Sunday, 24 July 2022

हमारी विरासत, हमारी धरोहर: 28: संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949, महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुरमु एवं कृष्ण बल्लभ सहाय (24/07/2022)

महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुरमु 

 

कृष्ण बल्लभ सहाय 


'द टेलीग्राफ  में प्रकाशित समाचार

आज भारत गणतन्त्र के पंद्रहवें राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह की पूर्व-संध्या पर ध्यान छ साल पूर्व झारखंड राज्य के राजनैतिक पटल पर मच रही उथलपुथल की ओर बरबस चला जाता है। तब राज्य में भारतीय जनता पार्टी की रघुबीर दास की सरकार सत्तानसीन थी जब 2016 में राज्य के सर्वांगीण विकास में बाधक सिद्ध हो रही छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 में कतिपय संशोधन के बाबत सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाया गया। इन अध्यादेशों के विरोध में समस्त संथाल परगना एवं छोटानागपुर क्षेत्र एक बार पुनः सुलग उठा था।

मुख्य मुद्दे पर आने से पहले एक नज़र इन दोनों अधिनियमों के इतिहास पर डालते हैं। 1876 में हूल विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1885 में पारित किया था। यह कानून विदेशी शासक द्वारा प्रजा पर राज करने के उद्देश्य से लाया गया था। अतः जब देश स्वतंत्र हुआ तब आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु इस कानून में संशोधन किया गया। इस प्रकार संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949 झारखंड के संथाल परगना संभाग में काश्तकारी का पहला संहिताबद्ध कानून बना। इस कानून की परिकल्पना कृष्ण बल्लभ सहाय की देन थी जो तब बिहार के राजस्व मंत्री हुआ करते थे। के.बी. सहाय ने एक विशेष सत्र में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949 की विभिन्न धाराओं में संशोधन से संबन्धित प्रस्ताव पेश किए। पहला संशोधन संथाल परगना काश्तकरी अधिनियम 1949 की धारा 20 में किया गया जिसमें यह व्यवस्था की गयी कि किसी रैयत द्वारा बिक्री, उपहार, गिरवी, वसीयत, पट्टे या अनुबंध के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को किया गया कोई हस्तांतरण मान्य नहीं होगा। इस संशोधन द्वारा कुछ उदाहरणों को छोड़कर, आदिवासी भूमि के सभी हस्तांतरणों पर प्रतिबंध लगाया गया था। प्रायः ऐसे हस्तांतरण दिकु यानि गैर-आदिवासियों के नाम हुआ करते थे। इसी प्रकार इस अधिनियम की धारा 42 में संशोधन कर उपायुक्त (जिले का कलेक्टर) को यह अधिकार दिया गया कि वो किसी भी समय या तो अपने स्वयं के प्रस्ताव पर या उसे किए गए आवेदन पर किसी भी व्यक्ति को बेदखल करने का आदेश पारित कर सकता है, जिसने आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण किया है। इस अधिनियम के तहत, सभी गांवों में, वंशानुगत ग्राम प्रधान (प्रधान / मुलरैयत) नियुक्त किए गए थे। ज्ञातव्य रहे कि 1949 में भी इस कानून को ट्रेजरी बेंच से ही भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। संशोधन को सही ठहराते हुए के.बी. सहाय ने कहा कि संशोधन से काश्तकारों की पीड़ा और उत्पीड़न काफी हद तक कम हो जाएगा। संशोधन का विरोध करने वाले नहीं चाहते थे कि ऐसी भूमि पर रैयतों को अधिभोग अधिकार प्राप्त हो जो सीलिंग क्षेत्र के भीतर थे। (द सर्चलाइट, 12.12.1954)

2016 में इन्हीं धाराओं में संशोधन के बाबत अध्यादेश तात्कालिक रघुबर दास सरकार द्वारा लाया गया था जिसके द्वारा खेतिगत भूमि का गैर-खेतिगत उपयोग एवं आदिवासी ज़मीन का गैर-आदिवासी को बेचने से संबन्धित लगे प्रतिबंधों को हटाने का प्रस्ताव था। इन संशोधनों का पूरे झारखंड में ज़बरदस्त विरोध हुआ। किन्तु जब सदन का सत्र आहूत हुआ तब इन विरोधों को अनदेखा करते हुए इसी अध्यादेश पर आधारित एक बिल सरकार द्वारा सदन में पेश किया गया जिसे बिना किसी बहस के तीन मिनट के भीतर-भीतर पारित करवा लिया गया। सरकार ने इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित एवं प्रसारित किया क्योंकि सदन में पारित होने के बाद अब राज्यपाल से इन बिलों पर अनुमति प्राप्त करना महज एक संवेधानिक औपचारिकता थी। किन्तु यहीं समझ की भूल रघुवर दास सरकार को भारी पड़ी जब अप्रत्याशित रूप से तात्कालिक राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने इन संशोधनों से संबन्धित बिल पर अपनी सहमति देने से इंकार कर दिया। महामहिम राज्यपाल महोदया ने अपने विवेक से जो निर्णय लिया उसने उन्हें आमजन का लोकप्रिय राज्यपाल बना दिया। इन संशोधनों को नकार कर मानो राज्यपाल महोदया ने कृष्ण बल्लभ बाबू के विजन पर भी अपनी सहमति व्यक्त कर दी थी। आदिवासियों के प्रति जो सहृदयता बाबू कृष्ण बल्लभ बाबू में थी वही श्रीमती द्रौपदी मुर्मु में भी परिलक्षित होती है। भारतीय गणतन्त्र के पन्द्रहवें राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने पर उन्हें हमारी शुभकामनाएँ!

