बिहार
के लौह
पुरुष: कृष्ण
बल्लभ सहाय
कृष्ण
बल्लभ सहाय
या संक्षेप
में के.
बी.
सहाय, बिहार के उन
कतिपय यशश्वी
नेताओं में
थे,
जिन्होनें बिहार
और ख़ास
कर छोटानागपुर
क्षेत्र के
सामाजिक और
आर्थिक उन्नति
में बहुमूल्य
योगदान किया
हैI
के.
बी.
सहाय छोटानागपुर
के मूल
निवासी नहीं
थे पर
उन्होनें इसी
क्षेत्र को
को ख़ास
कर हजारीबाग
जिला को
अपना कर्मभूमि
बनाया और
सर्वस्व जीवन इस क्षेत्र
की उन्नति
और विकास
में लगा
दियाI हजारीबाग में उनका
बचपन बीता
था,
हजारीबाग से
ही उन्होनें
शिक्षा ग्रहण
किया, इसी भूमि पर
उन्होनें अंग्रेजों
के खिलाफ
संघर्ष शुरू
किया और
बाद में
भूमि सुधार
कानूनों को लागू करने
के लिए
भी संघर्ष
किया और
हजारीबाग की
पावन भूमि
में ही
उनका निधन हुआ।
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
का जन्म
गाँव शेखपुरा जिला पटना
के एक
साधारण कायस्थ
मुंशी के
घर 31
दिसम्बर 1898 को
हुआI
इनके पिता
का नाम
मुंशी गंगा
प्रसाद था
जो कि
ब्रिटिश हुकूमत
में दरोगा
के पद
पर कार्यरत
थेI
बतौर दरोगा
मुंशीजी का
स्थान्तरण जिले
के थाने
में होता
रहता थाI
इसी क्रम
में उनका
तबादला हजारीबाग
जिला में
हुआ जहाँ
विभिन्न थानों
में उन्होनें
कई वर्षों
की सरकारी
सेवा कीI
कृष्ण बल्लभ
का बचपन
हजारीबाग में
बीताI पिता के साथ
रहते हुए
ये रैयतों
पर ज़मींदारों
द्वारा किये
जाने वाले
ज़ुल्मों से
रूबरू हुएI
इसका इनके
बाल मन
पर गहरा
असर हुआ
और इस
कम उम्र
में इनकी
सहानुभूति गरीब
रैयतों से
हो गई
जो ताउम्र
बनी रहीI पढने लिखने में ये
कुशाग्र थेI
कृष्ण बल्लभ
सहाय ने
अपनी प्रारंभिक
शिक्षा हजारीबाग
धरमशाला विद्यालय
से पूरी
कीI
मेट्रिक की
परीक्षा में
ये सारे
प्रान्त में
अव्वल रहेI
मेट्रिक के
बाद इन्होनें
कॉलेज की
पढाई के
लिए संत
कोलंबस कॉलेज
में दाखिला
लियाI 1919 में संत कोलंबस कॉलेज, हजारीबाग से
इन्होने अंग्रेजी
में स्तानाकोत्तर की परीक्षा में
पूरे विश्वविद्यालय
में प्रथम
दर्ज़ा हासिल
कियाI इस अवसर पर
इन्हें तात्कालिक
राज्यपाल श्री
गेट महोदय ने "गेट स्वर्ण
पदक"
से सम्मानित
भी कियाI
यह वो
दौर था
जब गाँधी
के नेतृत्व
में स्वतंत्रता
संग्राम परवान
चढ़ रही
थीI
पर कृष्ण
बल्लभ का
मानना था
कि अंग्रेजों
से लोहा
तभी लिया
जा सकता
है जब
भारत का
युवा पढ़ा
लिखा और
जागरूक होI
यही वजह
थी कि
इन्होनें धैर्य
पूर्वक अपनी
शिक्षा पर
ध्यान दियाI
तथापि कॉलेज
के दौर
में भी
इनके सहपाठीगण
इनकी ओजश्वी
भाषण शैली
और नेतृत्व
क्षमता के
कायल थेI
उन दिनों
को याद
करते हुए
उनके सहपाठी
और हजारीबाग
के सेवा
निवृत सिविल
सर्जन डॉक्टर
एस.
ए.
