पिछले दिनों प्रख्यात
कवि और लेखक श्री रामबृक्ष बेनीपुरी की लिखित रचना "ज़ंजीरें और दीवारें"
पढ़ने का मौका मिला। श्री बेनीपुरी ने इस
पुस्तक का एक अध्याय "और जे. पी जेल से बाहर" सन ब्यालिस में जे पी के
हज़ारीबाग जेल से भागने पर केंद्रित किया है। वे लिखते हैं
-" अपनी सफलता पर हमें गर्व हुआ। यह जोर दे कर कहा जा
सकता है कि यदि कृष्णा बल्लभ बाबू (के. बी. सहाय),
सारंगधर बाबू और जदुभाई ने मदद ना की होती,
तो उस रात में ही भांडा फूट जाता और तब यह भी सम्भव है कि भागे
हुए लोग गिरफ्तार कर लिए जाते, क्योंकि वे लोग गाँव
का रास्ता भूल कर जंगल जंगल रात भर भटकते रहे थे। ज़ंजीरें लटकती रह
गयी, दीवारें खड़ी ताकती रही और लो,
बंदी बाहर हो गए।
राष्ट्रकवि की कलम से
अपने पूर्वजों के बारे में लिखना पढ़ कर वास्तव में जिस गर्व की अनुभूति होती है वह
अवर्णनीय है।
अगले सप्ताह ही पूज्य
के. बी सहाय की जन्म जयंती है और ऐसे अवसर पर यह अभिव्यक्ति मैं सबों को समर्पित
करता हूँ।
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