Friday 13 November 2020

हमारी विरासत, हमारी धरोहर: 6: पंडित जवाहर लाल नेहरू एवं कृष्ण बल्लभ सहाय (14/11/2020)
















12 मार्च 1951 को महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह ऑफ दरभंगा बनाम बिहार सरकार केस में अपना फैसला सुनाते हुए पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार में राजस्व मंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय द्वारा प्रस्तुत और बिहार विधान सभा में पारित बिहार भूमि सुधार कानून (एक्ट XXX ऑफ 1950) को संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त बुनियादी अधिकारों में से एक ‘समानता का अधिकार’ (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन मानते हुए निरस्त कर दिया। जमींदारों में हर्ष की लहर दौड़ गयीहालांकि इंसाफ के अन्य मुद्दों पर पटना उच्च न्यायालय ने इस कानून को सही पाया था। पटना उच्च न्यायालय ने यह माना- (i) कि बिहार विधान मण्डल यह कानून बनाने के लिए सक्षम है(ii) कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 31(1) का उल्लंघन नहीं है(iii)कि इस कानून द्वारा जमींदारी का अभिग्रहण लोक-उद्देश्य से किया गया है(iv) कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 31 (4) के अनुरूप है(v) कि यह कानून अनुच्छेद 19(1)(f) के अंतर्गत ‘संपत्ति के अधिकार’ का हनन नहीं है(vi) कि इस कानून द्वारा कार्यपालक को दी गयी शक्तियाँ अनुज्ञय (जायज़) है,  और यह (vii) कि यह कानून संविधान के साथ कोई धोखा (फ्रॉड) नहीं है। किन्तु केवल ‘समानता के अधिकार’ का उल्लंघन मानते हुए उच्च न्यायालय ने इस कानून को निरस्त किया।

जमींदारी उन्मूलन के लिए पिछले चार-पाँच वर्षों में बिहार में कृष्ण बल्लभ बाबू के प्रयास से पंडित जवाहर लाल नेहरू अच्छी तरह वाकिफ थे। वे इस तथ्य से भी वाकिफ थे कि जमींदारी उन्मूलन पर इससे बेहतर कानून की व्याख्या नहीं की जा सकती। दरअसल 1949 में कॉंग्रेस द्वारा भूमि सुधार पर गठित कुमारप्पा कमिटी की जो अनुशंसाएँ थीबिहार जमींदारी उन्मूलन कानून उन सभी अनुशंसाओं पर खरा उतरता था। मसलन सरकार और किसानों के बीच के सभी बिचौलियों (जमींदार) को खत्म किया जाये(ii) भूमि का मालिक ज़मीन जोतने वाला हो(iii) जोत की अधिकतम सीमा निर्धारित हो(iv) दरकिराएदारी/ बटाईदारी केवल महिलाविधवा एवं अव्यस्क के लिए वैध हो  आदि आदि। तथापि कॉंग्रेस में ही एक वर्ग इस मुद्दे पर धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहता थाअथवा यों कहें बढ़ना ही नहीं चाहता थाक्योंकि उस समय बिहार एवं उत्तर प्रदेश के हिन्दी क्षेत्र से आनेवाले कॉंग्रेस के लगभग तमाम वरिष्ठ नेता या तो स्वयं जमींदार थे अथवा जमींदारों के एहसानों तले दबे होने की वजह से उनके प्रति वफादार। ऐसे में तात्कालिक प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कृष्ण बल्लभ बाबू के पक्ष में खुलकर सामने आए। जमींदारी उन्मूलन कानून का निरस्त होना कॉंग्रेस की समाजवादी सोच और मिश्रित अर्थव्यवस्था पर चोट था। अतः इसे बहाल करने के लिए संविधान में संशोधन आवश्यक हो गया था और जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा करने में कोई संकोच नहीं किया।

10 मई 1951 को प्रथम संविधान संशोधन प्रस्ताव संसद में पेश करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस संशोधन के विषय वस्तु के कथन और कारण पर प्रकाश डालते हुए कहा था ‘पिछले पंद्रह महीनों में संविधान सम्मत कार्य करते हुए इसमें प्रदत्त बुनियादी अधिकारों के संदर्भ मेंअनुच्छेद 31 (4) एवं (6) के बावजूदन्यायिक निर्णयों से पिछले तीन वर्षों में राज्य सरकार द्वारा पारित भूमि-सुधार कानून की वैध्यता पर उपजे विवादों ने आम जन को प्रभावित किया है। अतः यह प्रस्ताव है कि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जमींदारी उन्मूलन से संबन्धित कानून को संवैधानिक आधार प्रदान किया जाये ताकि भविष्य में कोई कठिनाई न हो। यह प्रस्ताव किया जाता है कि जमींदारी उन्मूलन से संबन्धित कानून को एक अलग अनुसूची में स्थान दिया जाये और अनुच्छेद 31 द्वारा प्रदत्त अधिकार के अप्रतिबंधित उपयोग पर अनुच्छेद  31B  द्वारा सीमित किया जाये।

प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ रोहींग्टन नरीमन के अनुसार ऐसा विश्व में पहली बार हो रहा था जब संविधान संशोधन द्वारा संविधान के किसी अनुच्छेद के उपयोग पर इस प्रकार बंदिश लगाया गया हो। किन्तु ऐसा हुआ और इसके परिप्रेक्ष्य में था कृष्ण बल्लभ बाबू का जमींदारी उन्मूलन कानून।  

संविधान संशोधन के खिलाफ महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 2 मई 1952 को अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने जमींदारों की याचिका को रद्द करते हुए बिहार भूमि-सुधार कानून (बिहार एक्ट XXX ऑफ 1950)जिसे बोलचाल की भाषा में जमींदारी उन्मूलन कानून कहते थेको वैध करार दिया। यह कृष्ण बल्लभ बाबू की जीवटता एवं जवाहरलाल नेहरू की कर्मठता का ही नतीजा था कि 1793 में लॉर्ड कोर्नवालिस द्वारा लाया गया परमानेंट सेटलमेंट एक्ट सुपुर्दे इतिहास हुआ।

1963 में कृष्ण बल्लभ सहाय ने जब बिहार का मुख्यमंत्री पद संभाला तब जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे। के.बी.सहाय के मुख्यमंत्रित्व काल में ‘आधुनिक भारत के मंदिरों’ के उदघाटन अथवा शिलान्यास के सिलसिले में जवाहरलाल नेहरू का कितनी ही दफा बिहार का दौरा हुआ। इन दोनों के बीच के इस दौर की बातें फिर कभी।      

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