मुज्ज़फ्फर कहते
हैं:
"यह वर्ष 1917-18 की घटना थीI व्हिटनी स्मारक भवन में वाद विवाद का विषय था: "क्या भारत वर्ष होम रूल के लिए तैयार है?" संत कोलंबस कॉलेज के तात्कालिक प्रधानाध्यापक
कैनेडी विचारों की स्वतंत्रता पर विशेष बल देते थे और यह विषय उन्ही का चुना हुआ थाI इस अवसर पर कृष्ण बल्लभ की दी हुई ओजस्वी भाषण ने सभी को मंत्र मुग्ध कर दियाI वो एक जन्मजात वक्ता और नेता थेI"
कॉलेज के
दिनों से
ही कृष्ण
बल्लभ पत्रकारिता
से भी
जुड़े थेI
"अमृत बाज़ार
पत्रिका" के स्थानीय संवाददाता
की हैसियत से स्वतंत्रता
संग्राम और
किसान आन्दोलन
पर इनके
विचार लगातार
इस पत्रिका
में छपते
रहेI
स्वतान्त्रोपरांत भी
पत्रकारिता से
ये जुड़े
रहे और
"छोटानागपुर दर्पण"
नाम से
हजारीबाग से
ही कई
वर्षों तक
अपनी पत्रिका
निकालते रहेI
1919 में स्नातक
के बाद
इन्होनें संत
कोलंबस कॉलेज
में ही
स्नातकोत्तर की
पढाई के
लिए दाखिला
लियाI इनके पिता की
दिली इच्छा थी कि
ये आई.सी.एस.की परीक्षा
में बैठें
और सफल
हो कर
एक ब्रिटिश
दरोगा का
नाम रौशन
करेंI पर नियति को
कुछ और
ही मंजूर
थाI
वर्ष 1921
में गांधीजी
ने देश
व्यापी असहयोग
आन्दोलन का
आह्वाहन किया
और भारत
के असंख्य
युवाओं की
तरह कृष्ण
बल्लभ ने
भी जननी
जन्मभूमि के
प्रति अपने
कर्त्तव्य को
समझा और
स्वतंत्रता संग्राम
में कूद
पड़ेI
इसके साथ
ही दरोगा
साहब ने
अपने वरिष्ठ
पुत्र से
सम्बन्ध विच्छेद
कर लियाI
1921 में इन्होनें
असहयोग आन्दोलन
में सक्रियता
से भाग
लियाI श्री राम
नारायण सिंह
के साथ
मिल कर
इन्होनें तात्कालिक
हजारीबाग जिला (जो अब
हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, रामगढ, चतरा जिलों में बँट
गया है)
के गाँव
गाँव में
जा कर
न केवल लोगों को
आन्दोलन को
प्रेरित किया
वरण ज़मींदारों
के खिलाफ
रैयतों को
संगठित भी
कियाI यही वो समय
था जब
कृष्ण बल्लभ
को गाँव
में बसे
असली भारत
को समझने
का अवसर
मिला और
उन्होनें अपनी
जड़ों को
पहचानाI ग्रामीणों के साथ
उठना बैठना,
उन्ही के
साथ खाना-पीना और
उनके विचारों
को पत्रकारिता
के माध्यम
से ऊपर
तक पहुचाना
उनका दिनचर्या
बन गयाI
अपनी विलक्षण
भाषण शैली
से ये ग्रामीणों को
न केवल स्वतंत्रता संग्राम
में प्रत्यक्ष
अथवा परोक्ष
रूप से
जोड़ने में
सफल हुए
वरन उनके
बीच खासे
लोकप्रिय भी
हो गएI
असहयोग आन्दोलन
के बाद
ये होम
रूल आन्दोलन
से जुड़
गएI
इस दरम्यान स्वामी सहजानंद
सरस्वती के
किसान आन्दोलन
में भी
भाग लिया
और किसानों
और मजदूरों
के मुद्दे
को पत्र
पत्रिकाओं में
उठायाI ये वो वर्ष थे
जिन्होंने युवा कृष्ण बल्लभ
के विचारों
को दिशा
दीI
जहाँ अन्त्योदय
आन्दोलन ने उन्हें गरीबों
और दलितों के करीब
लाया और उनके लिए कुछ करने
का जज्बा उनमें पैदा कियाI वहीँ किसान आन्दोलन
ने ज़मींदारी व्यवस्था के
खिलाफ उनके
विचारों और
संकल्प को
और ढृढ़
कियाI इस क्रम में
ये कलकत्ता
के नेशनल
लायब्रेरी गए
और लोर्ड
कार्नवालिस के परमानेंट सेटलमेंट एक्ट 1793
का गहन
अध्ययन कियाI 1925 में
कृष्ण बल्लभ
सहाय होम
रूल के
तहत बिहार
विधान परिषद्
में सदस्य
बनेंI 1930 में गांधीजी
के आह्वाहन
पर सविनय
अवज्ञा आन्दोलन
में भाग
लेने के
जुर्म में
पुनः जेल
गएI
1930 से
1934 के
बीच श्री
सहाय इस
आन्दोलन में
भाग लेने
के कारण
04 बार
जेल गएI
इन्ही जेल
प्रवासों में
इनका परिचय
श्री कृष्ण
सिन्हा से
हुआ और
उनके बीच
जो मित्रता
हुई वो
जीवन पर्यंत
बना रहाI
तीस के
दशक में
कृष्ण बल्लभ
सहाय लोगों
को न
केवल ब्रिटिश
हुकूमत के
खिलाफ तैयार
करते रहे
वरन भूमिहीनों,
किसानों और
मजदूरों को
ब्रिटिश सरकार
की भूमि
सम्बन्धी नीतियों,
ख़ास कर
ज़मींदारी व्यवस्था
के खिलाफ
भी संगठित
करते रहेI
1937 में
कांग्रेस ने
गवर्नमेंट ऑफ़
इंडिया एक्ट
1935 के
तहत सरकार
में भागीदारी
का फैसला
लिया और
बिहार में
श्री कृष्ण
सिन्हा के
मंत्रिमंडल में
कृष्ण बल्लभ
सहाय संसदीय
सचिव बनाये
गएI
28 महीने
के कांग्रेस
शासन में
कई अभूतपूर्व
निर्णय लिए
गएI
वर्ष 1911
से मालगुजारी
में की
गई वृद्धि
को वापस
लिया गया
और सामान्य
सालाना मालगुजारी
में भी
कटौती की
गईI
दुसरे विश्व
युद्ध के
शुरू होने
के बाद
कांग्रेस ने
सरकार से
1939 में
इस्तीफा दे
दिया और
स्वतंत्रता आन्दोलन
के नए
दौर की
प्रतीक्षा होने
लगीI
लेकिन इस
बीच श्री
सहाय पुनः
किसान आन्दोलन
से जुड़
गएI
11 मई
1942 को
डॉ.
