Sunday 27 April 2014

बिहार के लौह पुरुष: कृष्ण बल्लभ सहाय- राजेश सहाय



बिहार के लौह पुरुष: कृष्ण बल्लभ सहाय

कृष्ण बल्लभ सहाय या संक्षेप में के. बी. सहाय, बिहार के उन कतिपय यशश्वी नेताओं में थे, जिन्होनें बिहार और ख़ास कर छोटानागपुर क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक उन्नति में बहुमूल्य योगदान किया हैI के. बी. सहाय छोटानागपुर के मूल निवासी नहीं थे पर उन्होनें इसी क्षेत्र को को ख़ास कर हजारीबाग जिला को अपना कर्मभूमि बनाया और सर्वस्व जीवन इस क्षेत्र की उन्नति और विकास में लगा दियाI हजारीबाग में उनका बचपन बीता था, हजारीबाग से ही उन्होनें शिक्षा ग्रहण किया, इसी भूमि पर उन्होनें अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया और बाद में भूमि सुधार कानूनों को लागू करने के लिए भी संघर्ष किया और हजारीबाग की पावन भूमि में ही उनका निधन हुआ।  

    श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म गाँव शेखपुरा जिला पटना के एक साधारण कायस्थ मुंशी के घर 31 दिसम्बर 1898 को हुआI इनके पिता का नाम मुंशी गंगा प्रसाद था जो कि ब्रिटिश हुकूमत में दरोगा के पद पर कार्यरत थेI बतौर दरोगा मुंशीजी का स्थान्तरण जिले के थाने में होता रहता थाI इसी क्रम में उनका तबादला हजारीबाग जिला में हुआ जहाँ विभिन्न थानों में उन्होनें कई वर्षों की सरकारी सेवा कीI कृष्ण बल्लभ का बचपन हजारीबाग में बीताI पिता के साथ रहते हुए ये रैयतों पर ज़मींदारों द्वारा किये जाने वाले ज़ुल्मों से रूबरू हुएI इसका इनके बाल मन पर गहरा असर हुआ और इस कम उम्र में इनकी सहानुभूति गरीब रैयतों से हो गई जो ताउम्र बनी रहीI  पढने लिखने में ये कुशाग्र थेI कृष्ण बल्लभ सहाय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग धरमशाला विद्यालय से पूरी कीI मेट्रिक की परीक्षा में ये सारे प्रान्त में अव्वल रहेI मेट्रिक के बाद इन्होनें कॉलेज की पढाई के लिए संत कोलंबस कॉलेज में दाखिला लियाI 1919 में संत कोलंबस कॉलेज, हजारीबाग से इन्होने अंग्रेजी में स्तानाकोत्तर की परीक्षा में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम दर्ज़ा हासिल कियाI इस अवसर पर इन्हें तात्कालिक राज्यपाल श्री गेट महोदय ने "गेट स्वर्ण पदक" से सम्मानित भी कियाI यह वो दौर था जब गाँधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम परवान चढ़ रही थीI पर कृष्ण बल्लभ का मानना था कि अंग्रेजों से लोहा तभी लिया जा सकता है जब भारत का युवा पढ़ा लिखा और जागरूक होI यही वजह थी कि इन्होनें धैर्य पूर्वक अपनी शिक्षा पर ध्यान दियाI तथापि कॉलेज के दौर में भी इनके सहपाठीगण  इनकी ओजश्वी भाषण शैली और नेतृत्व क्षमता के कायल थेI उन दिनों को याद करते हुए उनके सहपाठी और हजारीबाग के सेवा निवृत सिविल सर्जन डॉक्टर एस. . मुज्ज़फ्फर कहते हैं: "यह वर्ष 1917-18 की घटना थीI व्हिटनी स्मारक भवन में वाद विवाद का विषय था: "क्या भारत वर्ष होम रूल के लिए तैयार है?" संत कोलंबस कॉलेज के तात्कालिक प्रधानाध्यापक कैनेडी विचारों की स्वतंत्रता पर विशेष बल देते थे और यह विषय उन्ही का चुना हुआ थाI इस अवसर पर कृष्ण बल्लभ की दी हुई ओजस्वी भाषण ने सभी को मंत्र मुग्ध कर दियाI वो एक जन्मजात वक्ता और नेता थेI"

