Saturday, 1 June 2024
Saturday, 23 March 2024
कृष्ण बल्लभ सहाय की 125 वीं जन्म-जयंती वर्ष पर बिहार के सदाकत आश्रम में उनकी प्रतिमा का अनावरण
गत
दिनों कृष्ण बल्लभ सहाय की 125 वीं जन्म-जयंती वर्ष पर बिहार के सदाकत आश्रम में उनकी
प्रतिमा का अनावरण हुआ।
सदाकत
आश्रम का भारत के स्वतन्त्रता संग्राम से गहरा रिश्ता है। पावन गंगा के किनारे बीस
एकड़ में फैला यह क्षेत्र कारु मियां द्वारा दान दिया गया। इस भूमि पर आश्रम की स्थापना
1921 में मौलाना मजरूल हक़ ने किया। महात्मा गांधी को यह स्थान विशेष प्रिय था। वे यहाँ
बराबर आते रहे। यही वह स्थान है जहां बिहार के सभी स्वतन्त्रता सेनानी जुटते थे और
स्वतन्त्रता संग्राम की व्यूह रचना करते थे – डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, श्री ब्रज किशोर प्रसाद, डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा, डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा कृष्ण
बल्लभ सहाय एवं तमाम काँग्रेस के नेता इसी स्थान पर संगोष्ठी करते और आगे की रणनीति
बनाते। यहीं बिहार विद्यापीठ है जिसकी स्थापना महात्मा गांधी एवं अन्य अग्रणी नेतृत्व
द्वारा असहयोग आंदोलन के समय हुआ- विदेशी कॉलेज का बहिष्कार करने वाले छात्रों को ये
स्वतन्त्रता संग्रामी इसी विद्यापीठ में पढ़ाते थे। उस दौर में यह सदाकत आश्रम और बिहार
विद्यापीठ चिंतन-मनन एवं अध्ययन का प्रमुख केंद्र रहा। स्वतन्त्रता के बाद इस आश्रम
का पुनरुद्धार कृष्ण बल्लभ बाबू द्वारा 1963-1964 में करवाया गया जब वे बिहार के मुख्यमंत्री
थे। आज काँग्रेस द्वारा उनकी याद में आश्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी यह गौरव
की बात है।
Thursday, 15 February 2024
के. बी. सहाय ने किसानों के कल्याण के लिए क्या किया? या किसी नेता को 'भारत रत्न' देने के पैमाने क्या है?
के. बी. सहाय ने
किसानों के कल्याण के लिए क्या किया?
या किसी नेता को 'भारत
रत्न' देने के पैमाने क्या है?
मुझे हाल ही में 'द इंडियन
एक्सप्रेस' (12 फरवरी,
2024) में प्रकाशित एक लेख पढ़ने को मिला, जिसका
शीर्षक था 'चरण सिंह ने किसानों के कल्याण
के लिए क्या किया।' श्री हरीश
दामोदरन के लेख में उन तीन प्रमुख कानूनों का उल्लेख है जिन्होंने उत्तर प्रदेश की
कृषि अर्थव्यवस्था को बदल दिया और जिसने चरण सिंह को राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंचा
दिया। लेखक का मानना है कि ये तीन कालजयी कानून उनकी लोकप्रियता को फ़लक पर पहुंचा दिया।
पहला कानून ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि
सुधार अधिनियम, 1950’ (जेड.ए.एल.आर.) था जिसने जमींदारी व्यवस्था को
खत्म कर दिया। दूसरा कानून था उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम,
1953। चकबंदी की योजना चरण सिंह ने पचास के
दशक में उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लागू किया
