था और शपथ ग्रहण करने के पूर्व ही हजारीबाग जाते समय कृष्ण बल्लभ सहाय की गाड़ी को किसी ट्रक ने पीछे से धक्का दे दिया। इस दुर्घटना में भारत माँ का एक सच्चा सिपाही सदा-सदा के लिए 3 जून 1974 को माँ की गोद में विलीन हो गया। यह भी एक विचित्र बात है कि जिस बिहार और उड़ीसा विधान परिषद की सदस्यता से कृष्ण बल्लभ सहाय ने अपना संसदीय जीवन प्रारम्भ किया था, पचास वर्षों के बाद पुनः उसी विधान परिषद से सदस्य निर्वाचित होकर इन्होंने अपने संसदीय जीवन का समापन किया।


राजनीतिक जीवन में अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी श्री कृष्ण बल्लभ सहाय परिवार के प्रति कभी उदासीन नहीं रहे। जब भी जो भी समय मिलता ये उसी में सबकी पढ़ाई-लिखाई की ओर ध्यान देते। इनको कई सन्तानें थी। ये सभी की इच्छा पूरी करने के लिए सदैव प्रयास करते।


उच्च से उच्च पद पर पहुँचने पर भी इन्होंने कभी शान- शौकत नहीं की। सदैव खादी की मोटी धोती, कुर्ता और गांधी टोपी ही प्रयोग करते और उसे भी खुद अपनी हाथों से ढोते-फिचते। इस प्रकार दो-तीन सेट कपड़े में ही अपना काम चला लेते थे। वे खानपान में भी उदासीन थे। दाल-भात और आलू का भर्ता उनका प्रिय भोजन था। श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का नियम था- नित्य प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर छोड़ देना, चाहे सर्दी हो अथवा गर्मी या बरसात। इसी समय ये ऑफिस की फाइलें देखते। फाइलों के मामले में ये कभी अपने सेक्रेटरी पर निर्भर नहीं रहते वरन पूरी की पूरी फाइल एक-एक शब्द ध्यान से पढ़ते और तब उस पर टिप्पणी लिखते। यही कारण है कि बिहारवासी आज भी उन्हें भूल नहीं पाये हैं। उनकी प्रशासनिक योग्यता की सदैव प्रशंसा की जाती है।              

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