राजेंद्र प्रसाद
की अध्यक्षता
में शाहाबाद,
कुदरा में
विशाल किसान
सभा का
आयोजन इन्होनें
किया जहाँ
किसानों से
जुड़े मुद्दे
उठाये गए
और सरकार
का ध्यान
इस ओर
आकर्षित किया
गयाI
इसी से
प्रेरित हो
कर श्री
कृष्ण सिन्हा
ने इन्हें
मुंगेर आमंत्रित
कियाI मुंगेर के तारापुर
में
"बनैली राज
की किसानों
पर जुल्म"
विषय पर
रैली का
सफल आयोजन
किया गया,
जिसमे श्री
जे बी
कृपलानी ने
भी भाग
लियाI
ये वो
समय था
जब राष्ट्र
गाँधी के
नेतृत्व में
एक और
आन्दोलन के
लिए तैयार
हो रहा
थाI
अप्रैल 1942
में आये
“क्रिप्स मिसन”
की असफलता
ने इसकी
भूमिका बनायींIकांग्रेस कार्यसमिति
ने 14
जुलाई 1942
को वर्धा
में सर्वसम्मति
से एक
नए आन्दोलन
के लिए
गाँधी को
अधिकृत कियाI
वर्धा में
लिए गए
निर्णय से
अवगत कराने
के लिए
बिहार में
भी सदाकत
आश्रम में
एक बैठक
का आयोजन
किया गया
जहाँ सबों
को आन्दोलन
के लिए
तैयार रहने
का निर्देश
मिलाI 09अगस्त 1942 को
गाँधी के
अंग्रेजों भारत
छोडो के
साथ इस
आन्दोलन का
आग़ाज़ हुआ
और गाँधी
के नेतृत्व
में
"करो या
मरो"
के संकल्प
ने सारे
राष्ट्र को
इस आन्दोलन
के आगोश
में ले
लियाI हमेशा की तरह
हजारीबाग जिले
में इस
आन्दोलन का
नेतृत्व श्री
कृष्ण बल्लभ
सहाय ने
किया और
आन्दोलन के
दूसरे ही दिन
दिनांक 10.08.1942 को जिला अधिकारी के
आदेश संख्य
132 के
तहत इनको
गिरफ्तार कर
हजारीबाग जेल
भेज दिया
गयाI
जेल में
भी श्री
सहाय सक्रिय
रहे और
उन्होनें श्री जयप्रकाश
नारायण और
उनके साथियों
यथा श्री रामनंदन
मिश्र, श्री
योगेन्द्र
शुक्ल, श्री सूरज नारायण सिंह,
श्री गुलाब
चन्द गुप्ता और
श्री शालिग्राम
सिंह को
दीपावली के
दिन जेल से
भगाने में
अहम् भूमिका
अदा कियाI
पुरस्कार स्वरुप
इन्हें सश्रम
कारावास की
सजा हुई
और इन्हें
भागलपुर जेल
में भेज
दिया गयाI
द्वितीय विश्व
युद्ध की
समाप्ति के
बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई
बदलाव हुएI
भारत भी
इससे अछूता
नहीं थाI
यह तय
था कि
भारत स्वतंत्र
होने वाला
हैI
इसी बदलाव
की लहर
में 1946
में कांग्रेस
की अंतरिम
सरकारों ने
राज्यों में
सत्ता संभालीI
बिहार में
श्री कृष्णसिंह
के नेतृत्व
में सरकार
बनी और
16 अप्रैल
1946 को
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
इस सरकार
में राजस्व
मंत्री बनेI
श्री सहाय
इस पद
पर 04
मई 1957
तक बने
रहेI
ये 11
वर्ष श्री
सहाय के
जीवन के
सबसे महत्वपूर्ण
वर्ष रहेI
इस दौरान
न केवल बिहार वरण
दिल्ली की
राजनीति में
भी ये
केंद्र में
रहेI
हालाँकि ये
भी सच
है कि
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
की प्रतिभा
को असली
चुनौती भी
इस दौर
में ही
मिलीI राजस्व मंत्री की
हैसियत से
इन्होनें ज़मींदारी
उन्मूलन और
भूमि सुधार
से सम्बंधित
कई क़ानून
और नियम
बनाये जिनका
परंपरागत समाज
और भारतीय
अर्थव्यवस्था पर
व्यापक असर
हुआI
इन कानूनों
ने ज़मींदारी
व्यवस्था की
चूलें हिला
दी और
एक ही
झटके में
ज़मींदार अर्श
से फर्श
पर आ
गए और
किसानों और
भूमिहीनों को
भूमि का
वह स्वामित्व
प्राप्त हुआ,
जिस भूमि
को अब
तक वे
केवल जोतते
