आज 11 नवंबर जीवतराम भगवनदास कृपलानी यानि जे.बी. कृपलानी का जन्म दिन है। जे. बी. की जन्म-जयंती पर प्रस्तुत है यह ब्लॉग जो उनके और के.बी.सहाय के बीच के पत्राचार पर आधारित है।
1946 में राजस्व-मंत्री बनने के बाद से कृष्ण बल्लभ बाबू की प्राथमिकता जमींदारी उन्मूलन से संबन्धित कानून का मसौदा तैयार करवाकर इसे बिहार विधान सभा से पारित करवाने की थी। कृष्ण बल्लभ सहाय इस दिशा में प्रयासरत हैं इसकी भनक उनके विरोधियों यानि रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह और दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह को भी थी। इन विरोधियों ने कृष्ण बल्लभ बाबू को भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने का षड्यंत्र रचा ताकि इसी बहाने उन्हें राजस्व-मंत्री से पदच्युत किया जा सके। इसके लिए उन्होंने हजारीबाग के ही कुछ ऐसे स्थानीय काँग्रेसी नेताओं को चुना जो कृष्ण बल्लभ बाबू की लोकप्रियता से कुंठित थे। उन्हें कृष्ण बल्लभ सहाय फूटी आँख न सुहाते थे क्योंकि अपनी प्रतिभा, संगठनात्मक योग्यता एवं अनवरत जुनूनी परिश्रम के बल पर कृष्ण बल्लभ बाबू पिछले पच्चीस वर्षों में छोटानागपुर क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली कांग्रेसी नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। इस षड्यंत्र को अमली जामा पहनाते हुए तात्कालिक काँग्रेस अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी को पत्र द्वारा कृष्ण बल्लभ सहाय के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया। यह पुलिंदा कुल 22 शिकायतों का आरोपपत्र था जिसके मद्देनजर काँग्रेस अध्यक्ष से के.बी. पर अनुशासनात्मक कारवाई की अपील की गई थी। जे.बी. कृपलानी ने 1947 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से काँग्रेस के अध्यक्ष का पद भार संभाला था। यह संजोग ही है कि इन दोनों ही शख़्सियतों की जन्म की तारीख एक ही है- 11 नवंबर। खैर, इस पत्र के आधार पर जे.बी. ने के.बी. को 25 जून 1947 को पत्र लिखकर इन आरोपों पर जवाब तलब किया। शिकायतकर्ताओं में तीन ज़िला स्तर के काँग्रेसी नेता शामिल थे- ज़िला काँग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष राम नारायण सिंह, हजारीबाग ज़िला महिला खादी केंद्र की अध्यक्षा श्रीमती सरस्वती देवी एवं मोहम्मद सलेह। शिकायतकर्ताओं ने ऐसे-ऐसे शिकायत किए थे जो कहीं-कहीं हास्यास्पद भी हो गए थे – मसलन के.बी. अपने वेतन से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद करते हैं (जिसकी सूचना के.बी. ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को भी दे रखी थी), -कि राजा कामाख्या को जंगल काटने के दंडस्वरूप अपने अधिकारियों द्वारा उन्हें अरेस्ट करवाया है जबकि ग्रामीणों को उसी जंगल से लकड़ी लेने की स्वतन्त्रता दे रखी है जो कि के.बी. द्वारा पारित वन संरक्षण कानून के खिलाफ है, - कि के.बी. ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को श्रीमती सरस्वती देवी के खादी केंद्र जाने से रोका था, - कि पटना के बाशिंदा होने के बावजूद के.बी. हजारीबाग से स्वतन्त्रता संग्राम में भागीदारी करते हैं, - कि के.बी. की कतिपय उद्योगपतियों से निकटता है जो उनकी पैसे से मदद करते हैं (इन उद्योगपतियों से मिले समस्त सहयोग राशि की सूचना के.बी. ने डॉ राजेंद्र प्रसाद बराबर दिया करते थे; और तो और एक एक पैसे का हिसाब-किताब ज़िला कॉंग्रेस कमिटी द्वारा ही रखा जाता था), -कि उन्होंने बजरंग सहाय को सरकारी वकील नियुक्त किया है (जिनका सहयोग जमींदारी उन्मूलन कानून का मसौदा तैयार करने में के.बी. लिया करते थे), आदि आदि।
2 जुलाई के अपने जवाबी पत्र में के.बी. ने जे.बी. को इन सभी आरोपों का बिन्दुवार जवाब देते हुए उनसे आग्रह किया कि कॉंग्रेस अध्यक्ष समस्त आरोपों की निष्पक्ष अन्वेषन करवा लें। उन्होंने जे.बी. को यह भी बताया कि इससे पहले ये लोग डॉ राजेंद्र प्रसाद के समक्ष भी इन्हीं शिकायतों को लेकर गए थे और तब डॉ राजेंद्र प्रसाद से भी उन्होंने निष्पक्ष जांच करवा लेने का आग्रह किया था। के. बी. ने यह रहस्योद्घाटन भी किया राम नारायण सिंह, जो राजपूत हैं, ने राजा कामाख्या नारायण सिंह के इशारे पर यह सब षड्यंत्र रचा है ताकि इन बेहूदे और बेतुके आरोपों के मकड़जाल में फंसकर वे जमींदारी उन्मूलन के मुख्य कार्य से भटक जाएँ। तथापि यदि काँग्रेस अध्यक्ष कि भी यही मंशा है तो वे इन आरोपों का निष्पक्ष जांच करवा लें और यदि इनमें कुछ भी तथ्य पाये गए वे दो मिनट के लिए भी काँग्रेस और मंत्री पद पर नहीं बने रहेंगें और अपना इस्तीफा सौंप देंगें। किन्तु यदि ये आरोप साबित नहीं हुए तो बाबू राम नारायण सिंह और अन्य दोनों कांग्रेसियों को साथी कांग्रेसी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाने की जुर्म में काँग्रेस से बर्खाश्त करने में काँग्रेस अध्यक्ष को कोई उज्र नहीं होना चाहिए। के.बी. ने अपने इस पत्र की प्रतिलिपि महात्मा गांधी को प्रेषित किया जो तब भंगी कॉलोनी, नई दिल्ली में रह रहे थे और इसकी एक प्रतिलिपि डॉ राजेंद्र प्रसाद के 1-क्वीन विक्टोरिया मार्ग वाले पते पर भी प्रेषित कर दिया।
के.बी. के इस दो टूक जवाब का अनुकूल असर हुआ और जे.बी. ने इस अध्याय को यही तिरोहित करना मुनासिब समझा। इस घटना के कुछ महीने बाद ही बाबू राम नारायण सिंह ने अलग झारखंड प्रांत की मांग रखते हुए काँग्रेस छोड़ दिया। ज्ञातव्य रहे कि अलग झारखंड राज्य की मांग रखने वाले बाबू राम नारायण सिंह पहले नेता थे। दूसरी ओर के.बी. के विरोधी अन्य षड्यंत्र रचने में मशगूल हो गए। सितंबर 1947 में के.बी. पर प्राणघातक हमला हुआ, जिसमें वे बाल-बाल बचे। सिर पर खून से सनी पट्टी बांधे जब के.बी. ने बिहार विधान सभा सदन में जमींदारी उन्मूलन कानून प्रस्तुत किया तो वे सच्चे मायने में जमींदारी उन्मूलन के प्रतीक नज़र आ रहे थे।
(राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली से साभार)
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