था। यह लक्ष्य सत्तर के दशक तक ही हासिल किया जा सका था। आखिरी कानून था उत्तर
प्रदेश भूमि जोत सीमा अधिरोपण अधिनियम, 1960। इसने पांच सदस्यों वाले प्रति किसान के लिए 40 एकड़ 'उचित गुणवत्ता
वाली भूमि' की सीमा स्थापित की। चरण सिंह के तीन
परिवर्तनकारी भूमि सुधार कानूनों ने सामाजिक और राजनीतिक रूप से किसानों को सशक्त किया।
किसानों के एक माध्यम वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ जिसने 'हरित
क्रांति' के साथ अपने आर्थिक भाग्य में वृद्धि देखी। लेखक का
निष्कर्ष है कि इन तीन ऐतिहासिक कानूनों ने चरण सिंह को एक ऐसा नेता बना दिया,
जिसे बहुत पहले सम्मानित किया जाना चाहिए था। लंबे समय से
प्रतीक्षित 'भारत रत्न', जिसे अब
वर्तमान सरकार ने स्वीकार कर लिया है उनकी इन उपलब्धियों की विलंबित स्वीकारोक्ति है।
मैं लेखक के इस निष्कर्ष को स्वीकार करता हूं क्योंकि चरण सिंह का भारत के प्रधानमंत्री
के रूप में उतना अधिक योगदान नहीं रहा जो उन्होंने उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री के
रूप में दिया। वह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान
संसद का सामना नहीं किया।
अब, मैं चौधरी
चरण सिंह की उपलब्धियों की तुलना पड़ोसी राज्य बिहार में के. बी. सहाय की
उपलब्धियों से करता हूँ।
के. बी. सहाय द्वारा पारित पहला महत्वपूर्ण कानून जमींदारी
उन्मूलन अधिनियम, 1947
था। इसे संशोधित किया गया और इसके बाद बिहार भूमि सुधार
अधिनियम,
1950 (बिहार अधिनियम XXX, 1950) लाया गया। जमींदारी
उन्मूलन करने वाला बिहार भारत का पहला राज्य था। बिहार में जमींदारी उन्मूलन कानून उत्तर प्रदेश से पहले बना और
लागू हुआ। इस कानून की वजह से भारतीय संविधान में पहला
संशोधन हुआ, जो एक ऐतिहासिक निर्णय
था जिसने देश के लिए आगे बढ़ने का रास्ता बदल दिया। के. बी. सहाय पर जमींदारों
द्वारा क्रूरतापूर्वक हमला किया गया था, लेकिन उन्होंने
कानून पारित करने के लिए अपने जीवन और राजनीतिक करियर को जोखिम में डाल दिया।
के.बी. सहाय द्वारा पारित दूसरा कानून बिहार
जोत समेकन और विखंडन निवारण अधिनियम, 1956 था। इसने सरकार को सर्वेक्षण और निपटान रिकॉर्ड के आधार पर अधिकारों
का रिकॉर्ड तैयार करके प्रत्येक रैयत को सम्मान के साथ भूमि के समेकन को बढ़ावा
देने में सक्षम बनाया।
के.बी. सहाय द्वारा पारित तीसरा कानून बिहार
कृषि भूमि (सीमा और प्रबंधन) विधेयक, 1955 था। विधेयक ने कृषि भूमि की सीमा तय की। बिहार भूमि सुधार
अधिनियम, 1950 के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए जमींदारों
द्वारा किए गए सभी बेनामी लेनदेन को रद्द करना इस विधेयक का उद्देश्य था। इसमें
पांच सदस्यों के परिवार के लिए मैदानी इलाकों में 30 एकड़ और
पठारी क्षेत्र में 50 एकड़ की भूमि सीमा तय की गई थी। बड़े
जमींदारों ने इस विधेयक को विधानसभा में पारित नहीं होने दिया। 1957 के चुनाव में के.बी. के सहाय जमींदारों से हारने के बहुत बाद साठ के दशक
