Friday, 10 January 2025

‘कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे’ (11/01/2025)

  

 कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे







स्वप्न झरे फूल से गीत चुभे शूल से, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे- अमर कवि गोपाल दास सक्सेना नीरज (4 जनवरी 1925- 19 जुलाई 2018) की यह प्रचलित कविता, जिसे वो वर्षों पहले ही लिख चुके थे, 1966 में सुप्रसिद्ध संगीतकार रोशन ने अपने कर्णप्रिय संगीत से उस वर्ष प्रदर्शित फिल्म नई उमर की नई फसल में पिरोया था। रोशन के संगीत में फिल्म के लिए इसे स्वर दिया था मोहम्मद रफी ने जिनकी जन्म-शताब्दी गत वर्ष 2024 में मनाई गयी। 1925 नीरज की जन्म-शताब्दी का वर्ष है। आर॰ चंद्रा निर्देशित यह फिल्म छात्र राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी थी जो भारत सरकार के उपक्रम मेसर्स फिल्म फ़ाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा वित्त-पोषित थी।

किन्तु इस फिल्म और गीत का कृष्ण बल्लभ बाबू के राजनैतिक जीवन से क्या वास्ता रहा यह एक दिलचस्प पहलू है। 1966 में कृष्ण बल्लभ बाबू की तात्कालिक बिहार सरकार ने इसे बिहार में कर-मुक्त घोषित किया था। संभवतः कृष्ण बल्लभ बाबू छात्रों को राजनीतिज्ञों के कपट-चालों से आगाह करवाना चाहते थे।

किन्तु छात्र राजनीति पर बनी इस फिल्म पर बिहार में 1966 में जो गलीज राजनीति हुई वो वास्तव में शर्मनाक था। कृष्ण बल्लभ बाबू पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे उनमें से एक यह भी था कि इस फिल्म को कर-मुक्त (टैक्स-फ्री) कर उन्होंने सरकार के राजस्व का नुकसान किया। यह तो न्यायाधीश अय्यर भी सिद्ध नहीं कर पाये कि इस फिल्म को कर-मुक्त करने से सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ अथवा नहीं,  किन्तु यह शाश्वत सत्य है कि 1966 के छात्र आंदोलन के बाद बिहार में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता का जो ह्रास हुआ और शैक्षणिक सत्र पिछड़ते चले गए उससे असंख्य छात्र अभिशप्त हुए और उनका भविष्य अंधकारमय हुआ। बिहार के छात्र दिल्ली और अन्य शहरों को पलायन को बाध्य हुए। एक पूरी पीढ़ी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और उनके नुकसान का फायदा चंद राजनीतिज्ञों ने उठाया।

1968 में न्यायाधीश टी॰ एल॰ वेंकटरामा अय्यर की अध्यक्षता में गठित जांच कमीशन को अन्य आरोपों के अलावे इस बात की जांच के भी निर्देश थे। श्री अय्यर ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था।

बिहार में छात्रों को प्यादा बनाकर कितने ही नेता मुख्यमंत्री बने। आज भी इन्हीं छात्रों के बूते कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। यह कितना सही है यह निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूँ। बहरहाल, यह फिल्म यू-ट्यूब पर उपलब्ध है जिसे देखें और अपना मन्तव्य दें।     

 


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