Saturday 10 December 2022

हजारीबाग में आंदोलन के नायक थे के.बी. सहाय - के. बी. सहाय की कहानी उनके पौत्र राजेश सहाय की जुबानी (प्रभात खबर, रांची, 14.08.2022)





(हम आज़ादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं। भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहुती देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं। आज़ादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती। वह गुमनाम रहे और आज़ादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया। झारखंड की माटी ऐसे आज़ादी के सिपाहियों की गवाह रही है।)   

स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में के.बी. सहाय का व्यक्तित्व संघर्षशील था। यह एक जुझारु काँग्रेस कार्यकर्ता भर नहीं थे, बल्कि उनमें राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी राह बनाने में सफलता पायी। हजारीबाग में होनेवाले हर आंदोलन में वो केंद्रीय भूमिका में रहते थे। उन्होंने चुनावी दंगल में भी बड़े-बड़े राजनेताओं को धूल चटायी। वे लोकहित में निर्णय लेने में काफी आगे थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर नयी पहचान दिलाई। यहाँ तक कि उन्होंने 1963 में संयुक्त बिहार का मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे। 3 जून 1974 को सिंदूर (हजारीबाग- पटना मार्ग पर) के पास सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी।


झारखंड की उन्नति में रहा अहम योगदान: संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे कृष्ण बल्लभ सहाय उन नेताओं में शुमार थे, जिन्होंने बिहार के साथ ही मौजूदा झारखंड की उन्नति में अहम योगदान दिया। उनका जन्म पटना के शेखपुरा में 31 दिसंबर 1898 में कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका बचपन हजारीबाग में बीता। शिक्षा-दीक्षा भी हजारीबाग में हुई। संत कोलम्बस कॉलेज से अँग्रेजी में स्नातक किया। इसी सरजमीं से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। गांधीजी के नेतृत्व में हुए सभी आंदोलनों- असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी अहम भागेदारी रही।


किसानों की लड़ाई का किया नेतृत्व: के.बी. सहाय शुरुआती दौर 1919 में अमृत बाज़ार पत्रिका अखबार के लिए हजारीबाग से रेपोर्टिंग कराते थे। असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया, बल्कि किसान आंदोलन को भी आगे बढ़ाया। जमींदारों और अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किसानों की लड़ाई का नेतृत्व किया। उन्होंने झारखंड के हज़ारीबाग, चतरा, कोडरमा, गोमिया, बोकारो, गिरिडीह समेत पूरे उत्तरी छोटनागपुर में असहयोग आंदोलन को गति दी। गाँव-गाँव जाकर उन्होंने आम लोगों के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक कर संगठित किया।


जेपी को हजारीबाग जेल से भगाने में भूमिका निभाई: के.बी. सहाय ने 1928 में साइमन कमीशन के विरोध का हजारीबाग में नेतृत्व किया। तब आंदोलन में वह गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए। उनका जेल आने-जाने का सिलसिला जारी रहा। 1930-1934 के बीच लदभग चार बार गिरफ्तार किए गए। नौ और दस नवंबर 1942 को दीपावली की रात उन्होंने हजारीबाग केंद्रीय कारा में बंद जयप्रकाश नारायण और उनके सहयोगियों को जेल से भगाने में अहम भूमिका निभाई। इस घटना का उल्लेख प्रसिद्ध लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपनी पुस्तक में किया है। इस प्रकार जेपी जेल से बाहर हुए और भारत छोड़ो आंदोलन को गति प्रदान किया।


1923 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने: स्वतन्त्रता आंदोलन के समय 1923 में के.बी. सहाय होम रूल के तहत बिहार विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1937 में काँग्रेस ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत सरकार में भागीदारी का फैसला लिया। इस सरकार में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया। अंग्रेजों द्वारा बढ़ायी गयी मालगुज़ारी को उन्होंने वापस लिया और समान मालगुज़ारी की दर में भी कटौती की। उन्होंने समाज के दलित वर्ग के पक्ष में भूमि संबंधी कई निर्णय लिए। दलितों के हक के लिए संघर्ष करते रहे और उनकी आवाज़ बन गए। ज़मींदारी उन्मूलन के संघर्ष में के.बी. सहाय अभिमन्यु की तरह अकेले थे।


शाहाबाद में किसान सभा की: के.बी. सहाय ने 11 मई 1942 को शाहाबाद कुदरा में विशाल किसान आमसभा आयोजित की थी। इसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद शामिल हुए। यह किसान आमसभा अभूतपूर्व थी। इसकी सफलता से प्रेरित होकर श्रीकृष्ण सिन्हा ने के.बी. सहाय को अपने ज़िला मुंगेर आमंत्रित किया। मुंगेर के तारापुर में बनौली राज के किसानों पर हो रहे ज़ुल्म को लेकर रैली निकाली गयी थी। इसका नेतृत्व के.बी. सहाय ने किया। स्वतन्त्रता सेनानी जे.बी. कृपलानी ने रैली में हिस्सा लिया था। रैली से आस-पास के किसानों में जागरूकता आई और वह अपने ऊपर होने वाले ज़ुल्म के खिलाफ एकजुट हुए।     

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