के. बी. सहाय |
के. बी. सहाय- एक अपराजय योद्धा जयंती विशेष |
पटना
(एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ ब्यूरो) बिहार के महान विभूतियों में शामिल के. बी. सहाय उर्फ़
कृष्ण बल्लभ सहाय एक महान स्वतंत्रता सेनानी, योग्य प्रशासक, भूमि-सुधर के जनक और बिहार
के प्रथम विकास पुरुष मुख्यमंत्री थे, जिन्हे 'बिहार का लौह पुरुष' भी कहा जाता है। इन्होने अपनी ज़िन्दगी से कभी समझौता नहीं किया, कभी हार नहीं मानी।
उनके
पिता मुंशी गंगा प्रसाद ब्रिटिश-राज के समय के दरोगा थे। के.
बी. सहाय चाहते थे कि उनके पिता दरोगा की नौकरी छोड़ कर आज़ादी में शामिल लोगों की मदद
करें इस बात को लेकर पिता-पुत्र में हमेशा अनबन बनी रहती थी। अंततः
के बी सहाय पिता का घर छोड़ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। के.
बी. सहाय की प्रारंभिक शिक्षा गांव में फिर कलकत्ता में हुई, (यह गलत जानकारी है. इन्होनें
कॉलेज की शिक्षा हज़ारीबाग में पाई) जहाँ से उन्होंने अंग्रेजी विषय में प्रथम श्रेणी
में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की।
कलकत्ता
क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था। पढ़ाई के दौरान ही वे क्रन्तिकारी
गुटों में शामिल होकर देश की आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1920 में
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। कहा जाता है कि बिहार में
जिन थोड़े से नेताओं को महात्मा गाँधी का सान्निध्य प्राप्त था उसमें के. बी. सहाय का
नाम भी आता है। के. बी. सहाय सिर्फ महात्मा गाँधी के संपर्क
में ही नहीं आए बल्कि पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद और खान अब्दुल गफ्फार खान सहित कईं
चोटी के नेताओं के संपर्क में रहने का मौका मिला। ब्रिटिश-राज
के तहत जब प्रादेशिक स्वायत्ता प्रदान की गयी तब वो 1936 में बिहार विधान-सभा चुनाव
में हज़ारीबाग ग्रामीण विधान सभा के लिए चुने गए। 1937 में
श्रीकृष्ण सिन्हा मंत्रिमंडल में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया। इस
दौरान ज़मींदारों के हाथों गरीबों पर हो रहे शोषण ने के. बी. सहाय के दिल में गरीबों
के प्रति सहानिभूति जगा दी। स्वतंत्रता के बाद जब बिहार की
अंतरिम सरकार का गठन किया गया तब के. बी. सहाय को राजस्व मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी
गयी क्योंकि यह विषय उन्हें बहुत पसंद था।
के.
बी. सहाय अपना पहला चुनाव 1952 में गिरिडीह के डुमरी से लड़े और बड़े अंतर से चुनाव जीते
भी। उन्हें श्रीकृष्ण सिन्हा मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री
की जिम्मेवारी सौंपी गयी। 1957 के चुनाव में उन्हें राजा कामाख्या
नारायण सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा। लेकिन पांच साल
बाद 1962 में हुए चुनाव में वे फिर से तीसरी बार बिहार विधान-सभा के लिए पटना पश्चिम
से चुने गए, जहाँ से चौथी बार भी चुनाव जीतने में सफल रहे।
2 अक्टूबर
1963 को महात्मा गाँधी की जयंती के अवसर पर के. बी. सहाय ने बिहार के चौथे मुख्यमंत्री
के पद के रूप में शपथ ली। सहाय को मुख्यमंत्री बनाने में सत्येंद्र
नारायण सिन्हा का अहम् योगदान रहा था जो पिछली मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री थे। के. बी. सहाय ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में उप-मुख्यमंत्री के
तौर पर शामिल किया। 1967 के विधानसभा चुनाव में वे अपने मित्र
महामाया प्रसाद सिन्हा से चुनाव हार गए।
उनकी
पराजय से कांग्रेस को भारी झटका लगा। प्रदेश में पहली बार
गैर-कांग्रेस सरकार की नीव रखी गई। लेकिन 1974 में बिहार विधानसभा
के ऊपरी सदन के लिए वे पुनः चुने गए। अय्यर आयोग में भ्रष्टाचार
के आरोप के चलते उनके विरुद्ध जांच की गई, लेकिन वे इस जांच से बरी हो गए।
के.
