बीरचंद पटेल |
कृष्ण बल्लभ सहाय |
1963 में कामराज योजना के तहत बिहार के तात्कालिक मुख्यमंत्री पंडित बिनोदानंद झा को जब मुख्यमंत्री पद से हटाकर पार्टी संगठन के काम में लगाया गया तब एक साल के भीतर ही एक बार पुनः बिहार काँग्रेस विधायक दल के नेता के लिए चुनाव जरूरी हो गए।
ज्ञातव्य
रहे कि 1962 में चुनाव के उपरांत काँग्रेस विधायक दल के नेता पद के लिए हुए चुनाव
में कृष्ण बल्लभ बाबू की पंडित बिनोदानंद झा के हाथों हार हुई थी। दरअसल अपनी
काबिलियत के बावजूद कृष्ण बल्लभ बाबू जातिगत समीकरण बनाने में असफल रहे थे और
पंडित बिनोदानंद झा के ब्राह्मण, राजपूत गठबंधन के समक्ष
टिक नहीं पाये थे। पंडित बिनोदानंद झा कृष्ण बल्लभ बाबू के प्रति सदा सशंकित रहते
थे। अतः अपने मंत्रिमंडल में उन्होंने उन्हें अपेक्षित कम महत्वपूर्ण सहकारिता
विभाग का मंत्री बनाया। ये और बात थी कि कृष्ण बल्लभ बाबू ने बतौर सहकारिता मंत्री
भी अपनी काबिलियत से सबों को, खासकर पंडित जवाहरलाल नेहरू, को चमत्कृत कर दिया। कृष्ण बल्लभ बाबू का मानना था कि सहकारिता द्वारा ही
ग्रामीण स्वराज्य संभव है। आज उनके जाने के लगभग पचास वर्षों बाद जुलाई 2021 में भारत
सरकार द्वारा एक अलग सहकारिता मंत्रालय की स्थापना किया जाना एक दृष्टि से स्वराज की
स्थापना में सहकारिता के महत्व की स्वीकारोक्ति है। ‘सहकारिता
से समृद्धि’ की जो बात आज 2021में भारत सरकार एक अलग मंत्रालय
की स्थापना कर, कर रही है उसकी बात आज से साठ वर्षों पहले 1963
में कृष्ण बल्लभ बाबू करते थे और इसे अमल में भी लाने में सफल रहे थे। यह कृष्ण बल्लभ
बाबू की विलक्षण दूरदर्शिता का परिचायक है।
1963
में जमशेदपुर में जमशेदपुर-गोलमुरी को ओपेरटिव द्वारा आयोजित एक समारोह में कृष्ण बल्लभ
बाबू ने कहा था ‘गरीब जनता के लिए
असली स्वराज्य की परिकल्पना सहकारिता क्रांति से ही संभव है’। इस विजन पर अमल करते हुए
उन्होंने जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए उससे यह विभाग कृषि एवं सम्बद्ध क्रियाकलापों
यथा दुग्ध एवं मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन और ग्रामीण लघु
एवं कुटीर उद्योगों यथा बुनकरों और काश्तकारों के बीच एक मजबूत कड़ी बनकर उभरा। इस
विभाग ने ग्रामीण रोजगार के नए अवसर पैदा किए जिसके लिए केंद्रीय दल ने भी इस
विभाग के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तो
1963 में जब काँग्रेस विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए काँग्रेसी विधायक सदाकत
आश्रम में एकत्रित हुए तब एक ओर कृष्ण बल्लभ बाबू थे तो दूसरी ओर उनके समक्ष
बीरचंद पटेल थे जिन्हें पंडित बिनोदानंद झा का समर्थन प्राप्त था। इस बार कृष्ण
बल्लभ बाबू ने अपने पत्ते सही रखे थे। कोइरी, कुर्मी, और यादव के ‘त्रिवेणी संघ’ की
मदद से वे चुनाव जीतने में सफल रहे। विधायक दल के नेता पद के लिए हुए चुनाव में कृष्ण