आये थेI
भूमि सम्बन्धी
कानूनों पर
श्री सहाय
की पकड़
और समझ
अभूतपूर्व थीI
बतौर राजस्व
मंत्री श्री
कृष्ण बल्लभ
सहाय ने
दो महत्वपूर्ण
विधेयक सदन
में पेश
किये जिस
पर क़ानून
बनाI
पहला विधेयक
बिहार भूमि
सुधार (एक्ट XXX,
1950) था और दूसरा
बिहार लगान
(संशोधन) एक्ट 1955 था,
जिसके द्वारा
छोटानागपुर टीनेन्सी
एक्ट और
संथाल परगना
टीनेन्सी एक्ट
में भी
संशोधन किये
गएI
के.बी.सहाय ज़मींदारी
उन्मूलन क़ानून
द्वारा दलित
और भूमिहीन
खेतिहरों को
उनका हक
दिलाने को
कृतसंकल्प थेI
1946-1948 के
काल में
श्री सहाय
को ज़मींदारों
का अभूतपूर्व
विरोध का
सामना करना
पड़ाI यह विरोध इतना
प्रचंड था
क़ि एक
समय गांधीजी
भी क़ानून
द्वारा सामाजिक
समानता लाने
के उनके
इस प्रयास
के प्रति
सशंकित हो
गएI
गांधीजी का
विचार था
कि ऐसा
क़ानून समाज
में फूट
पैदा कर
सकता है
और सामाजिक
समरसता को
क्षीण भिन्न
कर सकता
हैI
अग्रेजों ने
समाज के
सवर्णों को
ही ज़मींदार
बनाया थाI
इस विधेयक
की वजह
से श्री
के.बी.सहाय सवर्णों के परम
शत्रु बन
गएI
उन्होंने श्री
सहाय के
विरोध में
कोई कसर
नहीं छोड़ाI
ब्रिटिश सरकार
द्वारा प्रदत
सम्मानों और
मेडलों का
सार्वजनिक प्रदर्शन
करते हुए
इनका समूह
एक जूट
हो कर
अपनी देशभक्ति
के उपादान
में ज़मींदारी
बरकरार रखने
के लिए
तात्कालिक राष्ट्रपति
डॉक्टर राजेंद्र
प्रसाद से
अपील कियाI
इन विरोधों
का सामना
करते हुए श्री के.बी.सहाय अपने
लक्ष्य से
जरा भी
विचलित नहीं
हुएI
जब ज़मींदारों
ने अपील
और विरोध
का कोई
असर नहीं
देखा तो
उन्होंने श्री.सहाय पर
कातिलाना हमले
भी करवाएI
यह श्री
सहाय का
भाग्य था
के वे
इस हमले
में बच
गएI
खून से
सनी पट्टी
सर पर
बांधे जब
श्री सहाय
ने बिहार
विधान सभा
में ज़मींदारी
उन्मूलन विधेयक
प्रस्तुत किया
तो वे
ज़मींदारी उन्मूलन
केसंघर्ष के
सच्चे प्रतीक
नज़र आ
रहे थेI
के.बी.सहाय के
नेतृत्व में
बिहार देश
का पहला
राज्य था
जिसने ज़मींदारी
उन्मूलन से
सम्बंधित विधेयक
पारित किया
थाI
इस क़ानून
द्वारा अब
तक जिस
ज़मीन, वन, तालाब, बाज़ार और खानों
आदि पर
ज़मींदारों की
मिलकियत थी,
वो राज्य
सरकार के
अधीन आ
गईI
राज्य सरकार
को यह
अधिकार मिला
कि इस
संपत्ति का
वितरण भूमिहीन
कृषक, दलितों और हरिजनों
के बीच
करेI
प्रत्येक जोत
की सीमा
निर्धारित कर
दी गयीI
इस एक
क़ानून से
ज़मींदारों कि
सारी मिलकियत
का अंत हो गया
जो उन्होंने
अग्रेज़ी शासन
से प्राप्त
किये थेI
1955 में
बिहार टीनेन्सी
(संशोधन) एक्ट द्वारा श्री सहाय ने बटाईदारी व्यवस्था की खामियों को दूर करने
के लिए बिहार टीनेन्सी क़ानून 1885
में भी
संशोधन करते
हुए रैयत
(भूमिहीन कृषक) को बिना
कारण बेदखल
करने के
भू-स्वामियों के
अधिकारों को
निरस्त किया
और जिला
अधिकारी को
यह अधिकार दिया कि
वे रैयत (भूमिहीन कृषक) के हितों की रक्षा करेंI
ऐसे संशोधन
छोटानागपुर टीनेन्सी
एक्ट और संथाल परगना टीनेन्सी एक्ट
में भी
किये गएI
दरभंगा नरेश
डॉक्टर कामेश्वर
सिंह के नेतृत्व में
ज़मींदारों ने
इस क़ानून
को पटना
उच्च न्यायालय
में चुनौती
दी,
जिसने इस
क़ानून को
