आज
कवीन्द्र रबीन्द्रनाथ टैगोर की 166 वीं जयंती है।
आज
अपनी निजी पुस्तकालय में पुरानी पुस्तकों को व्यवस्थित करने के क्रम में मुझे अपने
पितामह कृष्ण बल्लभ सहाय की कुछ पुस्तकें मिली। ये पुस्तकें मुझे अपने मरहूम
चाचा श्री राधेकान्त सहाय जी के सौजन्य से 2023 में प्राप्त हुई थी। 2024 में
चाचाजी का निधन हो गया। अपने पिता कृष्ण बल्लभ बाबू के पुस्तकालय की पुस्तकें मुझे
सौपते हुए उनके शब्द मुझे आज भी याद हैं- इस थाती को संभाल कर रखना।
आज
रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती पर जब में मैं अपनी निजी पुस्तकालय में किताबों को उलट-पलट
रहा था तो मुझे टैगोर की लिखी और प्रकाशित कई किताबें मिली जो मेरे पितामह ने अपने
पुस्तकालय में सहेज कर रखी थी। अँग्रेजी एवं बंगला में कवीन्द्र टैगोर की मूल रचनाएँ
और उर्दू एवं हिन्दी में अनुवादित और साहित्य अकादमी द्वारा टैगोर की जन्म शताब्दी
वर्ष (1961) में प्रकाशित ये किताबें अनमोल हैं। इन्हीं में से कुछ मैं साझा कर
रहा हूँ।
‘गीत-पंचशती’ टैगोर की लिखी पाँच सौ चुने हुए गीतों का संग्रह है। इस पुस्तक में प्रख्यात चित्रकार श्री नंदलाल बोस के एक ‘एचिंग’ की अनुकृति है। इस अनुकृति में रबीन्द्रनाथ टैगोर शांतिनिकेतन को अपनी कविता ‘झूलन’ का पाठ करते हुए पेश किया गया है।
इसी
प्रकार ‘एकोत्तरशती’ रबीन्द्रनाथ टैगोर के एक सौ एक चुनी
हुई कविताओं का संकलन है। इस पुस्तक में टैगोर द्वारा खुद की उकेरी एक पेंटिंग है जिस
पर दिनांक 24/04/1896 अंकित है।
‘नाट्य-सप्तक’ टैगोर के साथ नाटकों का संग्रह
है। इस पुस्तक में टैगोर की बाउल कलाकार के रूप में एक चित्र अंकित है जो अबनींद्रनाथ
टैगोर द्वारा उकेरा गया है।
रबीन्द्रनाथ
टैगोर से संबन्धित उर्दू में अनुवादित रचनाएँ है ‘इक्कीस
कहानियाँ’, एवं दो उपन्यास ‘तीन
नाटक’ (जो तीन नाटकों ‘डाक-घर’, राजा’, और ‘रक्तकरबी’ का संग्रह है) एवं ‘चोखेर-बाली’ जिस पर फिल्म भी बन चुकी है।
अँग्रेजी
में स्वयं टैगोर द्वारा लिखित पुस्तक ‘ग्लिम्पसेस
ऑफ बंगाल’ (‘GLIMPSES OF BENGAL’) है। यह टैगोर द्वारा 1885-1895 के बीच
लिखी चुने हुई खतों का संग्रह है जिसे 1930 में मैकमिलन की लंदन शाखा द्वारा प्रकाशित
किया गया था। इस पुस्तक में टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से संबोधित किया गया है जबकि टैगोर ने सर की उपाधि जालियांवाला बाग
कांड के बाद ही त्याज्य दिया था। इस पुस्तक की तमाम पृष्ठ कृष्ण बल्लभ बाबू की लाल-नीली
पेंसिल से रंगे हुए हैं जिस में से एक मैं यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ-
India
has two aspects- in one she is a householder, in the other a wandering ascetic.
The former refuses to budge from the home corner; the latter has no home at
all. I find both these within me. –Tagore, Balia, Tuesday,
February, 1893.
मैं इन पुस्तकों को अभी तक आद्योपांत नहीं पढ़ पाया हूँ। किन्तु कृष्ण बल्लभ बाबू न केवल इन सभी पुस्तकों को पढ़ रखा था वरन जहां उन्हें कुछ पंक्तियाँ सटीक लगी उसे उन्होंने नीली-लाल पेंसिल से मार्क भी कर रखा है। कृष्ण बल्लभ बाबू की आदत में शुमार था कि किसी भी पुस्तक को पढ़ते हुए वे उन पंक्तियों को, जो उन्हें प्रभावित करते थे, लाल-नीली पेंसिल से चिन्हित करते जाते थे। प्रायः वे इन पंक्तियों का उद्धरण विधान सभा में बहस के दौरान करते थे। पुस्तक पढ़ने के बाद वे उस पर उनके पुस्तकालय में उस पुस्तक का परिग्रहन संख्या (ACCESSION NUMBER) लिखते और प्रथम पृष्ठ पर तारीख के साथ हस्ताक्षर कर पुस्तकालय में करीने से सभाल कर रख देते थे।
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