Saturday, 26 April 2014

छोटानागपुर विभूति के.बी.सहाय- कृष्ण बलराज (राजेश सहाय)



छोटानागपुर विभूति के.बी.सहाय


यह संस्मरण 31 दिसम्बर 2009 के "रांची एक्सप्रेस" समाचार पत्र  में लेखक के छद्म नाम कृष्ण बलराज नाम से प्रकाशित  हुआ।   



पूर्ववर्ती छोटानागपुर, जिसे आज झारखण्ड के नाम से जाना जाता है, के सामाजिक और आर्थिक विकास में जिन कतिपय हस्तियों का नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है, उनमें स्वर्गीय कृष्ण बल्लभ सहाय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। छोटानागपुर के विकास में ऐसे कई महापुरुषों ने योगदान दिया जिनका जन्म इस पावन भूमि में नहीं हुआ था। इन महापुरुषों में कई तो आदिवासी मूल के भी नहीं थे। तथापि छोटानागपुर क्षेत्र के गरीब और और कमजोर वर्ग एवं आदिवासियों के उत्थान एवं विकास में इन महापुरुषों का योगदान अद्वितीय रहा।

कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म 31 दिसम्बर 1898 को पटना जिला के फतुआ के निकट शेखपुरा ग्राम में हुआ था। इनके पिता मुंशी गंगा प्रसाद ब्रिटिश सरकार के मुलाजिम थे एवं दरोगा के पद पर कार्यरत थे। मुंशीजी की नियुक्ति प्रायः छोटानागपुर, विशेषतः हजारीबाग जिले के विभिन्न थानों में होती रहती थी। लिहाजा कृष्ण बल्लभ का बाल्यकाल हजारीबाग में बीताI प्रारंभिक शिक्षा उन्होनें हजारीबाग धर्मशाला प्राइमरी विद्यालय से तथा मेट्रिक की शिक्षा जिला स्कूल, हजारीबाग से प्राप्त की। मेट्रिक की परीक्षा में वे पूरे बिहार में अव्वल रहे। 1919 में संत कोलम्बा कॉलेज, हजारीबाग से अंग्रेजी स्नातक (प्रतिष्ठा ) में वे पुनः अव्वल रहे और तात्कालिक राज्यपाल गेट महोदय द्वारा उन्हें गोल्ड मैडल से नवाजा गयाI शिक्षा दीक्षा के इस काल में ही वे स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुए। ब्रिटिश हुकूमत की ज्यादतियों को उन्होनें एक दरोगा पुत्र के तौर पर काफी करीब से देखा था आदिवासियों और गरीब ग्रामीणों पर थाने में होने वाले अत्याचारों से वे विचलित थेI

तात्कालिक राजनैतिक गतिविधियों ने कृष्ण बल्लभ को काफी प्रभावित किया। एक ओर स्वतंत्रता संग्राम और दूसरी ओर समाज में फैली गरीबी ने उनके सोच को इस दिशा में बढायाI गरीब कृषकों की दयनीय हालत, ज़मींदारों के ज़ुल्म और ब्रिटिश पुलिस व्यवस्था की सांठ गाँठ से खेतिहरों पर हो रहे अन्याय के विरोध में उनके विचार तात्कालिक पत्रों में प्रकाशित होने लगेI इस बीच उन्होनें एम ए (अंग्रेजी) में दाखिला लिया एवं क़ानून की पढ़ाई भी शुरू की। साथ ही कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र "अमृत बाज़ार पत्रिका" के पत्रकार के रूप में उनके विचार इस समाचार पात्र में प्रकाशित होने लगे। इसी दरम्यान 1921 में महात्मा गाँधी के आह्वाहन पर अपने उज्जवल भविष्य को तिलांजलि देकर अपना जीवन पूर्णरूपेण राष्ट्र को समर्पित करते हुए असहयोग आन्दोलन का हजारीबाग में नेतृत्व करते हुए सर्वप्रथम जेल गएI 1921 से लेकर स्वतंत्रता तक वे कई बार जेल गए। 1928, 1930, 1932, 1934, 1940 और पुनः 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में उन्होनें सक्रिय भाग लिया एवं वर्षों विभिन्न जेलों में जीवन बीतना पड़ा। इसी दौरान 1932 में वे होम रूल के तहत स्वराज पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में बिहार विधान परिषद् के लिए चुने गए। इस दौरान वे कलकत्ता के नेशनल लाइब्रेरी भी गए जहाँ उन्होनें तात्कालिक ज़मींदारी व्यवस्था एवं ब्रिटिश सरकार की परमानेंट सेटलमेंट एक्ट का गहन अध्ययन कियाI इस एक्ट को ख़त्म कर जोतदारों को ज़मीन का असली हक दिलाने के लिए क़ानून की रूप रेखा उनके मस्तिष्क में तैयार होने लगी थी। 