निरस्त कर
दियाI बिहार सरकार ने
इस फैसले
के खिलाफ
सर्वोच्च न्यायालय
में अपील
दाखिल कियाI
यही वह
दौर था
जब इस
क़ानून को
बहाल रखने
के लिए
भारत के
संविधान में
प्रथम बार
संशोधन करने
की नौबत
आन पड़ीI
भारत के
प्रधान मंत्री
श्री.जवाहर लाल नेहरु ने 10
मई 1950
को प्रथम
संविधान संशोधन
प्रस्ताव संसद
के समक्ष
रखते हुए
इसके औचित्य
और उद्देश्य पर
प्रकाश डालाI
इस संशोधन
के बाद
नवां अनुसूची
को संविधान
में जोड़ा
गया और
भूमि सुधार
से सम्बंधित
सभी कानूनों
को इनमे
समाहित किया
गया ताकि
मौलिक अधिकारों
के हनन
के आधार
पर इन्हें
चुनौती नहीं
दी जा
सकेI
ज़मींदारी उन्मूलन
से सम्बंधित
क़ानून हालाँकि
लागू हो
गया, किन्तु
इस एक
क़ानून ने
श्री के
बी सहाय को समस्त अगड़ी जाति का
जीवनपर्यंत दुश्मन
बना दियाI बिहार की
जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था, जिसमे सवर्णों
का आधिपत्य
था, पर यह क़ानून सीधा
प्रहार थाI
दलितों के मुँह में जबान देने
का पहला प्रयासI सामजिक न्याय की पहली
विजयI इस क़ानून के
दूरगामी परिणाम
हुएI
आज यदि
दलित जागृत
हुए हैं तो इसका
श्रीगणेश इसी
क़ानून से
हुआI
सवर्णों का
विरोध ने
दलितों को संगठित होने पर विवश
कियाI सामाजिक न्याय की
बात जो नेता
आज करते
हैं उस संघर्ष
को इस मुकाम तक
पहुँचाने का
पहला पायदान यह क़ानून
थाI
इस क़ानून
ने बिहार
की सामाजिक
व्यवस्था में
खलबली मचा
दियाI यह भी सच
है कि
पटना न्यायालय
में जीतने और संविधान
संशोधन के बाद सर्वोच्च
न्यायलय में
हारने के
बीच के
समय में ज़मींदारों ने
बड़ी ही
चालाकी से सीमा से
अधिक अपनी
भूमि को बेनामी खातों में स्थान्तरित
करवा दिया
ताकि इस
अतिरिक्त भूमि
का अधिग्रहण
सरकार द्वारा
न किया जा सकेI
तथापि सवर्णों
की इस
कपट चाल
ने दलितों
के आँख
खोल दिएI
इसी जाग्रति
का परिणाम
है मध्य
बिहार में
सवर्णों और
दलितों के
बीच का
खुनी संघर्षI परन्तु इस
सामाजिक संघर्ष
का सबसे
बड़ा खामियाजा
श्री के.बी.सहाय को
भुगतना पड़ाI
सवर्ण लामबंद
हो कर
श्री सहाय
के पीछे
पड़ गएI
ज़मींदारों के
इस गोलबंद विरोध
का नतीजा
था कि 1957 के चुनाओं में श्री के.बी.सहाय को
हार का
सामना करना
पड़ाI 1962 में वो
पुनः जीते
और कामराज योजना के तहत
जब तात्कालिक मुख्यमंत्री श्री
विनोदानंद झा हटे तो कांग्रेस विधायक मंडल के चुनाव में
श्री बीर
चन्द पटेल को हरा कर
के.बी.सहाय 02
अक्टूबर 1963
को बिहार
के मुख्यमंत्री
बनेI
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
का मुख्यमंत्री
काल बिहार
की प्रगति
और उन्नत्ति
के लिए
जाना जाता
हैI
उनके कार्यकाल
में ही
1963 में
हैवी इलेक्ट्रिकल
कारपोरेशन (एच ई सी) हटिया का
उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरु
के कर
कमलों से
हुआ और
पतरातू थर्मल
भी कार्य
करना शुरू
कियाI कोडरमा में ओद्योगिक
एस्टेट बनाया
गयाI
बोकारो इस्पात
संयंत्र की
आधारशिला भी
उनके कार्यकाल
में ही
रखी गईI
स्थानीय संस्कृति
को बढ़ावा
देने के
लिए 1965
में रांची
में भारतीय
संस्कृति अकादमी
की स्थापना
हुईI
कोडरमा में
सैनिक स्कूल
भी खोला