कॉलेज के दिनों से ही कृष्ण बल्लभ पत्रकारिता से भी जुड़े थेI "अमृत बाज़ार पत्रिका" के स्थानीय संवाददाता की हैसियत से स्वतंत्रता संग्राम और किसान आन्दोलन पर इनके विचार लगातार इस पत्रिका में छपते रहेI स्वतान्त्रोपरांत भी पत्रकारिता से ये जुड़े रहे और "छोटानागपुर दर्पण" नाम से हजारीबाग से ही कई वर्षों तक अपनी पत्रिका निकालते रहेI 1919 में स्नातक के बाद इन्होनें संत कोलंबस कॉलेज में ही स्नातकोत्तर की पढाई के लिए दाखिला लियाI इनके पिता की दिली इच्छा  थी कि ये आई.सी.एस.की परीक्षा में बैठें और सफल हो कर एक ब्रिटिश दरोगा का नाम रौशन करेंI पर नियति को कुछ और ही मंजूर थाI वर्ष 1921 में गांधीजी ने देश व्यापी असहयोग आन्दोलन का आह्वाहन किया और भारत के असंख्य युवाओं की तरह कृष्ण बल्लभ ने भी जननी जन्मभूमि के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझा और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ेI इसके साथ ही दरोगा साहब ने अपने वरिष्ठ पुत्र से सम्बन्ध विच्छेद कर लियाI

            1921 में इन्होनें असहयोग आन्दोलन में सक्रियता से भाग लियाI श्री राम नारायण सिंह के साथ मिल कर इन्होनें तात्कालिक हजारीबाग जिला (जो अब हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, रामगढ, चतरा जिलों  में बँट गया है) के गाँव गाँव में जा कर केवल लोगों को आन्दोलन को प्रेरित किया वरण ज़मींदारों के खिलाफ रैयतों को संगठित भी कियाI यही वो समय था जब कृष्ण बल्लभ को गाँव में बसे असली भारत को समझने का अवसर मिला और उन्होनें अपनी जड़ों को पहचानाI ग्रामीणों के साथ उठना बैठना, उन्ही के साथ खाना-पीना और उनके विचारों को पत्रकारिता के माध्यम से ऊपर तक पहुचाना उनका दिनचर्या बन गयाI अपनी विलक्षण भाषण शैली से ये ग्रामीणों को केवल स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष  रूप से जोड़ने में सफल हुए वरन उनके बीच खासे लोकप्रिय भी हो गएI

असहयोग आन्दोलन के बाद ये होम रूल आन्दोलन से जुड़ गएI इस  दरम्यान  स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आन्दोलन में भी भाग लिया और किसानों और मजदूरों के मुद्दे को पत्र पत्रिकाओं में उठायाI ये वो वर्ष थे जिन्होंने युवा कृष्ण बल्लभ के विचारों को दिशा दीI जहाँ अन्त्योदय आन्दोलन ने उन्हें गरीबों और दलितों के करीब लाया और उनके लिए कुछ करने का जज्बा उनमें पैदा कियाI वहीँ किसान आन्दोलन ने ज़मींदारी व्यवस्था के खिलाफ उनके विचारों और संकल्प को और ढृढ़ कियाI इस क्रम में ये कलकत्ता के नेशनल लायब्रेरी गए और लोर्ड कार्नवालिस के  परमानेंट सेटलमेंट एक्ट 1793 का गहन अध्ययन किया1925 में कृष्ण बल्लभ सहाय होम रूल के तहत बिहार विधान परिषद् में सदस्य बनेंI 1930 में गांधीजी के आह्वाहन पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के जुर्म में पुनः जेल गएI 1930 से 1934 के बीच श्री सहाय इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण 04 बार जेल गएI इन्ही जेल प्रवासों में इनका परिचय श्री कृष्ण सिन्हा से हुआ और उनके बीच जो मित्रता हुई वो जीवन पर्यंत बना रहाI