बी. सहाय देश के पहले राजस्व मंत्री थे जिन्होनें ज़मींदारी उन्मूलन के लिए आवाज़ उठाई
बिगुल फूँका। उस समय के मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा इस बवाल
से दूर रहना चाहते थे। जमींदार के. बी. सहाय के खिलाफ खड़े
हो गए। उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया और उन्हें अदालत तक घसीट
कर ले गए। लेकिन के. बी. सहाय नहीं माने और अंत तक वे ज़मींदारी
उन्मूलन के खिलाफ खड़े रहे।
1955-1956
में उन्होंने ज़मींदारी प्रथा को उखाड़ कर ही दम लिया। बटाईदारी
और ज़मींदारी उन्मूलन, भू-हथबंदी का निर्धारण, गरीबों के बीच ज़मीन का वितरण, भूमिहीनों
के बीच वासगीत का परचा बांटने, गरीब किसानों की सहायता जैसे कईं भूमि- सुधार के अनेक
काम किये, जिसके लिए लोग आज भी उनका लोहा मानते हैं।
अपने
छोटे से कार्यकाल में बिहार में बड़े उद्योग लगाने का श्रेय भी के. बी. सहाय को जाता
है। बरौनी रिफाइनरी, बोकारो स्टील प्लांट जैसे उद्योग उन्हीं
के मुख्यमंत्रित्व काल में स्थापित किये गए थे।
मुख्यमंत्री
रहते हुए उन्होंने तिलैया में सैनिक स्कूल स्थापित करने में भी अहम् योगदान दिया। हज़ारीबाग में महिला कॉलेज भी उन्हीं की देन है। पटना का सदाकत आश्रम और रांची कांग्रेस भवन का निर्माण उनके ही
कार्यकाल में हुआ था।
बिहार
की राजनीति में के. बी. सहाय का दाहिना हाथ थे राम लखन सिंह यादव।
बाएं हाथ के रूप में साथ थे अमानत अली और ह्रदय थे एस. के. बागे। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद उनके पारिवारिक
मित्रों में थे।
एक बार
की बात है। तब श्री सहाय महात्मा गाँधी के आश्रम में थे। आश्रम के कुछ लोगों ने गांधीजी से शिकायत की कि अंडा खाने वाले
इस बिहारी को आप आश्रम से निकाल दीजिये।
कहते
हैं गांधीजी ने मुस्कुराकर अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे जाकर
पूछो जो अंडा और उसके माता-पिता दोनों को खा जाता है। शिकायतों
के बावजूद गांधीजी ने इस सम्बन्ध में के. बी. सहाय से कभी कुछ नहीं पूछा। वैसे आश्रम में रहते हुए के. बी. सहाय ने कभी अंडा खाया भी नहीं
था।
3 जून
1974 को एक सड़क हादसे में के. बी. सहाय की मौत हो गई। के.
बी. सहाय आज नहीं हैं मगर मुख्यमंत्री और मंत्री के रूप में उनके प्रशासन को पुराने
लोग आज भी याद करते हैं। देश और देश के बाहर बिहार की शासन
व्यवस्था का नाम उन्होंने रौशन किया था। लोगों का मानना है
कि उनके जैसा 'लौह पुरुष' बिहार की धरती पर पैदा नहीं हो सकता।
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