गया और
प्रत्येक जिले
में कॉलेज
और स्कूल
खोले गए
जिनमे से
कई तो
अब भी
उनके नाम
पर ही
हैंI
1964 में
रांची में
ही राजेंद्र
चिकित्सा संस्थान
की स्थापना
हुईI
बिहार और
खास कर
छोटानागपुर के
हितों की
रक्षा के
लिए वे
सदा सजग
रहे और
इस क्रम
में कई
बार उनका टकराव केंद्र
सरकार से
हुआI
कृष्ण बल्लभ
सहाय उन
कतिपय नेताओं
में से
थे जिन्हें
उनके आलोचक
भी एक
योग्य प्रशासक
मानता थाI
पर 1967
आते आते
परिस्थितियां श्री
कृष्ण बल्लभ
सहाय के
प्रतिकूल बनने
लगीI
1966-67 में
लगातार दूसरे वर्ष
बिहार में
राज्य ब्यापी
सूखा पड़ा
और अनाज
संकट ने
विकत रूप
अख्तियार कर
लियाI केंद्रसरकार की मदद
समय पर
नहीं मिलने
पर श्री
सहाय ने कालाबाजारियों पर सख्त कारवाई
के आदेश
दिएI
पर अनाज
की समस्या
ज्यों की
त्यों बनी
रही और
आम जनता
का आक्रोश
श्री सहाय
पर ही
उतराI इसी समय राज्य
कर्मचारी संघ
भी वेतन
बढाने के
मुद्दे को
लेकर हड़ताल
पर चले
गएI
विपक्षी नेताओं
की अगुवाई
में इन
विषम स्थिति
शुरू हुआ
छात्र आन्दोलन
और उनपर
श्री सहाय
की पुलिस
कारवाई के
आदेश ने
मानो आग
में घी
का काम
कियाI 1967 के चुनाव
में सारी बाज़ी श्री
सहाय के
पलट थी
और इसका
परिणाम हुआ
कि इस
चुनाव के
बाद बिहार
में कांग्रेस
शासन का
अंत हो
गयाI
05 मार्च
1967 को
चुनाव में
हार के
बाद श्री.के.बी.सहाय ने
मुख्यमंत्री पड़
छोड़ दियाI
महामाया प्रसाद
क़ी सरकार
ने के.बी.सहाय पर
एक जांच
आयोग गठित
कर तथाकथित
भ्रस्टाचार के
जांच के
आदेश दिएI
कुल 189
चार्ज श्री सहाय पर
लगाये गए
थेI
श्री महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में उनको
भी स्थान
मिला जो
ज़मींदारी उन्मूलन
के ज़माने
से श्री
सहाय से
खार खाए
बैठे थेI
ज़मींदारी उन्मूलन
के अपने
प्रयास के
लिए के.बी.सहाय को
अपरोक्ष रूप
से कठघरे
में डालने
क़ी यह घिनौनी साज़िश थीI
के.बी.सहाय ने
बड़ी ही
मेहनत से
एक योग्य
प्रशासक और कुशल नेता
क़ी छवि
बनायीं थीI
उनकी छवि उज्जवल थीI
इसी छवि
को बदनाम
और ध्वस्त
करने का
हथियार बना
यह जांच
आयोगI के.बी.सहाय खुद
भी कहा
करते थे
कि यदि
उन्होनें कुछ
गलत किया
है तो
उसकी सजा
उन्हें तुरंत
मिलनी चाहिएI आयोग क़ी
धीमी प्रगति
से वे
काफी नाराज
रहते थे
और उनका
मानना था
यह उन्हें राजनीति से
उन्हें दूर
रखने का
बहाना मात्र
हैI
यह भी
सत्य है
कि यदि के.बी.सहाय के
खिलाफ 189
में से
एक भी
चार्ज साबित
हो जाता
तो तात्कालिक
केंद्र और राज्य सरकारें उनकी राजनैतिक करियर का अंत कर
देतीI इस आयोग ने
05 फरवरी
1970 को
अपना रिपोर्ट
राज्य सरकार को प्रस्तुत
किया और इस पर
कोई कारवाई
नहीं हुई क्योंकि कारवाई किये जाने
योग्य कोई चार्ज सिद्ध
नहीं हुएI
इसके बाद
भी श्री के.बी.सहाय बिहार
की राजनीति
में सतत
क्रियाशील रहेI 29 मई
1974 को
वे बिहार
विधान परिषद् में मुखिया/ शिक्षक सीट से चुने गएI
जून में उन्होनें सदस्यता और गोपनीयता की शपथ लियाI वे अपने लक्ष्य
के प्रति 76 वर्ष के इस
उम्र में भी सजग
थेI
उन्होनें कहा
था क़ि इस पारी
में वे दलितों
के लिए
अंतिम लडाई
लड़ेगें और
ज़मींदारों द्वारा
