Monday 23 December 2019

के. बी. सहाय- एक अपराजय योद्धा जयंती विशेष (दिसंबर 2018 पटना के समाचार पत्र में प्रकाशित)



के. बी. सहाय

के. बी. सहाय- एक अपराजय योद्धा
जयंती विशेष


पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ ब्यूरो) बिहार के महान विभूतियों में शामिल के. बी. सहाय उर्फ़ कृष्ण बल्लभ सहाय एक महान स्वतंत्रता सेनानी, योग्य प्रशासक, भूमि-सुधर के जनक और बिहार के प्रथम विकास पुरुष मुख्यमंत्री थे, जिन्हे 'बिहार का लौह पुरुष' भी कहा जाता हैइन्होने अपनी ज़िन्दगी से कभी समझौता नहीं किया, कभी हार नहीं मानी


उनके पिता मुंशी गंगा प्रसाद ब्रिटिश-राज के समय के दरोगा थेके. बी. सहाय चाहते थे कि उनके पिता दरोगा की नौकरी छोड़ कर आज़ादी में शामिल लोगों की मदद करें इस बात को लेकर पिता-पुत्र में हमेशा अनबन बनी रहती थीअंततः के बी सहाय पिता का घर छोड़ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ेके. बी. सहाय की प्रारंभिक शिक्षा गांव में फिर कलकत्ता में हुई, (यह गलत जानकारी है. इन्होनें कॉलेज की शिक्षा हज़ारीबाग में पाई) जहाँ से उन्होंने अंग्रेजी विषय में प्रथम श्रेणी में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की


कलकत्ता क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता थापढ़ाई के दौरान ही वे क्रन्तिकारी गुटों में शामिल होकर देश की आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1920 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लियाकहा जाता है कि बिहार में जिन थोड़े से नेताओं को महात्मा गाँधी का सान्निध्य प्राप्त था उसमें के. बी. सहाय का नाम भी आता हैके. बी. सहाय सिर्फ महात्मा गाँधी के संपर्क में ही नहीं आए बल्कि पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद और खान अब्दुल गफ्फार खान सहित कईं चोटी के नेताओं के संपर्क में रहने का मौका मिलाब्रिटिश-राज के तहत जब प्रादेशिक स्वायत्ता प्रदान की गयी तब वो 1936 में बिहार विधान-सभा चुनाव में हज़ारीबाग ग्रामीण विधान सभा के लिए चुने गए1937 में श्रीकृष्ण सिन्हा मंत्रिमंडल में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गयाइस दौरान ज़मींदारों के हाथों गरीबों पर हो रहे शोषण ने के. बी. सहाय के दिल में गरीबों के प्रति सहानिभूति जगा दीस्वतंत्रता के बाद जब बिहार की अंतरिम सरकार का गठन किया गया तब के. बी. सहाय को राजस्व मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी गयी क्योंकि यह विषय उन्हें बहुत पसंद था


के. बी. सहाय अपना पहला चुनाव 1952 में गिरिडीह के डुमरी से लड़े और बड़े अंतर से चुनाव जीते भीउन्हें श्रीकृष्ण सिन्हा मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री की जिम्मेवारी सौंपी गयी। 1957 के चुनाव में उन्हें राजा कामाख्या नारायण सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ालेकिन पांच साल बाद 1962 में हुए चुनाव में वे फिर से तीसरी बार बिहार विधान-सभा के लिए पटना पश्चिम से चुने गए, जहाँ से चौथी बार भी चुनाव जीतने में सफल रहे


2 अक्टूबर 1963 को महात्मा गाँधी की जयंती के अवसर पर के. बी. सहाय ने बिहार के चौथे मुख्यमंत्री के पद के रूप में शपथ लीसहाय को मुख्यमंत्री बनाने में सत्येंद्र नारायण सिन्हा का अहम् योगदान रहा था जो पिछली मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री थेके. बी. सहाय ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शामिल किया। 1967 के विधानसभा चुनाव में वे अपने मित्र महामाया प्रसाद सिन्हा से चुनाव हार गए


उनकी पराजय से कांग्रेस को भारी झटका लगाप्रदेश में पहली बार गैर-कांग्रेस सरकार की नीव रखी गईलेकिन 1974 में बिहार विधानसभा के ऊपरी सदन के लिए वे पुनः चुने गएअय्यर आयोग में भ्रष्टाचार के आरोप के चलते उनके विरुद्ध जांच की गई, लेकिन वे इस जांच से बरी हो गए


के. बी. सहाय देश के पहले राजस्व मंत्री थे जिन्होनें ज़मींदारी उन्मूलन के लिए आवाज़ उठाई बिगुल फूँकाउस समय के मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा इस बवाल से दूर रहना चाहते थेजमींदार के. बी. सहाय के खिलाफ खड़े हो गएउन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया और उन्हें अदालत तक घसीट कर ले गएलेकिन के. बी. सहाय नहीं माने और अंत तक वे ज़मींदारी उन्मूलन के खिलाफ खड़े रहे


1955-1956 में उन्होंने ज़मींदारी प्रथा को उखाड़ कर ही दम लियाबटाईदारी और ज़मींदारी उन्मूलन, भू-हथबंदी का निर्धारण, गरीबों के बीच ज़मीन का वितरण, भूमिहीनों के बीच वासगीत का परचा बांटने, गरीब किसानों की सहायता जैसे कईं भूमि- सुधार के अनेक काम किये, जिसके लिए लोग आज भी उनका लोहा मानते हैं


अपने छोटे से कार्यकाल में बिहार में बड़े उद्योग लगाने का श्रेय भी के. बी. सहाय को जाता हैबरौनी रिफाइनरी, बोकारो स्टील प्लांट जैसे उद्योग उन्हीं के मुख्यमंत्रित्व काल में स्थापित किये गए थे


मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने तिलैया में सैनिक स्कूल स्थापित करने में भी अहम् योगदान दियाहज़ारीबाग में महिला कॉलेज भी उन्हीं की देन हैपटना का सदाकत आश्रम और रांची कांग्रेस भवन का निर्माण उनके ही कार्यकाल में हुआ था


बिहार की राजनीति में के. बी. सहाय का दाहिना हाथ थे राम लखन सिंह यादवबाएं हाथ के रूप में साथ थे अमानत अली और ह्रदय थे एस. के. बागेदेश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद उनके पारिवारिक मित्रों में थे


एक बार की बात हैतब श्री सहाय महात्मा गाँधी के आश्रम में थेआश्रम के कुछ लोगों ने गांधीजी से शिकायत की कि अंडा खाने वाले इस बिहारी को आप आश्रम से निकाल दीजिये


कहते हैं गांधीजी ने मुस्कुराकर अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे जाकर पूछो जो अंडा और उसके माता-पिता दोनों को खा जाता हैशिकायतों के बावजूद गांधीजी ने इस सम्बन्ध में के. बी. सहाय से कभी कुछ नहीं पूछावैसे आश्रम में रहते हुए के. बी. सहाय ने कभी अंडा खाया भी नहीं था


3 जून 1974 को एक सड़क हादसे में के. बी. सहाय की मौत हो गईके. बी. सहाय आज नहीं हैं मगर मुख्यमंत्री और मंत्री के रूप में उनके प्रशासन को पुराने लोग आज भी याद करते हैंदेश और देश के बाहर बिहार की शासन व्यवस्था का नाम उन्होंने रौशन किया थालोगों का मानना है कि उनके जैसा 'लौह पुरुष' बिहार की धरती पर पैदा नहीं हो सकता



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