तीस के दशक में कृष्ण बल्लभ सहाय लोगों को केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ तैयार करते रहे वरन भूमिहीनों, किसानों और मजदूरों को ब्रिटिश सरकार की भूमि सम्बन्धी नीतियों, ख़ास कर ज़मींदारी व्यवस्था के खिलाफ भी संगठित करते रहेI 1937 में कांग्रेस ने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 के तहत सरकार में भागीदारी का फैसला लिया और बिहार में श्री कृष्ण सिन्हा के मंत्रिमंडल में कृष्ण बल्लभ सहाय संसदीय सचिव बनाये गएI 28 महीने के कांग्रेस शासन में कई अभूतपूर्व निर्णय लिए गएI वर्ष 1911 से मालगुजारी में की गई वृद्धि को वापस लिया गया और सामान्य सालाना मालगुजारी में भी कटौती की गईI दुसरे विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद कांग्रेस ने सरकार से 1939 में इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन के नए दौर की प्रतीक्षा होने लगीI लेकिन इस बीच श्री सहाय पुनः किसान आन्दोलन से जुड़ गएI 11 मई 1942 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में शाहाबाद, कुदरा में विशाल किसान सभा का आयोजन इन्होनें किया जहाँ किसानों से जुड़े मुद्दे उठाये गए और सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गयाI इसी से प्रेरित हो कर श्री कृष्ण सिन्हा ने इन्हें मुंगेर आमंत्रित कियाI मुंगेर के तारापुर में "बनैली राज की किसानों पर जुल्म" विषय पर रैली का सफल आयोजन किया गया, जिसमे श्री जे बी कृपलानी ने भी भाग लियाI

ये वो समय था जब राष्ट्र गाँधी के नेतृत्व में एक और आन्दोलन के लिए तैयार हो रहा थाI अप्रैल 1942 में आयेक्रिप्स मिसनकी असफलता ने इसकी भूमिका बनायींIकांग्रेस कार्यसमिति ने 14 जुलाई 1942 को वर्धा में सर्वसम्मति से एक नए आन्दोलन के लिए गाँधी को अधिकृत कियाI वर्धा में लिए गए निर्णय से अवगत कराने के लिए बिहार में भी सदाकत आश्रम में एक बैठक का आयोजन किया गया जहाँ सबों को आन्दोलन के लिए तैयार रहने का निर्देश मिलाI 09अगस्त 1942 को गाँधी के अंग्रेजों भारत छोडो के साथ इस आन्दोलन का आग़ाज़ हुआ और गाँधी के नेतृत्व में "करो या मरो" के संकल्प ने सारे राष्ट्र को इस आन्दोलन के आगोश में ले लियाI हमेशा की तरह हजारीबाग जिले में इस आन्दोलन का नेतृत्व श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने किया और आन्दोलन के दूसरे ही दिन दिनांक 10.08.1942 को जिला अधिकारी के आदेश संख्य 132 के तहत इनको गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गयाI जेल में भी श्री सहाय सक्रिय रहे और उन्होनें श्री जयप्रकाश नारायण और उनके साथियों यथा श्री रामनंदन मिश्र, श्री योगेन्द्र शुक्ल, श्री सूरज नारायण सिंह, श्री गुलाब चन्द गुप्ता और श्री शालिग्राम सिंह को दीपावली के दिन जेल से भगाने में अहम् भूमिका अदा कियाI पुरस्कार स्वरुप इन्हें सश्रम कारावास की सजा हुई और इन्हें भागलपुर जेल में भेज दिया गयाI