अपनाये गए
सारे हथकंडों
का मूंह तोड़ जवाब देंगेI
किन्तु यह
होना न
थाI
03 जून
को पटना
से हजारीबाग
अपने घर
लौटने के
क्रम में
हजारीबाग से 05 किलोमीटर
दूर ही एक विवादास्पद
सड़क दुर्घटना
में उनकी मृत्यु हो
गईI
के.बी.सहाय को
दलितों के
हक के
लिए संघर्ष
करना बड़ा
ही महंगा
पड़ाI ज़मींदारी उन्मूलन के
इस संग्राम
में कृष्ण
बल्लभ सहाय
अभिमन्यु की
तरह अकेले
थेI
के.बी.सहाय द्वारा
विधायी क़ानून
द्वारा सामाजिक
परिवर्तन लाने
के प्रयास
पर भले
ही प्रश्न उठाये जाए पर
यह भी
सच था
कि तात्कालिक
परिस्थितियों में
इसके अलावा
और कोई
दूसरा रास्ता
भी नहीं
थाI
आचार्य विनोबा
भावे ने
"भूदान" और "ग्रामदान" द्वारा ज़मींदारों से
स्वेच्छा से भूमि
दान करने
का सविनय अनुरोध
किया और बिहार में दर दर
ज़मींदारों के
सामने हाथ
फैलाये, किन्तु उनकी अपील
का ज़मींदारों
पर कोई
विशेष असर
नहीं हुआI
इससे मर्माहत
हो कर
ही जय प्रकाश नारायण जी को
कहना पड़ा
था कि
"हमने बिहार में 18 महीने से बाबा को रोक कर रखा है इस उम्मीद पर
कि बिहार
के ज़मींदार 32 लाख एकड़ ज़मीन दान देने के अपने वादे को निभायेगेंI किन्तु हम अब तक अपने वादे को पूरा नहीं कर पाए, जो हमारे लिए शर्म कि बात हैI"
श्री सहाय
के हौसले
और हिम्मत का अंदाजा
इस बात से
लगाया जा सकता है
क़ि उनके
बाद बिहार
में फिर
किसी नेता
ने,
चाहे वह
किसी भी
दल का
रहा हो
और अपने को दलितों
और भूमिहीन
किसानों का कितना भी
बड़ा हिमायती
क्यों न
मानता हो, भूमि सुधार
के लिए
कोई सार्थक
कदम नहीं
उठायाI कर्पूरी ठाकुर के
ज़माने में
कोसी क्षेत्र
में ज़मींदारों
के मिलकियत
में ज़ोतेदारों
द्वारा की
जा रही
खेती के
आकडे संकलित करने के
प्रयास हुए,
पर कुछ
दिनों बाद
इसे इस
कारण रोक
दिया गया
क्योंकि परोक्ष
रूप से
ज़मीन के
असली ज़ोतेदारों
के नाम उजागर हो
जातेI वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश
कुमार ने
भी श्री.डी.बंदोपाध्याय की
अध्यक्षता में एक समिति
का गठन
बड़े ही
जोश-खरोश किया
थाI
श्री डी.बंदोपाध्याय की
भूमि सुधार
से सम्बंधित रिपोर्ट बंगाल सरकार द्वारा
लागू की
जा चुकी
थीI
बिहार भूमि सुधार आयोग
के अध्यक्ष
के रूप में
भी उन्होनें नितीश सरकार
को अपनी
रिपोर्ट सौंपीI
इनकी अनुशंषाओं में प्रमुख, प्रत्येक किसान की भूमि सीमा
15 एकड़ निर्धारित
कर देना,
थाI जैसे की
अपेक्षा थी
इस रिपोर्ट
का भू-स्वामियों ने
जोरदार विरोध
किया और
अंततः नितीश
सरकार को
इनके सामने
झुकना पड़ा और बंदोपाध्याय समिति
की सिफारिशों
को ठन्डे
बस्ते में
डाल दिया
गयाI
इसका नतीजा
है कि
आज भी
भूमिहीन किसानों
का बिहार
से पलायन
जारी हैI
भूमि-सुधार के अपने
प्रयासों और
कानूनों के लिए के.बी.सहाय आज
भी एक विशेषज्ञ के तौर
पर जाने जाते
हैंI आप इन्टरनेट पर
किसी भी सर्च इंजिन
पर चले
जाए और
"भूमि सुधार"
या
"लैंड रिफोर्म" से सम्बंधित
कोई भी जानकारी एकत्रित करें आपको के.बी.सहाय और
उनके योगदान
के बारे में
जानकारी मिलेगीI
भूमि सुधार
से सम्बंधित
किसी भी
लेखक की
कोई भी
किताब पढ़ें आपको प्रत्यक्ष
अथवा परोक्ष
रूप से
