दीपावली की रात्रि हजारीबाग जेल से जयप्रकाश
नारायण एवं उनके पाँच साथियों के 'महापलायन' के बाद की रोमांचक
गाथा- देश की स्वतन्त्रता, भूदान आंदोलन एवं सर्वोदय आश्रम
तक का इतिहास!
9 नवंबर को हजारीबाग जेल से पलायन के बाद जो पीछे रह
गए उनपर कड़ी कारवाई हुई। कृष्ण बल्लभ बाबू को सश्रम कारावास की सजा हुई और उन्हें
भागलपुर जेल भेज दिया गया। रामवृक्ष बेनीपुरी एवं काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के
अन्य नेताओं को सश्रम कारावास की सजा हुई और इन्हें गया जेल भेजा गया।
उधर जयप्रकाश नारायण एवं इनके साथी जंगल-जंगल
भटकते रहे। शालिग्राम सिंह स्थानीय नेता थे। छोटानागपुर, ख़ासकर
हज़ारीबाग एवं चतरा इलाके की भौगोलिक स्थिति का उन्हें पूर्ण ज्ञान था। तथापि
अमावस्या की घनी स्याह रात्रि में ये सभी लोग दिशा भटक गए। हज़ारीबाग कोई 1700
फुट की ऊंचाई पर बसा है। खेत, कीचड पार कर वे
सब भागते रहे। सबों के पैरों की हालत खस्ता हो चुकी थी। तलुवे छील गए थे और इनमें
से खून रिस रहा था। धोतियों को पैरों में लपेट वे आगे बढे। जयप्रकाशजी को साइटिका
की वजह से ख़ासकर अधिक तकलीफ थी। दो दिन बाद एक छोटी बस्ती में पहुंचे जहाँ सौभाग्य
से एक परिचित शिक्षक से मुलाकात हुई जिन्होने इन विप्लवियों को भोजन कराया। उन्हीं
के घर से कुछ पुराने जूते भी मिल गए। इनका पलायन पुनः जारी रहा। कोडरमा संरक्षित
वन को पारकर सबने गया ज़िले में प्रवेश किया। पलायन के क्रम में इसी कोडरमा
संरक्षित वन क्षेत्र में जयप्रकाशजी का कौआकोल में कुछ समय ठहरना हुआ था। तब
कौआकोल गया जिला में था। आज की तारीख में यह नवादा जिला का हिस्सा है। कौआकोल का
जे.पी. शिला इनके इस पलायन का आज भी गवाह है। वह विचारधारा जो यह मानती है कि हमें
यह स्वतन्त्रता अंग्रेजों से भीख में मिली थी उनसे यह शिला आज भी उन स्वतन्त्रता
सेनानियों के त्याग और बलिदान की कहानी कहता प्रतीत होता है- इसे यह यहाँ आकर ही
महसूस किया जा सकता है। इसे कलियुग ही कहेंगें कि इन स्वतन्त्रता सेनानियों को
उनके सामने, जिन्होंने उस दौर में अंग्रेजों का साथ दिया था,
के समक्ष आज अपनी सफाई देनी पड़े। यह उन बलिदानियों के अमर बलिदान का
घोर अपमान नहीं तो और क्या है?
