गत
दिनों कृष्ण बल्लभ सहाय की 125 वीं जन्म-जयंती वर्ष पर बिहार के सदाकत आश्रम में उनकी
प्रतिमा का अनावरण हुआ।
सदाकत
आश्रम का भारत के स्वतन्त्रता संग्राम से गहरा रिश्ता है। पावन गंगा के किनारे बीस
एकड़ में फैला यह क्षेत्र कारु मियां द्वारा दान दिया गया। इस भूमि पर आश्रम की स्थापना
1921 में मौलाना मजरूल हक़ ने किया। महात्मा गांधी को यह स्थान विशेष प्रिय था। वे यहाँ
बराबर आते रहे। यही वह स्थान है जहां बिहार के सभी स्वतन्त्रता सेनानी जुटते थे और
स्वतन्त्रता संग्राम की व्यूह रचना करते थे – डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, श्री ब्रज किशोर प्रसाद, डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा, डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा कृष्ण
बल्लभ सहाय एवं तमाम काँग्रेस के नेता इसी स्थान पर संगोष्ठी करते और आगे की रणनीति
बनाते। यहीं बिहार विद्यापीठ है जिसकी स्थापना महात्मा गांधी एवं अन्य अग्रणी नेतृत्व
द्वारा असहयोग आंदोलन के समय हुआ- विदेशी कॉलेज का बहिष्कार करने वाले छात्रों को ये
स्वतन्त्रता संग्रामी इसी विद्यापीठ में पढ़ाते थे। उस दौर में यह सदाकत आश्रम और बिहार
विद्यापीठ चिंतन-मनन एवं अध्ययन का प्रमुख केंद्र रहा। स्वतन्त्रता के बाद इस आश्रम
का पुनरुद्धार कृष्ण बल्लभ बाबू द्वारा 1963-1964 में करवाया गया जब वे बिहार के मुख्यमंत्री
थे। आज काँग्रेस द्वारा उनकी याद में आश्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी यह गौरव
की बात है।
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