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Friday, 1 January 2016

कृष्ण बल्लभ सहाय: एक संस्मरण -रवि किशोर नारायण


FROM THE BLOGGER’S LIBRARY: REMEMBERING K.B.SAHAY:7






जन्म शताब्दी वर्ष पर दैनिक समाचार पत्र "आज" के पटना संस्करण में 31 दिसंबर 1998 को प्रकाशित
 
      बिहार की महान विभूतियों में जिन्होनें आज़ादी के लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, कृष्णबल्लभ बाबू का नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्री कृष्ण सिन्हा जय प्रकाश नारायण, अनुग्रह नारायण सिन्हा के साथ ही लिया जाता है सही मायने में ये सभी स्वतंत्रता सेनानी थे जेल की यातनाएं सही और अपने परिवार को ईश्वर के भरोसे छोड़ कर महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में जुट गए. सन 1919 में 21 वर्ष की आयु में उन्होनें अंग्रेजी में स्नातक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और गेट्स स्वर्ण पदक प्राप्त किया गांधीजी के आह्वाहन पर उन्होनें आगे की पढाई छोड़ दी और स्वतंत्रता सेनानी बन गए

1925 में जो पार्षद बनी उसके वे सदस्य रहे. 1937 में जब कांग्रेस की सरकार बनी उसमे वे संसदीय सचिव बने इसी प्रकार धीरे धीरे अग्रसर होते हुए पुनः 1942 में भारत छोडो आंदोलन में पूर्णतः सक्रिय हो गए और जेल चले गए पुनः 1947 में जेल से छोट कर कांग्रेस पार्टी के लिए रचनात्मक कार्य करते रहे 1946 की अंतरिम सरकार जब बनी तो वे पुनः संसदीय सचिव बने और स्वतंत्रता के बाद 1952 में चुनाव जीत कर श्री कृष्ण सिन्हा के कैबिनेट में राजस्व-मंत्री बने काँटों से भरा उनके जीवन का यह सफर संघर्षमय था साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े रहने से सामंतवाद की यातनाओं से पीड़ित निर्धन खेतिहर के सम्बन्ध में चिंतित रहने लगे उनका ध्येय था जमींदारी प्रथा का उन्मूलन ताकि गरीब किसान  को रहत मिले एवं उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो 1952 में राजस्व-मंत्री बन कर उन्होंने जमींदारी उन्मूलन विधेयक को पारित करवाया और उसे लागू करने में जुट गए किन्तु सामंतों को जो यह चुनौती मिली उसके उत्तर में 1957 में अपने ही क्षेत्र से वे बुरी तरह चुनाव हार गए कहा जाता है कि उनकी हार के पीछे महेश प्रसाद सिंह का हाथ था और महेश प्रसाद सिंह को हराने में कृष्ण बल्लभ सहाय का हाथ था जो भी हो कृष्ण बल्लभ सहाय ने पहली बार मुँह की खायी थी इसलिए कुछ दुखी थे इसी समय उनसे मेरी मुलाकात हुई धनबाद में श्री सहाय अपने ज्येष्ठ पुत्र नीलकंठ प्रसाद के यहाँ आये हुए थे नीलकंठ प्रसाद मेरे अभिन्न मित्र थे इसी कारणवश मैं उनसे मिला उन्होंने कहा कि ज्योतिष में वे विश्वास नहीं रखते हैं फिर भी मुझसे कहा गया कि मैं उनका हाथ देखूं मैंने उनको बताया कि वे अगला चुनाव अवश्य जीतेंगे और बिहार के मुख्य-मंत्री भी बनेगें जब उनकी आयु लगभग 66 वर्ष के होगी 1962 में चुनाव जीत कर विनोदानंद झा के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने वे सहकारिता मंत्री थे विनोदानंद झा से उनका तालमेल ठीक नहीं था

