Friday, 22 September 2023

WHEN PANDIT NEHRU AND K. B. SAHAY MARCHED TOGETHER TO ESTABLISH THE TEMPLE OF MODERN INDIA: HEAVY ENGINEERING CORPORATION

 

IT WAS NOVEMBER 1963. K.B.SAHAY HAD JUST TAKEN OVER AS THE CHIEF MINISTER OF BIHAR. HE WAS WITNESS TO THE FOUNDATION STONE LAYING CEREMONY OF THE HEAVY ENGINEERING CORPORATION AT RANCHI JUST A COUPLE OF YEARS BACK. HIS EFFORTS PAID OFF WHEN PANDIT NEHRU CAME DOWN TO RANCHI TO INAUGURATE THE HEC- THE MOST VIBRANT TEMPLE OF MODERN INDIA IN NOVEMBER 1963. IT WAS A DREAM COME TRUE PROJECT WHICH ANNOUNCED TO THE WORLD IN NO UNCERTAIN TERMS THAT THE WHEELS OF INDUSTRIALISATION HAD STARTED MOVING. THERE WAS NO LOOKING BACK FOR THE INDEPENDENT NATION- INDIA, THAT IS BHARAT. 



K.B.SAHAY PROMISES TO MAKE BIHAR A LEADING STATE- ONLY A MONTH HENCE THE HEC WAS INAUGURATED BY PANDIT NEHRU




Friday, 2 June 2023

REMEMBERING KRISHNA BALLABH SAHAY (3RD JUNE 2023)

 


'THE SEARCHLIGHT' 4TH JUNE 1974



REMEMBERED BY ONE AND ALL 'THE SEARCHLIGHT' 4TH JUNE 1974


'THE SEARCHLIGHT' EDITORIAL 4TH JUNE 1974



Thursday, 9 March 2023

FIRST WOMAN MINISTER IN A STATE- THE CASE OF BIHAR (1963) AND NAGALAND (2023)

 THE PROGRESSIVE CHIEF MINISTER- K. B. SAHAY

The first woman to become a minister in Bihar was Smt Sumitra Devi in 1963 in K. B. Sahay's cabinet. 

In Nagaland, it took another 60 years before Ms Kruse became a minister in the State cabinet.

Tuesday, 28 February 2023

डॉ राजेंद्र प्रसाद की 60वीं पुण्यतिथि पर विशेष - राजन बाबू, जे.पी. और कृष्ण बल्लभ बाबू – सोश्ल मीडिया से परे शुद्ध इतिहास की कुछ बातें (28/02/2023)

 






















डॉ राजेंद्र प्रसाद की 60वीं पुण्यतिथि पर विशेष

राजन बाबू, जे.पी. और कृष्ण बल्लभ बाबू – सोश्ल मीडिया से परे शुद्ध इतिहास की कुछ बातें 

आज 28 फरवरी डॉ राजेंद्र प्रसाद की 61वीं पुण्यतिथि है। साठ साल पूर्व यानि 1963 को आज ही के दिन डॉ राजन बाबू का रात्रि 10 बजकर 13 मिनट पर निधन हुआ था। 1962 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा था। इसी वर्ष 13 मई को राष्ट्रपति पद त्याग कर वे पुनः सदाकत आश्रम लौट आए थे। आज भी सदाकत आश्रम में आप डॉ राजेंद्र प्रसाद की सादगी और सरलता की छाप देख सकते हैं। जहां डॉ प्रसाद आकर पहले रहे वह झोपड़ी आज डॉ राजेंद्र स्मृति संग्रहालय -1 है। डॉ प्रसाद से मिलने आने वालों का तांता लगा रहता था। अतः एक अतिथिशाला के निर्माण का प्रस्ताव हुआ। डॉ राजेंद्र प्रसाद इस फिजूलखर्ची के खिलाफ थे। बहुत मुश्किल से उन्हें मनाया गया। डॉ प्रसाद इस बात पर माने कि चार कमरों के इस अतिथिशाला में अनावश्यक खर्च नहीं किया जाएगा। अंततः चंदे से जुटाई एक लाख की राशि से एक सामान्य से अतिथिशाला का निर्माण हुआ। डॉ राजेंद्र प्रसाद दमा से पीड़ित रहते थे। मिट्टी की पुरानी झोपड़ी में नमी ने उनके दमे को और बढ़ाया। डॉ प्रसाद इस वजह से परेशान रहते थे। अतः उनसे अतिथिशाला के एक कक्ष में  रहने का आग्रह किया गया। अतिथिशाला के इसी कक्ष में उन्होंने अपना शरीर त्यागा। आज यह सामान्य सा अतिथिशाला ही राजेंद्र स्मृति संग्रहालय -2 है।