1947 में देश की आज़ादी के बाद जे.पी. का अधिकांश समय
आचार्य विनोबा भावे के साथ भूदान आंदोलन में बीतने लगा। उन्होंने आचार्य विनोबा
भावे को बिहार आमंत्रित किया। साथ-साथ बिहार भ्रमण कर जे.पी. एवं आचार्य ने
राज्यभर में भूदान आंदोलन को सफल किया। इसी दौरान 1952-53 में
आचार्य विनोबा भावे एवं जे.पी. का एक बार पुनः कौआकोल आना हुआ। कौआकोल में यहाँ के
मठाधीश से विनोबा भावे को 140 एकड़ भूमि दान में मिला। दान की
इस भूमि को आचार्य विनोबा ने जेपी को सुपुर्द कर दिया। जे.पी. ने इस 140 एकड़ भूमि में से 60 एकड़ पर आश्रम की स्थापना कर शेष
भूमि यहाँ के खेतिहीन किसानों को बाँट दिया। आश्रम के लिए आवश्यक धन संसाधन
प्रसिद्द उद्योगपति जहांगीर रतनजी दादाभोय टाटा यानी जे.आर.डी. टाटा से1954
में दान में मिला। कौआकोल के शेखोदेओरा अवस्थित यह आश्रम ही कालांतर
में सर्वोदय आश्रम कहलाया। 1958 तक आश्रम का निर्माण कार्य
चलता रहा। समाजवादी व्यवस्था के अनुरूप सभी झोपड़े एक ही आकार-प्रकार के बनाए गए-
चाहे वह झोपडी जे.पी. का रहा हो अथवा किसी अन्य सर्वोदयी का।
जे.पी. का सर्वोदय आश्रम, महात्मा
गांधी के साबरमती आश्रम,आचार्य विनोबा भावे के पौवनार आश्रम
और डॉ राजेंद्र प्रसाद के सदाकत आश्रम की ही अगली कड़ी है। इस आश्रम की स्थापना के
पीछे शुद्ध भारतीय दर्शन था। यहाँ की सादगी और सौम्यता हमारा ध्यान देश के नेतृत्व
की सादगी और सरल हृदयता के उस दौर और काल की याद दिलाता है जो आज विलुप्त हो चुकी
है। आज भी इस आश्रम में ऐशो आराम वर्जित है। मुख्य सर्वोदय आश्रम जहाँ जे. पी. ने
कई वर्ष बिताये थे में कुल जमा दो ही कमरे हैं। एक कमरा बैठक के काम आता था और दूसरा
शयन-कक्ष था। संपत्ति के नाम पर एक अदद अलमारी में प्रभावती देवी के कुछ बरतन और
जे.पी. एवं प्रभावती देवी के छोड़े कुछ कपड़े हैं। पीछे की ओर एक छोर पर रसोई एवं
दूसरे छोर पर शौचालय है। पीछे अहाते में एक कुटिया थी जहाँ जे.पी. यदा-कदा
ग्रामीणों से मिलकर आश्रम के कार्यकलापों का जायज़ा लेते थे। सामने बरामदे के बाद
छोटी सी फुलवारी है। सारा कुछ ज्यों का त्यों संभालकर रखा गया है मानो जे.पी. अभी
यहाँ आने ही वाले हों। यही नक्शा प्रायः अन्य सभी झोपड़ियों का भी है। 1961 में डॉ राजेंद्र प्रसाद का यहाँ आगमन हुआ था। राजेंद्र सभागार उनके इस
ऐतिहासिक मौके का गवाह है। परिसर में महात्मा गाँधी, आचार्य
विनोबा भावे, डॉ राजेंद्र प्रसाद और जेपी. की मूर्तियां
स्थापित हैं जो इस पावन भूमि की गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है।
आज इस आश्रम का सञ्चालन ग्रामीण निर्माण मंडल के
जिम्मे है,
जो एक गैर सरकारी संस्था है। इसके नियंत्रण में ही एक कृषि विज्ञान
केंद्र भी संचालित है जिसे भारत सरकार ने1979 में स्थापित
किया था। यह आश्रम आस-पास के गावों के कृषकों के लिए वरदान साबित हुआ है- कृषि
प्रचार-प्रसार, बागवानी, पशुपालन,
मधुमक्खी पालन एवं रेशम पालन के अलावे सूत कातने एवं कपड़े बनाने का
काम यहाँ आज भी सुचारुपूर्वक हो रहा है। आश्रम के सचिव श्री अरविंद जी से भेंट हुई
जिन्होंने यहाँ के क्रिया-कलापों से अवगत कराया। समाज के गरीब तबके का उत्थान ही
इस आश्रम का लक्ष्य है और इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आज भी अपने ढंग से यह आश्रम
खादी ग्रामोद्योग कमीशन और ग्रामीण उद्योग बोर्ड के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
आश्रम में आपको सर्वत्र असीम शांति और सुकून का अहसास होगा। नैतिक जागरण का जो अलख
जे.पी. ने जगाया था वह दीप आज भी यहाँ प्रज्वलित है।