15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआI श्री कृष्ण सिन्हा बिहार में स्थापित अंतरिम सरकार के मुख्य मंत्री बने एवं के बी सहाय उनके मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री बनेI बलदेव सहाय के सक्रिय सहयोग से उन्होनें खुद ज़मींदारी उन्मूलन विधेयक बनायाI श्री सहाय की सक्रियता पर ज़मींदारों का गुट भी नज़र रखे हुए थाI ऐन विधेयक पेश करने से पहले श्री के.बी. सहाय पर ज़मींदारों के नुमाइन्दो  द्वारा पहला कातिलाना हमला हुआ। लाठी से हुए प्रहारों में श्री सहाय का सिर फट गयाI तथापि इन सब से विचलित हुए बिना खून रिश्ते सर पर पट्टी लगाए जब श्री के बी सहाय ने बिहार विधान सभा के पटल पर ज़मींदारी उन्मूलन विधेयक प्रस्तुत किया तो वे कृषकों के वास्तविक प्रतिनिधि एवं ज़मींदारी उन्मूलन के संघर्ष के सही प्रतीक दिखलाई दिएi ज़मींदारों एवं श्री के बी सहाय के बीच अगले 25 वर्षों तक चलने वाले संघर्ष का यह पहला अध्याय मात्र था। इस संघर्ष ने ही जातिगत राजनीति में के बी सहाय को बिलकुल अकेला एवं अलग थलग कर दिया। ज़मींदार प्रायः राजपूत एवं भूमिहार थे एवं एक कायस्थ द्वारा उनकी मिलकियत पर किया गया प्रहार उनके लिए असहनीय था। 1962 में ये विवेकानंद मंत्रिमंडल में सहकारिता मंत्री बनाये गयेI 2 अक्टूबर 1963 को कामराज योजना के तहत ये बिहार के मुख्य मंत्री बने। यह पहला अवसर था जब छोटानागपुर क्षेत्र को यह गौरव प्राप्त हुआ था। अपनी पुस्तक "कहानी झारखण्ड आन्दोलन की" के लेखक बलबीर दत्त ने तो उन्हें प्रथम छोटानागपुरी मुख्य मंत्री करार दिया है और रांची आगमन पर उनके अभूतपूर्व स्वागत का बड़ा जीवंत चित्रण किया है। मुख्य मंत्री के तौर पर बिहार, विशेष कर छोटा नागपुर क्षेत्र के विकास हेतु उन्होनें कई कदम उठायेI पतरातू ताप विद्युत् योजना, तेनुघट परियोजना, काष्ठ प्रसंस्करण उद्योग, कोडरमा में माचिस फैक्ट्री, बोकारो इस्पात संयंत्र की स्थापना हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य इसी दौरान हुए। कई स्कूलों एवं कालेजो की भी स्थापना की गयी। हालाँकि 1967 तक आते आते परिस्थितियां विपरीत होने लगी थी। 1966-67 का भयंकर सुखा, जनवरी 1967 में छात्रों पर पुलिस द्वारा गोली काण्ड एवं अराजपत्रित कर्मचारियों का हड़ताल, ऐसे नासूर बन गए कि 1967 में बिहार में कांग्रेस एवं के बी सहाय के मुख्यमंत्रित्व काल का भी अंत हो गया।

इस हार के बावजूद के बी सहाय प्रयासरत रहे और वे पुनः 1974 में बिहार विधान परिषद् में चुने गए। अपने भविष्य की राजनीति की चर्चा करते हुए उन्होनें अपने पुत्र से कहा था कि इस पारी में वे किसानो को उनका हक दिलवा कर छोड़ेगें। किन्तु यह होना न था। चुनाव जीतने के मात्र एक सप्ताह बाद 3 जून 1974 को पुनः उन्हें एक जबरदस्त कार दुर्घटना का सामना करना पड़ाI परन्तु इस बार का हमला घातक सिद्ध हुआ जिसने उनके प्राण ले लिए।

इस प्रकार छोटानागपुर के एक स्वाभिमानी, जुझारू एवं सफल नेतृत्व का हठात अंत हो गया। कृष्ण बल्लभ सहाय सारी ज़िन्दगी ज़मींदारों के खिलाफ लड़ते रहे और इस क्रम में सभी अगड़ी जातियों से वैमनष्य मोल ले लिया। इसी की तोड़ के लिए उन्होनें समाज की पिछड़ी जातियों का सहयोग लिया जिन्होनें उन्हें यथोचित सहयोग भी किया।

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