सदाकत आश्रम से साथ लगा है बिहार विद्यापीठ। यह वही स्थान है जहां से डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बिहार में स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किया था। 1919-1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान जब अँग्रेजी कॉलेज एवं विद्यालयों का बहिष्कार किया गया तब मौलाना मजरूल हक़ ने सदाकत आश्रम एवं बिहार विद्यापीठ की भूमि काँग्रेस को दान किया था। इसी बिहार विद्यापीठ में बिहार के तमाम स्वतन्त्रता सेनानियों ने बिहार के युवाओं को वर्षों पढ़ाया। इन स्वतन्त्रता सेनानियों में प्रमुख थे डॉ राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण के स्वसूर श्री ब्रज किशोर प्रसाद,  बाबू जगत नारायण लाल, आचार्य बद्रीनाथ वर्मा, बाबू फुलदेव सहाय वर्मा, श्री काशीनाथ प्रसाद, बाबू प्रेम सुंदर दास, श्री राम चरितर सिंह, पंडित राम निरीक्षण सिंह, प्रोफेसर अब्दुल बारी, मोहम्मद काजीर मुनेमी, मौलवी तमन्ना, श्री बिरेन्द्रनाथ सेनगुप्ता, श्री अरुणोदय प्रमाणिक, श्री ज्ञानन्दा प्रसन्न साहा एवं बाबू कृष्ण बल्लभ सहाय। यहीं से बाबू कृष्ण बल्लभ बाबू डॉ राजेंद्र प्रसाद के सानिध्य में आए और गुरु-शिष्य का यह संबंध जीवन पर्यंत बना रहा। जमींदारी उन्मूलन के सवाल पर इन दोनों के बीच मतभेद हुए किन्तु इनके बीच कभी कोई मनभेद नहीं रहा।

बाबू कृष्ण बल्लभ सहाय की राजनीतिक जीवन में चार महानुभाओं का विशेष योगदान रहा था। यह थे महात्मा गांधी, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा। 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन हुआ और इसी वर्ष 2 अक्तूबर को कृष्ण बल्लभ बाबू ने बिहार के मुख्यमंत्री पद का बागडोर थामा। कृष्ण बल्लभ बाबू को यह मलाल सदा बना रहा कि उनके नेतृत्व को डॉ राजेंद्र प्रसाद का आशीर्वाद नहीं प्राप्त हो पाया।  संभवतः यही वजह रही होगी कि कृष्ण बल्लभ बाबू ने पटना संग्रहालय में राजेंद्र कक्ष बनवाया जहां उन्होंने अपने राजनैतिक गुरु डॉ राजेंद्र प्रसाद की स्मृतियों को सँजोने का प्रयास किया। इसी प्रकार छपरा के महेंद्र मंदिर में उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद स्मृति गैलरी का उदघाटन किया। 3 दिसम्बर 1963 को पटना में संक्रामक रोग संस्थान के परिसर में नव-स्थापित राजेंद्र स्मारक चिकित्सा शोध संस्थान के उदघाटन के अवसर पर कृष्ण बल्लभ बाबू ने विशेष तौर पर जयप्रकाश नारायण को आमंत्रित कर इस संस्थान का उदघाटन उनके कर-कमलों द्वारा करवाया। द सर्चलाइट लिखता है कि कृष्ण बल्लभ बाबू की इस पेशकश पर जे.पी. भावुक हो उठे थे। उनका गला इस कदर भर गया था कि उन्होंने कृष्ण बल्लभ बाबू से सभा को पहले संबोधित करने का आग्रह किया। कृष्ण बल्लभ बाबू के बोलने के दौरान जे.पी. संयत हुए। के.बी. के बाद जब जे.पी. ने सभा को संबोधित किया तब उन्होंने कृष्ण बल्लभ बाबू के पेशकश की सराहना करते हुए इसे अपना सौभाग्य माना कि बाबूजी यानि डॉ राजेंद्र प्रसाद, जो वस्तुतः उनके पिता समान ही थे, की स्मृति में निर्मित इस संस्थान का उदघाटन उनके जीवन का अनमोल क्षण था। डॉ राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण एवं कृष्ण बल्लभ सहाय के बीच राजनीतिक एवं पारिवारिक सम्बन्धों का यह एक नायाब उदाहरण था।   

Saturday, 4 February 2023

KRISHNA BALLABH SAHAY'S 125TH BIRTH ANNIVERSARY CELEBRATIONS AT PATNA ON 31.12.2022

HON'BLE GOVERNOR OF BIHAR SHRI PHAGU PAHAN AT THE STATE FUNCTION OF 125TH BIRTH ANNIVERSARY CELEBRATIONS OF K. B. SAHAY AT PATNA

 


HON'BLE CHIEF MINISTER OF BIHAR SRI NITISH KUMAR AT THE STATE FUNCTION TO CELEBRATE 125TH BIRTH ANNIVERSARY OF K.B. SAHAY

DISTINGUISHED GUESTS AT THE CEREMONY