में इस कानून का एक बहुत कमज़ोर संस्करण पारित किया गया था।
के बी सहाय यहीं नहीं रुके. वह कई युगांतकारी विधानों को लेकर
आगे बढ़े। बिहार राज्य सम्पदा एवं कार्यकाल प्रबंधन अधिनियम (1949 का बिहार अधिनियम XXI) ने बिहार सरकार को बीस वर्षों तक किसी भी मुआवजे के भुगतान के बिना सम्पदा
और किरायेदारी का अधिग्रहण करने में सक्षम बनाया।
बिहार
बंजर भूमि (पुनर्ग्रहण, खेती और सुधार) विधेयक,
1946 (1946 का विधेयक 3) ने बिहार में 3.50 मिलियन बंजर भूमि के बड़े हिस्से
को खेती योग्य भूमि में बदलने में सहायक सिद्ध हुआ। इसमें घास से ढकी भूमि,
अपरदित भूमि, लवणीय भूमि और बहुत कम उर्वरता
और बिना सिंचाई सुविधा वाली भूमि शामिल थे।
बिहार
निजी वन अधिनियम, 1946
ने जमींदारों के कब्जे वाले सभी जंगलों को सरकारी नियंत्रण और प्रशासन के अधीन कर
दिया।
बकाश्त
विवाद निपटान अधिनियम, 1947
ने रैयतों को वह जमीन वापस दिलाने में मदद की, जो लगान न चुका पाने के कारण जमींदारों ने जबरदस्ती छीन ली थी।
बिहार
सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण अधिनियम, 1950 और बिहार सार्वजनिक भूमि
अतिक्रमण (संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा सामुदायिक उपयोग की 'गैर-मजरुआ' भूमि ('गैर-मजरुआ
आम और 'गैर-मजरुआ मलिक') भूमि, जिसपर जमींदार काबिज थे उसे उनके अतिक्रमण से हटाने में सहायक सिद्ध हुआ और
इसे वापस समुदाय उपयोग के अधीन लाने में सफल हुआ।
इसके अलावे छोटानागपुर काश्तकारी कानून एवं संथाल परगना काश्तकारी कानून में भी वे संशोधन किए गए जिससे आदिवासियों के हितों की रक्षा
हुई। बिहार होमस्टीद कानून द्वारा जमींदार के ज़मीन पर बनी काश्तकारों के घरों को सुरक्षा
प्रदान करने का प्रयास हुआ।
मुझे इन दोनों नेताओं के बीच अन्य समानताएं भी दिखती हैं।
दोनों की वेषभूषा एकदम गंवई थी- खद्दर का धोती कुर्ता और सिर पर ‘गांधी टोपी’। दोनों नेता महात्मा गांधी वाली कांग्रेस के अग्रणी सिपाही थे
और दोनों ने ही इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस छोड़ दी। इतने वर्षों बाद आखिरकार चौधरी
चरण सिंह को सरकार ने 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। क्या सरकार को के.बी. सहाय की
सुध नहीं लेनी चाहिए जिन्हें उनकी अपनी ही काँग्रेस पार्टी ने बिसार दिया? किसी नेता को 'भारत-रत्न' प्रदान
करने हेतु क्या योग्यता होनी चाहिए यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर मैं पाठकों पर
छोड़ता हूँ। क्या के.बी. सहाय की उपलब्धियां चौधरी चरण सिंह जी की उपलब्धियों से कमतर
हैं? किसानों के हितों की रक्षा हेतु इन दोनों नेताओं के ऊपर
वर्णित प्रयासों को देखते हुए तो ऐसा हरगिज़ नहीं कहा जा सकता। यदि ऐसा नहीं है तब क्यों
नहीं कृष्ण बल्लभ सहाय को भी ‘भारत रत्न’ दिया जाना चाहिए?
Wednesday, 14 February 2024
What K. B. Sahay did for farmers’ welfare? Or What goes into conferring ‘Bharat Ratna’ to a leader?