जब श्री कृष्ण सिन्हा मुख्य-मंत्री थे तो 1957 तक कृष्ण-बल्लभ सहाय मुख्य मंत्री का पूर्ण दायित्व श्री बाबू के लिए संभालते थे किन्तु अंत में संबंधों में कुछ कटुता आई चूँकि बिहार सामंतवादी रूढ़ियों में इतना जकड़ा हुआ था कि कृष्ण-बल्लभ सहाय जैसे व्यक्ति को सत्ता में आने देना उनके हितों के विरुद्ध था इसलिए एक ओर श्री बाबू से उनकी निकटता समाप्त करने के षड्यंत्र रचे गए जो अंततः सफलीभूत हुए दूसरी ओर जातीय समीकरण बदल गए और यह बदलाव बिहार के लिए बुरे दिन आने का द्योतक था और फिर आया कामराज योजना श्री कामराज नाडर एक प्रभावशाली नेता थे जिनकी कांग्रेस के उच्च स्तरीय नेताओं पर गहरी पकड़ थी पंडित नेहरू उन्हें बहुत ही निकट रखते थे 1962 में चीनी आक्रमण के बाद पंडितजी इतने दुखी हुए कि उनका स्वास्थ्य गिरने लगा पार्टी और सरकार पर उनकी पहले  जो पकड़ थी वह ढीली पड़ चुकी थी कई राज्यों के मुख्य-मंत्री की निष्ठा संदेह के घेरे में आ गयी थी कांग्रेस पार्टी में भी बिखराव आरम्भ हो गया था इसी अवसर पर कामराज नाडर ने कामराज प्लान बनाया जिसके तहत कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य-मंत्रियों को पंडित जवाहर लाल नेहरू के समक्ष अपना त्याग-पत्र उनके हाथ में दे देना था और आवश्यकतानुसार उसका उपयोग करने के लिए पंडित नेहरू स्वतंत्र थे सभी मुख्य-मंत्रियों ने अपना त्याग-पत्र पंडित नेहरू को समर्पित कर दिया इसका उपयोग बिहार के मुख्य-मंत्री श्री विनोदानंद झा को पद-च्युत करने के लिए किया गया और 1964 (कृपा 1963 पढ़े) में उन्होनें मुख्य-मंत्री पद का त्याग किया अब प्रश्न आया कि मुख्य-मंत्री कौन बनेगें कृष्ण बल्लभ सहाय के लिए उनके पुत्र नीलकंठ प्रसाद ने जो प्रश्न किये थे उस समय का प्रश्न-कुंडली बनाने पर यह स्पष्ट हो गया कि श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ही मुख्य-मंत्री बनेगें और कृष्ण-बल्लभ सहाय मुख्य-मंत्री बने भी उनकी कर्तव्यनिष्ठा, निष्पक्षता और निर्भयता उल्लेखनीय थी जो वे सही समझते थे उस पर वे तुरंत निर्णय लेते थे और जिसे उन्हेोनें गलत मान लिया उसे किसी भी कीमत पर नहीं करते थे जातिवाद के वे कट्टर शत्रु थे इसलिए वे अपनी जाति को छोड़ अन्य सभी जातियों में लोकप्रिय रहे जैसे-जैसे 1967 का चुनाव निकट आ रहा था कृष्ण बल्लभ सहाय के विरुद्ध उनको हराने के षड्यंत्र रचे जा रहे थे सन 1967 में अराजपत्रित कर्मचारियों की लम्बी हड़ताल और छात्रों पर सैन्य-पुलिस द्वारा गोली चलाये जाने की घटना, षड्यंत्रकारियों के लिए सुलभ मुद्दे बन गए राजा रामगढ के नेतृत्व में जनता दल का गठन हुआ राजा साहब हज़ारीबाग़ के ही नागरिक थे और जमींदारी उन्मूलन से वे सबसे अधिक दुष्प्रभावित थे. उन्होनें कृष्ण बल्लभ सहाय को राजनैतिक रूप से समाप्त करने की जैसे शपथ ले रखी थी जनता पार्टी की जीत हुई और सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण महामाया प्रसाद सिन्हा कृष्ण-बल्लभ सहाय को हराकर बिहार के मुख्य-मंत्री बने

कांग्रेस की एक टुकड़ी अलग हो गयी थी जिसने भोला पासवान शास्त्री को अपना नेता चुना और उन्होनें महामाया प्रसाद सिन्हा को एक घटक के रूप में समर्थन दिया फलतः सविंद सरकार का गठन हुआ बिहार के पतन का पहला दौर शुरू हो गया था सविंद सरकार ने कृष्ण बल्लभ सहाय के विरुद्ध अय्यर कमीशन द्वारा जांच के आदेश दिए जांच-पड़ताल का लम्बा दौर चला  बिहार के राजनैतिक इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी मुख्य-मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर कमीशन द्वारा जांच करायी गयी थी किन्तु अय्यर कमीशन ने कृष्ण बल्लभ सहाय की सराहना की - उनकी प्रशासनिक क्षमता पर पार्टी के लिए विभिन्न संस्थाओं से धन इकठ्ठा करना राजनीति की परिपाटी रही है

महात्मा गांधी भी स्वतंत्रता-संग्राम को चलाने के लिए इसका उपयोग करते थे किन्तु उनकी बात कुछ और थी उनके लिए अपरिग्रह, अहिंसा, सत्य स्वतंत्रता-संग्राम के तीर-कमान थे उन्हें अपने देश को आज़ाद कराने का एकमात्र लक्ष्य था जिसे उन्होनें प्राप्त किया कृष्ण बल्लभ सहाय में अपरिग्रह की कमी नहीं थी पार्टी के लिए उन्हें करोड़ों रुपये मिलते थे जिसका वे कभी दुरूपयोग नहीं करते थे इस प्रकार की रकम का पूरा व्योरा उनके निजी सचिव रखते थे अय्यर ने इसकी सराहना भी की थी