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बदलाव हुएI भारत भी इससे अछूता नहीं थाI यह तय था कि भारत स्वतंत्र होने वाला हैI इसी बदलाव की लहर में 1946 में कांग्रेस की अंतरिम सरकारों ने राज्यों में सत्ता संभालीI बिहार में श्री कृष्णसिंह के नेतृत्व में सरकार बनी और 16 अप्रैल 1946 को श्री कृष्ण बल्लभ सहाय इस सरकार में राजस्व मंत्री बनेI श्री सहाय इस पद पर 04 मई 1957 तक बने रहेI ये 11 वर्ष श्री सहाय के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष रहेI इस दौरान केवल बिहार वरण दिल्ली की राजनीति में भी ये केंद्र में रहेI हालाँकि ये भी सच है कि श्री कृष्ण बल्लभ सहाय की प्रतिभा को असली चुनौती भी इस दौर में ही मिलीI राजस्व मंत्री की हैसियत से इन्होनें ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार से सम्बंधित कई क़ानून और नियम बनाये जिनका परंपरागत समाज और भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर हुआइन कानूनों ने ज़मींदारी व्यवस्था की चूलें हिला दी और एक ही झटके में ज़मींदार अर्श से फर्श पर गए और किसानों और भूमिहीनों को भूमि का वह स्वामित्व प्राप्त हुआ, जिस भूमि को अब तक वे केवल जोतते आये थेI भूमि सम्बन्धी कानूनों पर श्री सहाय की पकड़ और समझ अभूतपूर्व थीबतौर राजस्व मंत्री श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने दो महत्वपूर्ण विधेयक सदन में पेश किये जिस पर क़ानून बनाI पहला विधेयक बिहार भूमि सुधार (एक्ट XXX, 1950) था और दूसरा बिहार लगान (संशोधन) एक्ट 1955 था, जिसके द्वारा छोटानागपुर  टीनेन्सी एक्ट और संथाल परगना टीनेन्सी एक्ट में भी संशोधन किये गएI के.बी.सहाय ज़मींदारी उन्मूलन क़ानून द्वारा दलित और भूमिहीन खेतिहरों को उनका हक दिलाने को कृतसंकल्प थेI 1946-1948 के काल में श्री सहाय को ज़मींदारों का अभूतपूर्व विरोध का सामना करना पड़ाI यह विरोध इतना प्रचंड था क़ि एक समय गांधीजी भी क़ानून द्वारा सामाजिक समानता लाने के उनके इस प्रयास के प्रति सशंकित हो गएI गांधीजी का विचार था कि ऐसा क़ानून समाज में फूट पैदा कर सकता है और सामाजिक समरसता को क्षीण भिन्न कर सकता हैI अग्रेजों ने समाज के सवर्णों को ही ज़मींदार बनाया थाI इस विधेयक की वजह से श्री के.बी.सहाय सवर्णों के परम शत्रु बन गएI उन्होंने श्री सहाय के विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ाI ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत सम्मानों और मेडलों का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए इनका समूह एक जूट हो कर अपनी देशभक्ति के उपादान में ज़मींदारी बरकरार रखने के लिए तात्कालिक राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से अपील कियाI इन विरोधों का सामना करते हुए श्री के.बी.सहाय अपने लक्ष्य से जरा भी विचलित नहीं हुएI जब ज़मींदारों ने अपील और विरोध का कोई असर नहीं देखा तो उन्होंने श्री.सहाय पर कातिलाना हमले भी करवाएI यह श्री सहाय का भाग्य था के वे इस हमले में बच गएI खून से सनी पट्टी सर पर बांधे जब श्री सहाय ने बिहार विधान सभा में ज़मींदारी उन्मूलन विधेयक प्रस्तुत किया तो वे ज़मींदारी उन्मूलन केसंघर्ष के सच्चे प्रतीक नज़र रहे थेI के.बी.सहाय के नेतृत्व में बिहार देश का पहला राज्य था जिसने ज़मींदारी उन्मूलन से सम्बंधित विधेयक पारित किया थाI इस क़ानून द्वारा अब तक जिस ज़मीन, वन, तालाब, बाज़ार और खानों आदि पर ज़मींदारों की मिलकियत थी, वो राज्य सरकार के अधीन गईI राज्य सरकार को यह अधिकार मिला कि इस संपत्ति का वितरण भूमिहीन कृषक, दलितों और हरिजनों के बीच करेI प्रत्येक जोत की सीमा निर्धारित कर दी गयीI इस एक क़ानून से ज़मींदारों कि सारी मिलकियत का अंत हो गया जो उन्होंने अग्रेज़ी शासन से प्राप्त किये थेI 1955 में बिहार टीनेन्सी (संशोधन) एक्ट द्वारा श्री सहाय ने बटाईदारी  व्यवस्था की खामियों को दूर करने के लिए बिहार टीनेन्सी क़ानून 1885 में भी संशोधन करते हुए रैयत (भूमिहीन कृषकको बिना कारण बेदखल करने के भू-स्वामियों के अधिकारों को निरस्त किया और जिला अधिकारी को यह अधिकार दिया कि वे रैयत (भूमिहीन कृषकके हितों की रक्षा करेंI ऐसे संशोधन छोटानागपुर टीनेन्सी एक्ट और संथाल परगना टीनेन्सी एक्ट में भी किये गए

