Thursday, 31 December 2015

कृष्ण बल्लभ बाबू: प्रगति के प्रतीक


31 दिसंबर 1986 को हज़ारीबाग़ के संत कोलम्बस कॉलेज के सम्मुख कृष्ण बल्लभ सहाय उद्यान में मुख्य-मंत्री श्री बिन्देश्वरी दुबे द्वारा उनकी मूर्ति के अनावरण के अवसर पर श्री दुबे द्वारा आम सभाको सम्बोधित भाषण के अंश
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सांसद पाण्डेय जी, हमारे मंत्री-परिषद के सहयोगीगण, सांसद साथी, तिलकधारी बाबू, साथी विधायकगण, कांग्रेस कर्मी, साथी-गण, युवा कांग्रेस अध्यक्ष, और अन्य पदाधिकारीगण, श्रद्धेय कृष्णबल्लभ बाबू के परिवार के सदस्यगण, हज़ारीबाग़ के गणमान्य नागरिकगण, बहनों, भाइयों, मेरे स्नेह पात्र नौजवानों और छात्रों!

स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत योद्धा एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश और अपने प्रदेश के नवनिर्माण के अग्रणी कतार के हमारे परम श्रद्धेय नेता कृष्णबल्लभ बाबू के जन्मजयंती के अवसर पर आज उनके आदमकद प्रतिमा का अनावरण कर के हमें अंत्यंत ही ख़ुशी हुई. बहुत वर्षों से मेरे मन में इच्छा थी कि हज़ारीबाग़ शहर में जो पुराने हज़ारीबाग़ ज़िले का मुख्यालय रहा है और छोटानागपुर का एक प्रमुख स्थान है, जो बाबू कृष्णबल्लभ सहाय की कर्मभूमि रही है वहां पर उनकी स्मृति को ताज़ा और कायम रखने के लिए एक मूर्ति स्थापित की जानी चाहिए. 

उनके सुपुत्र श्रीकांत सहायजी और कृष्णबल्लभ सहाय स्मृति समिति ने इस दिशा में कदम बढ़ाया. उनकी मूर्ति बनवायी और उस मूर्ति की स्थापना हुई और आज अनावरण हुआ. हमारे जैसे और भी जो कृष्णबल्लभ बाबू को जानते थे, उनके राजनैतिक जीवन से जुड़े थे और जो उन्हें जानते थे उन सभी लोगों के मन की मुराद पूरी हुई. उनके गुणों के बारे में कुछ चर्चा करना, अनुभवी ऐसी लोगों के बीच जो उन्हें बहुत ही नजदीक और करीब से जानते थे उसकी आवश्यकता मैं नहीं समझता. लेकिन देश की स्वतंत्रता संग्राम में उन्होनें जो भूमिका निभायी और इस प्रदेश के नव- निर्माण में उन्होनें जो कार्य किये उसे इस प्रदेश के और इस देश के लोग कभी भूल नहीं सकते. उनके क्रांतिकारी और प्रगतिशील विचारों से हम सभी सुपरिचित हैं. गरीबों के लिए उनके मन में कितना दर्द था और उनके जीवन में ख़ुशी लाने के लिए, उनके जीवन को समुन्नत बनाने के लिए उन्होनें जो कदम उठाये उसी के फलस्वरूप सारे देश में बिहार ही वह प्रथम राज्य था जहां जमींदारी उन्मूलन हुआ और ज़मींदारोंके शोषण और उत्पीड़न से जनता के मुक्ति अभियान के शुरुवात इस व्यक्ति ने की.  उस व्यक्ति को गरीब किसान और मज़दूर कैसे भूल सकते हैं? और वह जो नए इतिहास का प्रारम्भ हुआ उसके नायक श्रद्धेय बाबू कृष्णबल्लभ सहाय ही थे. ऐसे पुरुष कम आते हैं जो एक इतिहास बनाकर जाते हैं और जब तक वह इतिहास कायम रहता है, लोग न सिर्फ वैसे व्यक्तित्व को याद करते हैं और उनसे प्रेरणा भी लेते हैं.

मेरा तो उनसे बड़ा ही निकट का सम्बन्ध रहा था. एक पारिवारिक सम्बन्ध जिसे कहा जा सकता है और जो मेरे जीवन की राजनैतिक उपलब्धि है. उसमे उनका बहुत बड़ा सहारा रहा है और इस प्रदेश के जो अन्य अत्यंत ही उनके विश्वासपात्र सहयोगी हैं उनमें मुझे भी रहने का सौभाग्य प्राप्त था. इसलिए हमारे राजनैतिक जीवन के वे प्रेरणा के श्रोत रहे और आज भी हैं. अगर आज हमारे संग-सहयोगी मानते हैं कि प्रशासनिक क्षमता और प्रशासन को चलाने में मैंने कुछ विशेष भूमिका निभायी है तो इसका श्रेय भी कृष्णबल्लभ बाबू को ही जाता है क्योंकि मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. इसलिए मैं उनका बहुत ऋणी हूँ. हज़ारीबाग़ में उनकी प्रतिमा का अनावरण हुआ है. हमसे मुख्य-मंत्री बनाने के तत्काल बाद ही चर्चा की गयी थी कि पटना में भी उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की जाए जो निश्चय रूप से हम करने जा रहे हैं. कृष्णबल्लभ बाबू के नाम पर कृष्णबल्लभ कॉलेज की स्थापना बेरमो में मैंने की.


कृष्णबल्लभ बाबू ने छोटानागपुर और हज़ारीबाग़ में शिक्षा के विकास के लिए कई कार्य किये. और इसलिए मैं अपने कार्यकाल में छोटानागपुर का विकास कर इस क्षेत्र को प्रगति की कतार में खड़ा कर पाऊँ तो यही मेरी कृष्णबल्लभ सहाय के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. ऐसा मैं समझता हूँ और इन्हें शब्दों के साथ मैं आज उनके जनमदिन के अवसर पर अपनी श्रद्धांजलि उन्हें देता हूँ. उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करता हूँ और आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि छोटानागपुर, हज़ारीबाग़, गिरिडीह, धनबाद और अन्य ज़िलों के विकास के लिए जो भी संभव बन सकेगा मैं पूरी कोशिश करूंगा. बहुत-बहुत धन्यवाद!

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