बल्लभ बाबू विजयी हुए और बिहार के चौथे मुख्यमंत्री बने। किन्तु कृष्ण बल्लभ बाबू
अपने पूर्ववर्ती की तरह प्रतिशोधी नहीं थे और बीरचंद पटेल के साथ उन्होंने वैसा
सलूक नहीं किया जैसा उनके साथ हुआ था। बीरचंद पटेल की योग्यता को ध्यान में रखते
हुए उन्होंने श्री पटेल को अपने मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्रालय का महत्वपूर्ण
विभाग सौंपा। कृष्ण बल्लभ बाबू बीरचंद पटेल को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। उन्हें
पता था कि श्री पटेल को उनके खिलाफ उनके विरोधियों द्वारा खड़ा करवाया गया था।
इसलिए इन दोनों में इस मुद्दे को लेकर कभी कोई वैमनष्य नहीं रहा। कृष्ण बल्लभ बाबू
में यह गुण था कि किसी ने उनकी कभी भी किसी प्रकार की मदद की हो तो वे उसे जीवनपर्यंत
याद रखते थे और किसी न किसी तरीके से उसका मूल्य अवश्य चुका देते थे। 1957-1962 के
बीच कृष्ण बल्लभ बाबू मंत्री तो क्या विधायक भी नहीं थे। तब बतौर स्वास्थ्य मंत्री
बीरचंद पटेल ने उनके पुत्र की रांची में चिकित्सा के उत्तम प्रबंध करवाए थे। मदद
की बाबत इस बात की पुष्टि स्वयं कृष्ण बल्लभ बाबू ने बिहार विधान सभा में एक बहस
के दौरान की थी। कृष्ण बल्लभ बाबू पर बीरचंद पटेल का यह मदद उधार स्वरूप बकाया था।
बीरचंद पटेल को कृष्ण बल्लभ बाबू ने कभी अपना प्रतिद्वंदी नहीं वरन अपना मित्र ही
माना। इसलिए कृष्ण बल्लभ बाबू ने उन्हें राजस्व विभाग का महत्वपूर्ण मंत्रालय की
ज़िम्मेदारी सौंप कर पुराना उधार चुकाया।
नवंबर
1963 में जब राष्ट्रीय विकास परिषद ने तीसरी पंचवर्षीय योजना के मध्यावधि
मूल्यांकन के बाद भूमि-सुधार कार्यान्वयन कमिटी का गठन किया तब कृष्ण बल्लभ सहाय के
अनुभव और योग्यता को देखते हुए उन्हें इस कमिटी के सदस्य के तौर पर चुना गया। इस
कमिटी के अध्यक्ष भूतपूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नन्दा थे। कृष्ण बल्लभ बाबू
इस कमिटी की मीटिंग के सिलसिले में जब भी दिल्ली गए राजस्व मंत्री बीरचंद पटेल के साथ
गए। इन दोनों ने इस कमिटी के मेम्बर के बतौर भूमि-सुधार के लिए महत्वपूर्ण
अनुशंसाएँ दी जिसे राष्ट्रीय विकास परिषद ने स्वीकार भी किया।
कृष्ण
बल्लभ बाबू के मुख्यमंत्रित्व काल में एक बार पुनः भूमि-सुधार के अपूर्ण कार्यों
पर काम शुरू हुआ। बीरचंद पटेल ने भूमि-सुधार से संबन्धित कई कानून विधानसभा से
पारित किए और कुछ क़ानूनों में संशोधन किए गए। इस दौरान इन दोनों ही नेताओं के बीच
जो तारतम्य था वो देखते ही बनता था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण विधेयक बिहार भूमि
सुधार (सीलिंग क्षेत्रों का निर्धारण और अधिशेष भूमि का अधिग्रहण) एक्ट, 1964 था। इस कानून द्वारा प्रत्येक परिवार के लिए अधिकतम भूमि सीमा का
निर्धारण किया गया था और अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण कर भूमिहीनों के बीच वितरण का