दरभंगा नरेश डॉक्टर कामेश्वर सिंह के नेतृत्व में ज़मींदारों ने इस क़ानून को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने इस क़ानून को निरस्त कर दियाI बिहार सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल कियाI यही वह दौर था जब इस क़ानून को बहाल रखने के लिए भारत के संविधान में प्रथम बार संशोधन करने की नौबत आन पड़ीI भारत के प्रधान मंत्री श्री.जवाहर लाल नेहरु ने 10 मई 1950 को प्रथम संविधान संशोधन प्रस्ताव संसद के समक्ष रखते हुए इसके औचित्य और उद्देश्य पर प्रकाश डालाI इस संशोधन के बाद नवां अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया और भूमि सुधार से सम्बंधित सभी कानूनों को इनमे समाहित किया गया ताकि मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर इन्हें चुनौती नहीं दी जा सके

ज़मींदारी उन्मूलन से सम्बंधित क़ानून हालाँकि लागू हो गया, किन्तु इस एक क़ानून ने श्री के बी सहाय को समस्त अगड़ी जाति का जीवनपर्यंत दुश्मन बना दियाI बिहार की जाति आधारित सामाजिक व्यवस्थाजिसमे सवर्णों का आधिपत्य थापर यह क़ानून सीधा प्रहार थाI दलितों के मुँह में जबान देने का पहला प्रयाससामजिक न्याय की पहली विजयI इस क़ानून के दूरगामी परिणाम हुएI आज यदि दलित जागृत हुए हैं तो इसका श्रीगणेश इसी क़ानून से हुआI सवर्णों का विरोध ने दलितों को संगठित होने पर विवश कियाI सामाजिक न्याय की बात जो नेता आज करते हैं उस संघर्ष को इस मुकाम तक पहुँचाने का पहला पायदान यह क़ानून थाI इस क़ानून ने बिहार की सामाजिक व्यवस्था में खलबली मचा दियाI यह भी सच है कि पटना न्यायालय में जीतने और संविधान संशोधन के बाद सर्वोच्च न्यायलय में हारने के बीच के समय में ज़मींदारों ने बड़ी ही चालाकी से सीमा से अधिक अपनी भूमि को बेनामी खातों में स्थान्तरित करवा दिया ताकि इस अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण सरकार द्वारा किया जा सकेI तथापि सवर्णों की इस कपट चाल ने दलितों के आँख खोल दिएI इसी जाग्रति का परिणाम है मध्य बिहार में सवर्णों और दलितों के बीच का खुनी संघर्षपरन्तु इस सामाजिक संघर्ष का सबसे बड़ा खामियाजा श्री के.बी.सहाय को भुगतना पड़ाI सवर्ण लामबंद हो कर श्री सहाय के पीछे पड़ गएI ज़मींदारों के इस गोलबंद विरोध का नतीजा था कि 1957 के चुनाओं में श्री के.बी.सहाय को हार का सामना करना पड़ाI 1962 में वो पुनः जीते और कामराज योजना के तहत जब तात्कालिक मुख्यमंत्री श्री विनोदानंद  झा हटे तो कांग्रेस विधायक  मंडल के चुनाव में श्री बीर चन्द पटेल को हरा कर के.बी.सहाय 02 अक्टूबर 1963 को बिहार के मुख्यमंत्री बनेI