कृष्ण-बल्लभ सहाय एक सीधे-सादे व्यक्ति थे किन्तु उनकी प्रशासनिक क्षमता अतुलनीय थी कभी-कभी प्रशासन में उनकी टक्कर  दिग्गज आईसीएस अफसरों से होती थी अपनी कुशाग्र बुद्धि और कलम के सहारे उन्होनें बराबर विजय पायी काश आज भी कुछ उन आईसीएस और आईएएस पदाधिकारी होते जो राजनेताओं को मनमानी करने से रोक पाते किन्तु अब तो नज़ारा ही कुछ और है राजा कहे तो दिन, रात कहे तो रात  इस प्रकार प्रशासनिक तंत्रों के मूल्यों में पतन होने के कारण ही बिहार की यह दुर्दशा हो रही है राजनेता तो आज हैं कल दूसरे आवेंगें किन्तु प्रशासन तो 35 वर्षों तक बना रहता है वही जब निष्क्रिय हो जाए और कर्तव्यच्युत हो जाए तो लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाता है ऐसी स्थिति केवल बिहार में ही नहीं है बल्कि सारे देश में है निजी स्वार्थ देश के हितों से ऊपर आ पहुंचा है जो जहाँ भी है उसे केवल अपनी चिंता है लोकतंत्र की नहीं किन्तु इस उदासी के माहौल में ऐसे भी प्रशासक और राजनेता हैं जो सच्चे और सही रास्ते पर चल कर लोकतंत्र की रक्षा करने के प्रयास में लगे हैं उनकी संख्या घटती जा रही है और वे हाशिये में चले जा रहे हैं कौन पूछता है उन्हें?

कृष्ण बल्लभ सहाय के विरुद्ध अय्यर कमीशन की जांच सविंद सरकार को महंगी पड़ी कृष्ण बल्लभ सहाय ने "शोषित दल" नाम से एक नयी पार्टी बनायीं जिसमे सारे एम.एल.ए. पिछड़े वर्ग से ही थे कृष्ण बल्लभ सहाय के नेतृत्व में इस पार्टी ने जोड़-तोड़ की राजनीति से महामाया सरकार को गिरा दिया और "शोषित दल" की सरकार बनी इस पार्टी के अध्यक्ष श्री बी. पी. मंडल थे, जिनकी ख्याति मंडल कमीशन के अध्यक्ष होने के नाते वी. पी. सिंह के सरकार में बढ़ी, जिन्होनें मंडल कमीशन की सिफारिशों को केंद्रीय सेवाओं में लागू करने का बीड़ा उठाया आरक्षण के मुद्दे पर सारा देश दो खेमों में विभाजित हो गया-अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति में इसका लाभ क्षेत्रीय पार्टियों को मिला जो हर राज्य में उभड़ी और कांग्रेस सब से अधिक घाटे में रही – बिहार में तो उसका सफाया ही हो गया

तो बी. पी. मंडल "शोषित दल" के नेता बतौर बिहार के मुख्य-मंत्री बने किन्तु सरकार के शपथ के समय श्री. मंडल पटना में नहीं थे इसलिए श्री सतीश प्रसाद सिंह तीन दिन के लिए बिहार के मुख्य-मंत्री बनाये गए जब बी. पी. मंडल आये तो भरत की भांति रामचन्द्र के लौटने पर सतीश प्रसाद सिंह ने पद-त्याग किया और बी. पी. मंडल बिहार के मुख्य-मंत्री बने उन्होनें पहला आदेश दिया कि श्री. मढोलकर की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन का गठन हो और सविंद सरकार के मंत्रियों के विरुद्ध भ्रष्टाचारों के आरोपों की जांच की जाए यह सरकार कुल 45 दिनों तक चली पार्टी के सभी सदस्य मंत्री थे पर फिर भी इसमें दम नहीं था

      कृष्ण बल्लभ सहाय ने पिछड़े वर्ग को सामने लाकर खड़ा किया जिसके फलस्वरूप गहरे राजनैतिक परिवर्तन हुए पिछड़े वर्ग को अपनी शक्ति का अहसास हुआ और नए नेतृत्व में बिहार की राजनीति ने करवट बदली इस प्रसंग को यहीं छोड़ कर हम आगे बढे

कृष्ण-बल्लभ सहाय एक सफल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे कठिन से कठिन परिस्थितियों में राजनैतिक हल निकालने की उनकी क्षमता अद्वितीय थी 1974 में वे बिहार विधान पार्षद के सदस्य निर्वाचित हुए और शपथ ग्रहण के उपरांत अपनी कार से रात्रि में हज़ारीबाग़ के लिए रवाना हुए मार्ग में घाटी पर एक ट्रक से टक्कर हुई जिसमें उन्हें घातक चोटें आई और वे चल बसे इस प्रकार अंत हुआ एक ऐसे व्यक्तित्व का जिसने अपना तन मन धन सभी देश के लिए न्योछावर कर दिया उन्होनें कोई मकान नहीं बनाया हज़ारीबाग़ का खपरैल मकान उनकी सादगी और ईमानदारी का प्रतीक था

आज उनकी शतक जयंती मनाई जा रही है इस अवसर पर हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि कृष्ण बल्लभ सहाय जैसे कर्मठ कुछ महान हस्तियों को बिहार की कर्मभूमि में भेजे ताकि इस अवनत राज्य का कल्याण हो सके







K. B. Sahay remembered in the 10th Nov issue of TOI, New Delhi





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