प्रस्ताव था। एक बार पुनः यह विधेयक कानूनी जटिलताओं और विधानसभा में टलताऊ बहसों
में उलझा किन्तु कृष्ण बल्लभ बाबू और श्री पटेल इस विधेयक को पारित करवाने में सफल
रहे। इस काल में छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट और संथाल परगना टेनेन्सी एक्ट में
संशोधन किए गए।
एक अन्य महत्वपूर्ण विधेयक बिहार शहरी भूमि कर
एक्ट 1964 था जिसके तहत शहरी भूमि एवं मकानों पर कर लगाने का प्रस्ताव था। इस
विधेयक का सबसे अधिक विरोध समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने किया। सदस्यों के विरोध
का जवाब बीरचंद पटेल ने संजीदगी से दिया। इस अवसर पर दिया गया उनका भाषण रोचक था।
उन्होंने विपक्ष को जवाब देते हुए कहा-‘कहते है
प्यार सोच-समझ कर नहीं किया जाता। इसी प्रकार कर लगाकर कोई भी सरकार लोकप्रिय नहीं
होती। किन्तु यह कर लगाना हमारी मजबूरी है क्योंकि शहरीकरण के इस दौर में शहरों
में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है और यह तभी संभव जब इसके लिए
अतिरिक्त धनराशि की व्यवस्था की जाये। यह कर इसीलिए प्रस्तावित है’। एक समाजवादी सदस्य के इस प्रश्न पर कि ‘यदि किसी
के पास शहर में दस बीघा जमीन हो और वो झोपड़ी में रहे तो क्या उस पर इस कानून के
तहत कर की देनदारी बनेगी’?, बीरचंद पटेल ने विपक्ष को ऐसे प्राक्कल्पनात्मक प्रश्नों से इस टैक्स की
उपादेयता पर संशय व्यक्त करने से बाज आने की नसीहत देते हुए जो जवाब दिया वह भी
समाजवाद की काफी रोचक व्याख्या कर गया-‘आप झोपड़ी का नाम लेकर गरीबों को इस टैक्स में
फंसाना चाहते हैं। आप समाजवादी काम करते हैं अमीरों का और नाम लेते हैं गरीबों का।
आप बड़े-बड़े साहूकारों और अमीरों से पाँच रुपये सैकड़ा लें तो हम भी आपका हाथ मजबूत
करने के लिए तैयार हैं। किन्तु आपका समाजवाद ऐसा है कि एक गज़ कपड़ा और दस गज़
कपड़ा बदन पर रखने वाले आदमी से एक-एक गज़ कपड़ा लेने की बात हो तो आपके समाजवाद में
एक गज़ कपड़ा रखने वाला नंगा हो जाये और दस गज़ कपड़ा रखने वाला व्यक्ति नौ गज़ कपड़ा रख
ले। आपके कथनानुसार आलीशान मकान में रहनेवाले अमीरों से भी सरकार वही कर
ले जो शहरों में झोपड़ी में रहने वालों गरीबों से ले। यह सोच सस्ती लोकप्रियता पाने
और सस्ते नेतृत्व देनेवाले दलों का है, हमारी पार्टी का काम
कभी ऐसा नहीं हो सकता। 1960 में टाटा को आपने ज़मीन लौटा दिया जिससे सरकार को
प्रत्येक वर्ष सात लाख रुपये का घाटा हो रहा है। आप समाजवादी टाटा को रियायत देना
चाहते हैं बड़े लोगों को और बड़ा बनाना चाहते हैं और छोटे लोग मारे जाते हैं’। बीरचंद पटेल के इस धाराप्रवाह वक्तव्य ने विपक्ष की बोलती बंद कर दी।
अंततः यह एक्ट पारित हुआ और सरकार शहरी विकास के लिए संसाधन की व्यवस्था कर
पायी।
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