श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का मुख्यमंत्री काल बिहार की प्रगति और उन्नत्ति के लिए जाना जाता हैI उनके कार्यकाल में ही 1963 में हैवी इलेक्ट्रिकल कारपोरेशन (एच सी) हटिया का उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरु के कर कमलों से हुआ और पतरातू थर्मल भी कार्य करना शुरू कियाI कोडरमा में ओद्योगिक एस्टेट बनाया गयाI बोकारो इस्पात संयंत्र की आधारशिला भी उनके कार्यकाल में ही रखी गईI स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए 1965 में रांची में भारतीय संस्कृति अकादमी की स्थापना हुईI कोडरमा में सैनिक स्कूल भी खोला गया और प्रत्येक जिले में कॉलेज और स्कूल खोले गए जिनमे से कई तो अब भी उनके नाम पर ही हैंI 1964 में रांची में ही राजेंद्र चिकित्सा संस्थान की स्थापना हुईबिहार और खास कर छोटानागपुर के हितों की रक्षा के लिए वे सदा सजग रहे और इस क्रम में कई बार उनका टकराव केंद्र सरकार से हुआI कृष्ण बल्लभ सहाय उन कतिपय नेताओं में से थे जिन्हें उनके आलोचक भी एक योग्य प्रशासक मानता थाI

पर 1967 आते आते परिस्थितियां श्री कृष्ण बल्लभ सहाय के प्रतिकूल बनने लगीI 1966-67 में लगातार दूसरे वर्ष बिहार में राज्य ब्यापी सूखा पड़ा और अनाज संकट ने विकत रूप अख्तियार कर लियाI केंद्रसरकार की मदद समय पर नहीं मिलने पर श्री सहाय ने कालाबाजारियों पर सख्त कारवाई के आदेश दिएI पर अनाज की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही और आम जनता का आक्रोश श्री सहाय पर ही उतराI इसी समय राज्य कर्मचारी संघ भी वेतन बढाने के मुद्दे को लेकर हड़ताल पर चले गएI विपक्षी नेताओं की अगुवाई में इन विषम स्थिति शुरू हुआ छात्र आन्दोलन और उनपर श्री सहाय की पुलिस कारवाई के आदेश ने मानो आग में घी का काम कियाI 1967 के चुनाव में सारी बाज़ी श्री सहाय के पलट थी और इसका परिणाम हुआ कि इस चुनाव के बाद बिहार में कांग्रेस शासन का अंत हो गयाI

05 मार्च 1967 को चुनाव में हार के बाद श्री.के.बी.सहाय ने मुख्यमंत्री पड़ छोड़ दियाI महामाया प्रसाद क़ी सरकार ने के.बी.सहाय पर एक जांच आयोग गठित कर तथाकथित भ्रस्टाचार के जांच के आदेश दिएI कुल 189 चार्ज श्री सहाय पर लगाये गए थेI श्री महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में उनको भी स्थान मिला जो ज़मींदारी उन्मूलन के ज़माने से श्री सहाय से खार खाए बैठे थेI ज़मींदारी उन्मूलन के अपने प्रयास के लिए के.बी.सहाय को अपरोक्ष रूप से कठघरे में डालने क़ी यह घिनौनी साज़िश थीI के.बी.सहाय ने बड़ी ही मेहनत से एक योग्य प्रशासक और कुशल नेता क़ी छवि बनायीं थीI उनकी छवि उज्जवल थीI इसी छवि को बदनाम और ध्वस्त करने का हथियार बना यह जांच आयोगI के.बी.सहाय खुद भी कहा करते थे कि यदि उन्होनें कुछ गलत किया है तो उसकी सजा उन्हें तुरंत मिलनी चाहिएI आयोग क़ी धीमी प्रगति से वे काफी नाराज रहते थे और उनका मानना था यह उन्हें राजनीति से उन्हें दूर रखने का बहाना मात्र हैI यह भी सत्य है कि यदि के.बी.सहाय के खिलाफ 189 में से एक भी चार्ज साबित हो जाता तो तात्कालिक केंद्र और राज्य सरकारें उनकी राजनैतिक करियर का अंत कर देतीI इस आयोग ने 05 फरवरी 1970 को अपना रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत किया और इस पर कोई कारवाई नहीं हुई क्योंकि कारवाई किये जाने योग्य कोई चार्ज सिद्ध नहीं हुएI