अंत में राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे उम्मीदवार श्री यशवंत सिन्हा के संबंध में दो शब्द। नब्बे के दशक में यशवंत सिन्हा हजारीबाग से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हुआ करते थे जहां उन्हें कृष्ण बल्लभ बाबू के पौत्र, अब दिवंगत, प्रशांत सहाय से सदा संशय बना रहता था। प्रशांत सहाय एक उभरते हुए युवा नेता एवं एक सफल क्रिमिनल लॉंयर थे। चुनाव प्रचार के दौरान वोटर से अपील करते हुए एक ही मुद्दा उठाते थे- किसी को भी चुन लें किन्तु यशवंत सिन्हा को नहीं। फिलहाल यह अध्याय फिर कभी!

'THE LEGACY': 28: SANTHAL PARGANAS TENANCY ACT, 1949, HON'BLE SHRIMATI DROUPADI MURMU & KRISHNA BALLABH SAHAY (24/07/2022)

 Santhal Parganas Tenancy Act 1949

Hon’ble Srimati Draupadi Murmu and Krishna Ballabh Sahay

PRESIDENT-ELECT SRIMATI DROUPADI MURMU

KRISHNA BALLABH SAHAY 

'LOST CASES LAWYER VS SINHA' (THE TELEGRAPH)

Today, on the eve of the swearing-in ceremony of the fifteenth President of the Republic of India, the attention shifts to the political turmoil in the state of Jharkhand six years ago. Then the Bharatiya Janata Party's Raghubir Das's government was in power in the State when in 2016, an ordinance was brought by the government amending the Chotanagpur Tenancy Act 1908 and the Santhal Pargana Tenancy Act 1949, which were proved to be an 'obstacle' in the all-round 'development' of the state. The entire Santhal Parganas and Chotanagpur went up in flares in protest of the proposed ordinance.

Before coming to the main issue, let us look at the history of these two Acts. After the Hul rebellion in 1876, the British government passed the Santhal Parganas Tenancy Act in 1885. This law was brought by a foreign ruler with the aim of ruling the 'subject'. Therefore, when the country became independent, this law was amended to protect the interests of the tribal citizens of Indian Republic. Thus the Santhal Pargana Tenancy Act, 1949 became the first codified law of tenancy in the Santhal Pargana division of Jharkhand. This law was conceptualized by Krishna Ballabh Sahay, who was then the Revenue Minister of Bihar. In a special session, K. B. Sahay presented proposals related to amendments in various sections of the Chotanagpur Tenancy Act, 1908 and the Santhal Parganas Tenancy Act, 1949. The first amendment was made in Section 20 of the Santhal Parganas Tenancy Act 1949, which held any transfer of land made by a raiyat to any other person by way of sale, gift, mortgage, bequest, lease or contract to be void. All transfers of tribal land were banned by this amendment, except in a few instances. Often such transfers were in the name of Diku i.e. non-tribals. Similarly, by amending Section 42 of this Act, the Deputy Commissioner (Collector of the district) was empowered to pass an order to evict any person at any time either on his own motion or on an application made to him, who had encroached upon the tribal land. The Act also provisioned for the appointment of hereditary village headmen (pradhan/mulrayat) in all villages. It should be noted that even in 1949, this law faced heavy opposition from the treasury bench. Justifying the amendment, K. B. Sahay maintained that the amendment would mitigate the sufferings and oppressions of the tenants to a considerable extent. Opposition to the Amendment came from some of the public men of state, who did not want occupancy rights should accrue to raiyats on such lands which were within the ceiling area (The Searchlight, 12.12.1954)

The ordinance brought by the Raghubar Das government in 2016 proposed to amend these Sections to remove both the restrictions related to –(i) non-agricultural use of agricultural land and (ii) sale of tribal land to non-tribals. There was strong opposition to these amendments all over Jharkhand. Ignoring these protests, the Government introduced a Bill in the House, based on this ordinance, when the session was convened and got it passed within three minutes without any debate. The government publicized this as a significant achievement because after getting it passed in the House, it was now just a constitutional formality to get the assent of the Governor on these Bills. But it was here that the Raghuvar Das government suffered a rude shock when unexpectedly the then Governor Srimati Draupadi Murmu refused to give her assent to the Bill related to these amendments. The decision taken by Her Excellency the Governor at her discretion made her a 'People’s Governor'. It appeared the Hon’ble Governor had assented to the 'Vision' of Krishna Ballabh Babu, in rejecting these amendments. The sympathy that Babu Krishna Ballabh Babu had for the tribals was reflected in this decision of Srimati Draupadi Murmu. Our best wishes to her on becoming the 15th President of the Republic of India.

Lastly, a few words for Sri Yashwant Sinha- the other candidate in this Presidential election. In the Nineties, Yashwant Sinha used to be the Bharatiya Janata Party's candidate from the Hazaribagh Parliamentary constituency where he was always suspicious of Krishna Ballabh Babu's grandson, the deceased Prashant Sahay. Prashant Sahay was a rising youth leader and a successful criminal lawyer. During the election campaign, while appealing to the voters, he used to raise a single issue- 'Choose you may any candidate but not Yashwant Sinha'. More of this tussle in some other episode!