कृष्ण बल्लभ सहाय |
देशप्राण में प्रकाशित लेख 31 दिसंबर 2018 |
स्वतंत्रता सेनानी एवं सफल प्रशासक – के. बी. सहाय
-विजय कुमार सिन्हा, (देशप्राण, रांची) 31 दिसंबर 2018
31 दिसंबर 1898 को कृष्ण बल्लभ बाबू का जन्म पटना
ज़िले के शेखपुरा गांव में एक कायस्थ परिवार
में हुआ था। पिता श्री गंगा प्रसाद ब्रिटिश हुकूमत में दरोगा
पद पर कार्यरत थे। बतौर दरोगा इनके पिता का स्थानांतरण कई
जगहों पर होता रहा। जब ये हज़ारीबाग आये तो कृष्ण बल्लभ का
हज़ारीबाग के जिला स्कूल में नामांकन करवाया वे पढ़ने लिखने में कुशाग्र थे।
मैट्रिक के बाद इन्होनें पढ़ाई के लिए संत कोलम्बस
कॉलेज में दाखिला लिया।1919 में संत कोलम्बस कॉलेज से इन्होने
अंग्रेजी में स्नातक की परीक्षा में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम दर्ज़ा हासिल किया। इस अवसर पर इन्हें तात्कालिक राज्यपाल ने 'गेट स्वर्ण पदक' से
सम्मानित किया। यह दौर था जब गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता
संग्राम परवान चढ़ रहा था। कृष्ण बल्लभ का मानना था कि अंग्रेज़ों
से लोहा तभी लिया जा सकता है जब भारत का युवा पढ़ा लिखा और जागरूक हो। यही वजह थी कि इन्होने धैर्यपूर्वक अपनी शिक्षा पर ध्यान दिया। कॉलेज के दौर में भी इनके सहपाठीगण इनकी ओजस्वी भाषण शैली और नेतृत्व
क्षमता के कायल थे। उन दिनों को याद करते हुए उनके सहपाठी
और हजारीबाग के सेवा निवृत सिविल सर्जन डॉक्टर एस. ए. मुज्ज़फ्फर कहते हैं: "यह
वर्ष 1917-18 की घटना थी। व्हिटनी स्मारक भवन में वाद विवाद
का विषय था: "क्या भारत वर्ष होम रूल के लिए तैयार है?" संत कोलंबस कॉलेज
के तात्कालिक प्रधानाध्यापक कैनेडी विचारों की स्वतंत्रता पर विशेष बल देते थे और यह
विषय उन्ही का चुना हुआ था। इस अवसर पर कृष्ण बल्लभ की दी
हुई ओजस्वी भाषण ने सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। वो एक जन्मजात
वक्ता और नेता थे।"
कॉलेज के दिनों से ही कृष्ण बल्लभ पत्रकारिता से भी जुड़े थे। "अमृत बाज़ार पत्रिका" के स्थानीय संवाददाता की हैसियत से स्वतंत्रता संग्राम और किसान आन्दोलन पर इनके विचार लगातार इस पत्रिका में छपते रहे। स्वतान्त्रोपरांत भी पत्रकारिता से ये जुड़े रहे और "छोटानागपुर दर्पण" नाम से हजारीबाग से ही कई वर्षों तक अपनी पत्रिका निकIलते रहे।
पिता की दिली इच्क्षा थी कि ये आई.सी.एस.की परीक्षा में बैठें और सफल हो कर एक ब्रिटिश दरोगा का नाम रौशन करें। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष
1921 में गांधीजी ने देश व्यापी असहयोग आन्दोलन का आह्वाहन किया और भारत के असंख्य युवाओं की तरह कृष्ण बल्लभ ने भी जननी जन्मभूमि के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझा और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इसके साथ ही दरोगा साहब ने अपने वरिष्ठ पुत्र से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया।
1921 में इन्होनें असहयोग आन्दोलन में सक्रियता से भाग लिया श्री राम नारायण सिंह के साथ मिल कर इन्होनें तात्कालिक हजारीबाग जिले (जो अब हजारीबाग,
कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो,
रामगढ, चतरा जिलों में बँट गया है)
के गाँव-गाँव में जा कर न केवल लोगों को आन्दोलन को प्रेरित किया वरण ज़मींदारों के खिलाफ रैयतों को संगठित भी किया। यही वो समय था जब कृष्ण बल्लभ को गाँव में बसे असली भारत को समझने का अवसर मिला और उन्होनें अपनी जड़ों को पहचाना। ग्रामीणों के साथ उठना बैठना,
उन्ही के साथ खाना-पीना और उनके विचारों को पत्रकारिता के माध्यम से ऊपर तक पहुचाना उनका दिनचर्या बन गई।
इस दरमयान स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आन्दोलन में भी भाग लिया और किसानों और मजदूरों के मुद्दे को पत्र पत्रिकाओं में उठायाI
ये वो वर्ष थे जिन्होंने युवा कृष्ण बल्लभ के विचारों को दिशा दी। जहाँ अन्त्योदय आन्दोलन ने उन्हें गरीबों और दलितों के करीब लाया और उनके लिए कुछ करने का जज्बा उनमें पैदा किया वहीं
किसान आन्दोलन ने ज़मींदारी व्यावस्था के खिलाफ उनके विचारों और संकल्प को और ढृढ़ कियाI
इस क्रम में ये कलकत्ता के नेशनल लायब्रेरी गए और लोर्ड कार्नवालिस के
परमानेंट सेटलमेंट एक्ट
1793 का गहन अध्ययन किया। 1925 में कृष्ण बल्लभ सहाय होम रूल के तहत बिहार विधान परिषद् में सदस्य बनें।1930 में गांधीजी के आह्वाहन पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के जुर्म में पुनः जेल गएI 1930 से
1934 के बीच श्री सहाय इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण चार बार जेल गए। इन्ही जेल प्रवासों में इनका परिचय श्री कृष्ण सिन्हा से हुआ और उनके बीच जो मित्रता हुई वो जीवन पर्यंत बना रहा।
1937 में कांग्रेस ने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 के तहत सरकार में भागीदारी का फैसला लिया और बिहार में श्री कृष्ण सिन्हा के मंत्रिमंडल में कृष्ण बल्लभ सहाय संसदीय सचिव बनाये गए।
11 मई 1942 को डॉ.
राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में शाहाबाद, कुदरा में विशाल किसान सभा का आयोजन इन्होनें किया जहाँ किसानों से जुड़े मुद्दे उठाये गए और सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गयाI
इसी से प्रेरित हो कर श्री कृष्ण सिन्हा ने इन्हें मुंगेर आमंत्रित किया। मुंगेर के तारापुर में "बनैली राज की किसानों पर जुल्म" विषय पर रैली का सफल आयोजन किया गया जिसमे श्री जे बी कृपलानी ने भी भाग लिया। हजारीबाग जिले में भारत छोडो आन्दोलन का नेतृत्व श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने किया और आन्दोलन के दूसरे
ही दिन 10 अगस्त 1942 को जिला अधिकारी के आदेश के तहत इनको गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया।
1946
में कांग्रेस की अंतरिम सरकारों ने राज्यों में सत्ता संभाली बिहार में श्रीकृष्ण सिन्हा
के नेतृत्व में सरकार बनी और 16 अप्रैल 1946 को श्री सहाय
इनके मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री बनाये गए। श्री सहाय इस
पद पर 4 मई 1957 तक बने रहे।
राजस्व मंत्री की हैसियत से इन्होनें ज़मींदारी
उन्मूलन और भूमि सुधार से सम्बंधित कईं कानून और नियम बनाये जिनका परंपरागत समाज और
भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर हुआ। इन कानूनों ने ज़मींदारी
व्यवस्था की चूलें हिला दी और एक ही झटके में जमींदार अर्श से फर्श पर आ गए और किसानों
और भूमिहीनों को भूमि का वह स्वामित्व प्राप्त हुआ जिसे वे अब तक केवल जोतते आए थे।
1946-1948 के काल में श्री सहाय को ज़मींदारों का अभूतपूर्व विरोध का सामना करना पड़ा। यह विरोध इतना प्रचंड था क़ि एक समय गांधीजी
भी क़ानून द्वारा सामाजिक समानता लाने के उनके इस प्रयास के प्रति सशंकित हो गए।
जब
ज़मींदारों ने अपील और विरोध का कोई असर नहीं देखा तो उन्होंने श्री सहाय पर कातिलाना
हमले भी करवाए। यह श्री सहाय का भाग्य था वे इस हमले में बच गए।
भारत
के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने 10 मई 1950 को प्रथम संविधान संशोधन प्रस्ताव
संसद के समक्ष रखते हुए इसके औचित्य और उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इस
संशोधन के बाद नवां अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया और भूमि-सुधार से सम्बंधित सभी
कानूनों को इनमे समाहित किया गया ताकि मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर इन्हें चुनौती
नहीं दी जा सके।
श्री कृष्णबल्लभ सहाय का मुख्यमंत्री काल बिहार की प्रगति और उन्नत्ति के लिए जाना जाता है। उनके कार्यकाल में ही 1963 में हैवी इलेक्ट्रिकल कारपोरेशन (एच ई सी)
हटिया का उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरु के कर कमलों से हुआ और पतरातू थर्मल भी कार्य करना शुरू कियाI
कोडरमा में ओद्योगिक एस्टेट बनाया गया। बोकारो इस्पात संयंत्र की आधारशिला भी उनके कार्यकाल में ही रखी गईI स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए
1965 में रांची में भारतीय संस्कृति अकादमी की स्थापना हुई। कोडरमा में सैनिक स्कूल भी खोला गया और प्रत्येक जिले में कॉलेज और स्कूल खोले गए जिनमे से कई तो अब भी उनके नाम पर ही हैं। 1964 में रांची में ही राजेंद्र चिकित्सा संस्थान की स्थापना हुई।
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय उन नेताओं में से थे जिन्हें
उनके आलोचक भी एक योग्य प्रशासक मानते थे
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