इसके बाद भी श्री के.बी.सहाय बिहार की राजनीति में सतत क्रियाशील रहेI 29 मई 1974 को वे बिहार विधान परिषद् में मुखिया/ शिक्षक सीट से चुने गएI जून में उन्होनें सदस्यता और गोपनीयता की शपथ लियाI वे अपने लक्ष्य के प्रति 76 वर्ष के इस उम्र में भी सजग थेI उन्होनें कहा था क़ि इस पारी में वे दलितों के लिए अंतिम लडाई लड़ेगें और ज़मींदारों द्वारा अपनाये गए सारे हथकंडों का मूंह तोड़ जवाब देंगेI किन्तु यह होना थाI 03 जून को पटना से हजारीबाग अपने घर लौटने के क्रम में हजारीबाग से 05 किलोमीटर दूर ही एक विवादास्पद सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गईI

के.बी.सहाय को दलितों के हक के लिए संघर्ष करना बड़ा ही महंगा पड़ाI ज़मींदारी उन्मूलन के इस संग्राम में कृष्ण बल्लभ सहाय अभिमन्यु की तरह अकेले थेI के.बी.सहाय द्वारा विधायी क़ानून द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाने के प्रयास पर भले ही प्रश्न उठाये जाए पर यह भी सच था कि तात्कालिक परिस्थितियों में इसके अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं थाI आचार्य विनोबा भावे ने "भूदान" और "ग्रामदान" द्वारा ज़मींदारों से स्वेच्छा से भूमि दान करने का सविनय अनुरोध किया और बिहार में दर दर ज़मींदारों के सामने हाथ फैलाये, किन्तु उनकी अपील का ज़मींदारों पर कोई विशेष असर नहीं हुआI इससे मर्माहत हो कर ही जय प्रकाश नारायण जी को कहना पड़ा था कि "हमने बिहार में 18 महीने से बाबा को रोक कर रखा है इस उम्मीद पर कि बिहार के ज़मींदार 32 लाख एकड़  ज़मीन दान देने के अपने वादे को निभायेगेंI किन्तु हम अब तक अपने वादे को पूरा नहीं कर पाए, जो हमारे लिए शर्म कि बात हैI

श्री सहाय के हौसले और हिम्मत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है क़ि उनके बाद बिहार में फिर किसी नेता ने, चाहे वह किसी भी दल का रहा हो और अपने को दलितों और भूमिहीन किसानों का कितना भी बड़ा हिमायती क्यों मानता होभूमि सुधार के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठायाI कर्पूरी ठाकुर के ज़माने में कोसी क्षेत्र में ज़मींदारों के मिलकियत में ज़ोतेदारों द्वारा की जा रही खेती के आकडे संकलित करने के प्रयास हुए, पर कुछ दिनों बाद इसे इस कारण रोक दिया गया क्योंकि परोक्ष रूप से ज़मीन के असली ज़ोतेदारों के नाम उजागर हो जातेI वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी श्री.डी.बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन बड़े ही जोश-खरोश किया थाI श्री डी.बंदोपाध्याय की भूमि सुधार से सम्बंधित रिपोर्ट बंगाल सरकार द्वारा लागू की जा चुकी थीI बिहार भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी उन्होनें नितीश सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपीI इनकी अनुशंषाओं में प्रमुख, प्रत्येक किसान की भूमि सीमा 15 एकड़ निर्धारित कर देना, थाजैसे की अपेक्षा थी इस रिपोर्ट का भू-स्वामियों ने जोरदार विरोध किया और अंततः नितीश सरकार को इनके सामने झुकना पड़ा और बंदोपाध्याय समिति की सिफारिशों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गयाI इसका नतीजा है कि आज भी भूमिहीन किसानों का बिहार से पलायन जारी हैI

भूमि-सुधार के अपने प्रयासों और कानूनों के लिए के.बी.सहाय आज भी एक विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते हैंआप इन्टरनेट पर किसी भी सर्च इंजिन पर चले जाए और "भूमि सुधार" या "लैंड रिफोर्मसे सम्बंधित कोई भी जानकारी एकत्रित करें आपको के.बी.सहाय और उनके योगदान के बारे में जानकारी मिलेगीI भूमि सुधार से सम्बंधित किसी भी लेखक की कोई भी किताब पढ़ें आपको प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से के.बी.सहाय का जिक्र अवश्य मिलेगाI भूमि सुधार के मामले में श्री के.बी.सहाय की सक्षमता का यह परिचायक हैI