I recently came across an article in ‘The
Indian Express’ (February 12, 2024) titled ‘What Charan Singh did
for farmers’ welfare. The article by Mr Harish Damodaran mentions the three
major legislations that transformed the agricultural economy of Uttar Pradesh
and which catapulted Charan Singh on the national horizon. These three
game-changing laws were a reason for that popularity- the writer notes. The
first was the UP Zamindari Abolition and Land Reforms Act, 1950 (ZALR)
which did away with the Zamindari System. The second was the UP
Consolidation of Holdings Act, 1953. The consolidation scheme was implemented by Charan Singh during his tenure as the Revenue Minister of Uttar Pradesh in the Fifties. The target could be achieved only by the Seventies.
The last was the UP Imposition of Ceiling on Land Holdings Act, 1960. It
established a cap of 40 acres of ‘fair quality land’ per farmer of five
members. Charan Singh’s three transformative land reform laws helped in
creating a socially and politically empowered middle peasantry class that saw
its economic fortune rise with the ‘Green Revolution.’ These three historic
legislations, the writer concludes, made Charan Singh a leader fit to be
conferred the long overdue ‘Bharat Ratna,’ –now acknowledged by the
present government. I accept the author’s conclusion as Charan Singh did not
contribute much as the Prime Minister of India, going down as the only Prime
minister to have not faced the Parliament during his tenure.
Now, I juxtapose the achievements of Chaudhary
Charan Singh with those of K.B. Sahay in the neighbouring state of
Bihar.
The first important legislation passed by K.B.
Sahay was the Zamindari Abolition Act, 1947. This was amended and followed
by the Bihar Land Reforms Act, 1950 (Bihar Act XXX of 1950). Bihar
was the first State in India to abolish Zamindari. It preceded the UP
legislation. The 1950 legislation led to the First Amendment in the Indian
Constitution, which was a historic decision that changed the way forward
for the nation. K. B. Sahay was brutally assaulted by the Zamindars but he
risked his life and political career to pass the legislation.
The
second legislation passed by K. B. Sahay was the Bihar Consolidation of
Holdings and Prevention of Fragmentation Act, 1956. This enabled the
government to promote the consolidation of holdings by preparing the record of
rights based on the Survey and Settlement records and consolidation of lands concerning each raiyat.
The
third legislation passed by K. B. Sahay was the Bihar Agricultural
Lands (Ceiling and Management) Bill, 1955. The Bill fixed a ceiling of
agricultural lands. The bill aimed to nullify all benami transactions
resorted by zamindars and tenure holders to circumvent the provisions of
the Bihar Land Reforms Act, 1950 and it fixed a ceiling of 30 acres in the
plains for a family of five members and 50 acres in the plateau region. The big landowners did not allow this Bill to
be passed in the Assembly. A much watered-down version was passed in the Sixties
well after K.B. Sahay was defeated by the Zamindars in the 1957 elections.
K.
B. Sahay did not stop at this. He went ahead with several epoch-making
legislations. The Bihar State Management of Estates & Tenures Act (Bihar
Act XXI of 1949) enabled the Government of Bihar to take over the Estates
& Tenures without payment of any compensation for twenty years
The Bihar Wastelands
(Reclamation, Cultivation and Improvement) Bill, 1946 (Bill 3 of 1946) converted
large tracts of the 3.50
million wastelands in Bihar into cultivable lands. This included grass-covered
lands, eroded lands, saline lands and lands of very low fertility and no irrigation
facility.
Bihar Private Forest Act, 1946 brought
all forests held by Zamindars under the Government control and administration.
The Bakasht Dispute Settlement Act,
1947 helped restore the lands to the raiyats which were taken away forcefully
by the Zamindars for failure to pay the rent.
The Bihar Public Land Encroachment
Act, 1950 & Bihar Public Land Encroachment (Amendment) Act, 1956 cleared encroachment of ‘gair-mazurwa’ lands (‘Gair-mazarua
aam and ‘Gair-mazarua Malik’) which were meant for the community but
was actually encroached by the Zamindars.