के.बी.सहाय का
जिक्र अवश्य
मिलेगाI भूमि सुधार के
मामले में श्री के.बी.सहाय की सक्षमता का यह परिचायक हैI
स्वतंत्र बिहार
के प्रमुख
नेताओं में
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
का नाम
आज भी
अग्रणी हैI
जहाँ श्री
जय प्रकाश नारायण ने
उन्हें "आधुनिक बिहार का निर्माता" माना,
वहीँ तत्कालीन
समाचार पत्र
" इंडियन नेशन " की नज़रों में
वे
"बिहार के लौह पुरुष " थेI किन्तु यह
भी सच
है कि
श्री कृष्ण
बल्लभ सहाय
बिहार के
सर्वाधिक विवादास्पद
मुख्यमंत्री रहेI
उनकी कुशाग्र
बुद्धि का
विपक्ष भी
लोहा मानता
था और
कठोर प्रशासनिक
निर्णय लेने
और उसे
शीघ्र लागू
करने की
उनकी क्षमता
की आज
भी पटना के
प्रशासनिक हलकों
में चर्चा होती
हैI
आदिवासी और
दलितों के
कल्याण के
लिए किये
गए उनके
कार्य उन्हें,
किसी भी
आदिवासी मुख्यमंत्री
की तुलना
में,
आदिवासियों का
अधिक हितैषी
बना देता
हैI
तथापि बिहार
और झारखण्ड
के इतिहास
में आज
इनका वो
स्थान नहीं
है जिसके
ये काबिल
थेI
आज भी
उनकी पार्टी
यानी कांग्रेस
पार्टी बिहार
में दलितों के लिए किये गए
कार्यों का
लेखा जोखा
जब जनता
के सामने
रखती है
तो कांग्रेस
शासन की उपलब्धियों के
तौर पर
बताने को
के.बी.सहाय के भूमि सुधार
से सम्बंधित
योगदान के
अलावा और
कुछ विशेष
नहीं रहताI
सन 2000 के
बिहार चुनाओं
में इलेक्शन रैली
को संबोधित करते
हुए श्रीमती सोनिया गाँधी के ये
विचार कि "बिहार में विकास तभी हुए हैं जब राज्य में कांग्रेस सरकारें रही; "यहाँ तक कि भूमि सुधार भी कांग्रेस मुख्यमंत्री
श्री.के.बी.सहाय द्वारा ही शुरू क़ी गई थीI" (इंडियन एक्सप्रेस,
05 फरवरी
2000), इस बात का
प्रत्यक्ष प्रमाण
हैI
श्री सहाय
के योगदान
की महत्ता
उनकी मृत्यु
के 37 साल
बाद भी
ज्यों कि
त्यों बनी
हुई हैI
श्री सहाय
और ज़मींदारी
उन्मूलन से
सम्बंधित उनके
प्रयासों की
सार्थकता तब तक बनी
रहेगी जब तक ज़मीन
को लेकर
जातिगत संघर्ष
का अंत
नहीं हो
जाताI आज भी कांग्रेस
को बिहार
में अपने
कार्य दिखाने
के लिए
के.बी.सहाय की
आवश्यकता पड़ती
हैI
किन्तु यह
दुःख की
बात है
कि आज
श्री सहाय को इतिहास
में वह
स्थान नहीं
मिला जिसके
वे योग्य
थेI
यह श्री
सहाय के
कलम की
शक्ति थी
जिससे भारत के संविधान
में पहला
संशोधन हुआ और एक
नयी अनुसूची
को संविधान
में जोड़ा गयाI
यदि के.बी.सहाय दलित
वर्ग से
आते तो उनका
यह प्रयास उन्हें किसी भी राष्ट्रीय स्तर के नेता के
समकक्ष खड़ा
कर देता;
किन्तु वे वोट बैंक
की दृष्टि
से महत्वहीन
कायस्थ जाति
से आते थेi
इसलिए यह
राष्ट्र और
बिहार राज्य यहाँ तक
की उनकी अपनी
पार्टी ने
भी उन्हें भुला
दियाi आज यह उचित
समय है क़ि श्री.के.बी.सहाय की
योग्यता और उनके द्वारा
किये गए
महत्तम कार्यों
को देखते
हुए बिहार सरकार
उन्हें उनका
उचित सम्मान
देI
कम से
कम उनके
नाम पर स्वतंत्रता संग्रामियों की श्रृंखला
में एक डाक टिकट तो
जारी करवाने
के लिए
केंद्र सरकार से आग्रह तो बिहार
सरकार कर ही सकती
है,
ताकि इस वीर सपूत
की यादों
को अमर
रखा जा
सकेI
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