स्वतंत्र बिहार के प्रमुख नेताओं में श्री कृष्ण बल्लभ सहाय का नाम आज भी अग्रणी हैI जहाँ श्री जय प्रकाश नारायण ने उन्हें "आधुनिक बिहार का निर्माता" माना, वहीँ तत्कालीन समाचार पत्र " इंडियन नेशन " की नज़रों में वे "बिहार के लौह पुरुष " थेI किन्तु यह भी सच है कि श्री कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार के सर्वाधिक विवादास्पद मुख्यमंत्री रहेI उनकी कुशाग्र बुद्धि का विपक्ष भी लोहा मानता था और कठोर प्रशासनिक निर्णय लेने और उसे शीघ्र लागू करने की उनकी क्षमता की आज भी पटना के प्रशासनिक हलकों में चर्चा होती हैI आदिवासी और दलितों के कल्याण के लिए किये गए उनके कार्य उन्हें, किसी भी आदिवासी मुख्यमंत्री की तुलना में, आदिवासियों का अधिक हितैषी बना देता हैI तथापि बिहार और झारखण्ड के इतिहास में आज इनका वो स्थान नहीं है जिसके ये काबिल थेI आज भी उनकी पार्टी यानी कांग्रेस पार्टी बिहार में दलितों के लिए किये गए कार्यों का लेखा जोखा जब जनता के सामने रखती है तो कांग्रेस शासन की उपलब्धियों के तौर पर बताने को के.बी.सहाय के भूमि सुधार से सम्बंधित योगदान के अलावा और कुछ विशेष नहीं रहताI सन 2000 के बिहार चुनाओं में इलेक्शन रैली को संबोधित करते हुए श्रीमती सोनिया गाँधी के ये विचार कि "बिहार में विकास तभी हुए हैं जब राज्य में कांग्रेस सरकारें रही; "यहाँ तक कि भूमि सुधार भी कांग्रेस मुख्यमंत्री श्री.के.बी.सहाय द्वारा ही शुरू क़ी गई थीI" (इंडियन एक्सप्रेस, 05 फरवरी 2000), इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैI श्री सहाय के योगदान की महत्ता उनकी मृत्यु के 37 साल बाद भी ज्यों कि त्यों बनी हुई हैI श्री सहाय और ज़मींदारी उन्मूलन से सम्बंधित उनके प्रयासों की सार्थकता तब तक बनी रहेगी जब तक ज़मीन को लेकर जातिगत संघर्ष का अंत नहीं हो जाताI आज भी कांग्रेस को बिहार में अपने कार्य दिखाने के लिए के.बी.सहाय की आवश्यकता पड़ती हैI किन्तु यह दुःख की बात है कि आज श्री सहाय को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जिसके वे योग्य थेI यह श्री सहाय के कलम की शक्ति थी जिससे भारत के संविधान में पहला संशोधन हुआ और एक नयी अनुसूची को संविधान में जोड़ा गयाI यदि के.बी.सहाय दलित वर्ग से आते तो उनका यह प्रयास उन्हें किसी भी राष्ट्रीय स्तर के नेता के समकक्ष खड़ा कर देता; किन्तु वे वोट बैंक की दृष्टि से महत्वहीन कायस्थ जाति से आते थेi इसलिए यह राष्ट्र और बिहार राज्य यहाँ तक की उनकी अपनी पार्टी ने भी उन्हें भुला दियाi आज यह उचित समय है क़ि श्री.के.बी.सहाय की योग्यता और उनके द्वारा किये गए महत्तम कार्यों को देखते हुए बिहार सरकार उन्हें उनका उचित सम्मान देI कम से कम उनके नाम पर स्वतंत्रता संग्रामियों की श्रृंखला में एक डाक टिकट तो जारी करवाने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह तो बिहार सरकार कर ही सकती है, ताकि इस वीर सपूत की यादों को अमर रखा जा सके


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